कोलकाता: आमतौर पर ब्लीचिंग पाउडर का इस्तेमाल पानी शुद्धीकरण के लिए किया जाता है. इससे क्लोरीन की तीव्र गंध निकलती है. क्लोरोफॉर्म एवं क्लोरीन गैस बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है. लेकिन आश्चर्य की बात है कि पश्चिम बंगाल में इसका इस्तेमाल मच्छरों को मारने के लिए किया जाता है.
विभिन्न जगह सड़क किनारे एवं साफ सफाई के दौरान इसका छिड़काव किया जाता है. लेकिन चिकित्सक का कहना है कि ब्लीचिंग पाउडर के छिड़काव से मच्छर कभी नहीं मरते. लोगों की आंखों में धूल झोकने के लिये इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके छिड़काव से मच्छर भले ना मरे, लेकिन लोग सांस संबंधित बीमारियों ने शिकार हो सकते हैं.
स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसीन के डॉ निमाई भट्टाचार्य ने बताया कि ब्लीचिंग पाउडर के छिड़काव से मच्छरों को मारना असंभव है. इसके अत्यधिक प्रयोग से लोगों को समस्या हो सकती है. इससे एलर्जी एवं निमोनिया हो सकती है. पहले ही सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों को क्रोनिक सीओपीडी की समस्या हो सकती है. हवा के जरिये इसके नाक में पहुंचने से नाक में जलन भी हो सकती है.
मारने के लिए रासायनिक तेल व हर्बल धुआं का छिड़काव
ब्लीचिंग पाउडर का मच्छरों पर कोई असर नहीं पड़ता है. इसलिए कोलकाता नगर निगम द्वारा अब इसका छिड़काव नहीं किया जाता है. मच्छर मारने के लिए रासायनिक तेल एवं कमान से हर्बल धुआं छोड़ा जाता है. टेमीफोज नामक तेल का प्रयोग किया जाता है. इस तेल को विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन के अनुसार तैयार किया जाता है. इस तेल का छिड़काव लार्वा मारने के लिए पानी एवं नाला में किया जाता है. चंद्र मल्लिक नामक फूल से हर्बल धुआं तैयार किया जाता है.
देवाशीष विश्वास, कीट विशेषज्ञ (कोलकाता नगर निगम)