ऐसे में गोजमुमो के अंदर ही एक माहौल ऐसा बन गया है जो राज्य एवं केन्द्र सरकार के साथ बातचीत कर बीच का कोई रास्ता निकालने की सोच रहा है, जबकि राज्य और केन्द्र सरकार की ओर से गोजमुमो को कोई भाव नहीं दिया जा रहा है. ऐसे माहौल में जीएमसीसी से एनसीपी ने अलग होने की घोषणा कर दी है. जाहिर है कि इस नयी परिस्थिति में गोजमुमो तथा इसके मुखिया बिमल गुरूंग काफी परेशान हैं. सिर्फ एनसीपी ही नहीं, बल्कि अभागोली, गोरामुमो तथा जाप के अंदर भी जीएमसीसी को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई है.
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गोरखालैंड आंदोलन: जीएमसीसी में बिखराव ने उड़ायी गोजमुमो की नींद,एनसीपी को मनाने का प्रयास जारी
सिलीगुड़ी. दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर जारी आंदोलन के बीच गोरखालैंड मूवमेंट कोर्डिनेशन कमेटी (जीएमसीसी) में बिखराव ने गोजमुमो की नींद उड़ा दी है. पहाड़ पर पिछले 65 दिनों से बेमियादी बंद जारी है और आंदोलन के खत्म होने के फिलहाल कोई आसार नहीं दिख रहे हैं. सरकार की […]
सिलीगुड़ी. दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर जारी आंदोलन के बीच गोरखालैंड मूवमेंट कोर्डिनेशन कमेटी (जीएमसीसी) में बिखराव ने गोजमुमो की नींद उड़ा दी है. पहाड़ पर पिछले 65 दिनों से बेमियादी बंद जारी है और आंदोलन के खत्म होने के फिलहाल कोई आसार नहीं दिख रहे हैं. सरकार की ओर से आंदोलन खत्म करने की कोई पहल की जा रही है.
27 को दिल्ली में महाअनशन : गोरखालैंड की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर पर इस महीने की 27 तारीख को एक दिवसीय महाअनशन का आयोजन किया जा रहा है. इसकी जानकारी गोरखा संयुक्त संघर्ष समिति की ओर से राजीव शर्मा ने दी.उन्होंने नई दिल्ली से फोन पर बताया कि इस अनशन में देश भर से करीब 3000 गोरखा शामिल होंगे.
बिमल गुरूंग ने माजिद मेमन को लिखी चिट्ठी
जीएमसीसी में फिलहाल पहाड़ की 13 पार्टियां शामिल हैं. अब इन सभी को एकजुट रखना बिमल गुरूंग की सबसे चुनौती बन गई है. इसी कारण उन्होंने जीएमसीसी को एक रखने की कवायद शुरू कर दी है. उन्होंने एनसीपी नेता तथा राज्यसभा सांसद माजिद मेमन को एक चिट्ठी लिखकर गोरखालैंड की मांग पर समर्थन जारी रखने का अनुरोध किया है. उल्लेखनीय है कि माजिद मेमन ने ही राज्यसभा में गोरखालैंड के मुद्दे को उठाया था. श्री मेमन को लिखी चिट्ठी में बिमल गुरूंग ने कहा है कि दार्जिलिंग, कालिम्पोंग, सिलीगुड़ी तथा तराई डुवार्स को लेकर अलग गोरखालैंड राज्य बनाने की मांग काफी पुरानी है. इस क्षेत्र के गोरखा अपनी जातीय पहचान के लिए अलग राज्य की मांग कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि देश में अलग राज्य का गठन नहीं हुआ है. उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ के बाद तेलंगाना राज्य का गठन हुआ. संविधान की धारा 3 के तहत गोरखालैंड राज्य का भी गठन हो सकता है.
1907 से ही गोरखा इसकी मांग करते रहे हैं. पहले सुवास घीसिंग के नेतृत्व वाली गोरामुमो की ओर से गोरखालैंड आंदोलन हुआ और अब गोजमुमो के द्वारा इस आंदोलन की अगुवायी की जा रही है. अपने पत्र में श्री गुरूंग ने देश सेवा के क्षेत्र में गोरखाओं के योगदान को भी गिनाया है. श्री गुरूंग ने अपने पत्र में आगे कहा है कि भौगोलिक दृष्टिकोण से भी अलग गोरखालैंड राज्य का गठन जरूरी है. दार्जिलिंग क्षेत्र की पहचान चिकन नेक के रूप में की जाती है. भूटान, चीन, बांग्लादेश तथा नेपाल की सीमा पास ही है. यहां अशांति का मतलब है सीधे देश की सुरक्षा पर असर पड़ना. इसलिए भी अलग गोरखालैंड राज्य का गठन जरूरी है. अपने पत्र में श्री गुरूंग ने राज्य सरकार की भूमिका पर भी असंतोष प्रकट किया है. उनका कहना है कि राज्य सरकार ताकत के बल पर अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को दबाना चाहती है.
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