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गांवों में पकड़ मजबूत करने की जुगत में वामपंथी दल

कोलकाता: राज्य में होनेवाले पंचायत चुनाव को लेकर वाममोरचा में शामिल व उससे बाहर वामपंथी दलों की ओर से तैयारियां अभी से शुरू कर दी गयी हैं. मुख्य रूप में राज्य के ग्रामीण इलाकों में पकड़ मजबूत करने की कोशिश की जा रही है. पकड़ बनाने से ज्यादा पकड़ बरकरार रखने पर ध्यान दिया जा […]

कोलकाता: राज्य में होनेवाले पंचायत चुनाव को लेकर वाममोरचा में शामिल व उससे बाहर वामपंथी दलों की ओर से तैयारियां अभी से शुरू कर दी गयी हैं. मुख्य रूप में राज्य के ग्रामीण इलाकों में पकड़ मजबूत करने की कोशिश की जा रही है. पकड़ बनाने से ज्यादा पकड़ बरकरार रखने पर ध्यान दिया जा रहा है. इसके लिए वामपंथी दलों को अपने संगठनों पर आस है.

किसानों की मांगों और जनहित से संबंधित मांगों को लेकर वामपंथी संगठनों के मंच बंगाल प्लेटफार्म ऑफ मास आर्गेनाइजेशंस (बीपीएमओ) के बैनर तले राज्यभर में रैली निकाली जा रही है. अलग-अलग जगहों पर वरिष्ठ वामपंथी नेता रैली का नेतृत्व कर रहे हैं. उत्तर बंगाल में कमान श्यामल चक्रवर्ती ने संभाली है तो अन्य जगहों पर रैली का नेतृत्व राज्य में वाममोरचा के चेयरमैन विमान बसु, माकपा के राज्य सचिव डॉ सूर्यकांत मिश्रा, सांसद मोहम्मद सलीम व अन्य नेता कर रहे हैं.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पश्चिम बंगाल में माकपा समेत अन्य वामपंथी दलों की समस्या खत्म नहीं हो रही है. कभी पश्चिम बंगाल वामपंथियों का गढ़ माना जाता था लेकिन कुछ वर्षों में स्थिति विपरीत हुई है. वर्ष 2011 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त खाने के बाद से ही वामपंथियों की नींव जैसे कमजोर होती जा रही है. वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों को 41.0 प्रतिशत वोट मिले थे. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा करीब 29.6 प्रतिशत रह गया. वर्ष 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों को लगभग 26.1 प्रतिशत वोट मिले यानी गिरावट जारी है. अब वामपंथी दल राज्य में दूसरे स्थान पर बने रहने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. तृणमूल के अलावा उनकी मुख्य लड़ाई भाजपा के साथ मानी जा रही है.

आठ वर्षों में घटी है युवा नेता व कार्यकर्ताओं की संख्या
एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में माकपा समेत अन्य वामपंथी दलों में युवा वर्ग के शामिल करने पर जोर दिया जा रहा है. इसकी मुख्य वजह यह है कि गत आठ वर्षों में वामपंथी दलों में युवा नेता व कार्यकर्ताओं की संख्या में काफी गिरावट आयी है. एक रिपोर्ट के अनुसार माकपा समेत कुछ अन्य वामपंथी दलों के कुल सदस्यों में करीब 6.5 प्रतिशत ही ऐसे कार्यकर्ता हैं, जिनकी उम्र 25 वर्ष से कम है.

पंचायत चुनाव के पहले यदि वामपंथी दल अपने संगठनों की मदद से ज्यादा से ज्यादा युवा वर्ग को जोड़ पाया तो इसका फायदा उन्हें चुनाव में मिल सकता है. पंचायत चुनाव के पहले अपने दल को दुरुस्त करने के लिए कई वामपंथी दल माकपा की तरह कदम उठा रहे हैं. यानी पार्टी के निष्क्रिय कार्यकर्ताओं की छंटनी पर भी ध्यान दिया जा रहा है. माकपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि घटता जनाधार वामपंथी दलों के लिए कड़ी चुनौती है. इस घटते जनाधार को पंचायत चुनाव के पहले रोकना काफी जरूरी है और इसी के तहत ग्रामीण स्तर पर एक बड़ा अभियान शुरू किया गया है, ताकि ज्यादा से ज्यादा से लोगों से वामपंथी दल व संगठन जुड़ सकें.

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