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हंटर सिंड्रम : एक ही परिवार के तीन बच्चे पीड़ित
हावड़ा: हंटर सिंड्रॉम एक दुर्लभ बीमारी है, जिसकी चपेट में एक ही परिवार के तीन बच्चे हैं. इस परिवार के पास अपना घर भी नहीं है. एेसी स्थिति में तीन बच्चों की बीमारी का इलाज कराना उनके लिए सपने देखने जैसा है. एक-एक कर तीन बेटों के इस घातक बीमारी की चपेट में आने से […]
हावड़ा: हंटर सिंड्रॉम एक दुर्लभ बीमारी है, जिसकी चपेट में एक ही परिवार के तीन बच्चे हैं. इस परिवार के पास अपना घर भी नहीं है. एेसी स्थिति में तीन बच्चों की बीमारी का इलाज कराना उनके लिए सपने देखने जैसा है. एक-एक कर तीन बेटों के इस घातक बीमारी की चपेट में आने से परेशान पिता आठ साल पहले घर छोड़ कर चला गया. मां माया मल्लिक दूसरों के घर में काम करके किसी तरह दो वक्त के भोजन की व्यवस्था कर पाती है. घर का किराया चुकाना भी माया के लिए एक चुनौती है. माया का कहना है कि उसे इस बीमारी के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है. स्थानीय समाजसेविका मौमिता दास की मदद से तीनों बच्चों को डॉक्टर से दिखाया है तो पता चला कि उन्हें हंटर सिंड्रॉम है.
बीमारी से ग्रसित बच्चों के नाम सुमन (21), सुरोजीत (17) व विश्वजीत (12) है. उम्र के अनुसार तीनों की लंबाई बेहद कम है. तीनों का शरीर विकृत है. आवाज भी सामान्य नहीं है. उम्र बढ़ने के साथ लंबाई घट रही है. हाथ और पैर विकृत हो रहे हैं. शारीरिक विकास रूक गया है. इसके बावजूद सुमन अपनी मां की मदद करता है. घर के पास एक चौराहे पर सुबह में फूल बेचता है. जो रुपये मिलते हैं, उसे मां के हाथों में सौंप देता है. सुमन की आंखों की रोशनी दिन पर दिन घट रही है. एक बार उसका हर्निया का ऑपरेशन भी हो चुका है. सुनने की क्षमता भी कम हो रही है. सुमन ने दसवीं की पढ़ाई पूरी की है. मझला भाई सुरोजीत पांचवीं तक ही पढ़ सका, जबकि छोटा भाई विश्वजीत तीसरी कक्षा का छात्र है. विश्वजीत का रह-रह कर बेहोश होना चिंता का विषय बना हुआ है.
क्या है हंटर सिंड्रॉम
हंटर सिंड्रॉम एक घातक बीमारी है. लड़के ही इसके चपेट में आते हैं. इस बीमारी में सिर बड़ा हो जाता है. उम्र बढ़ने के साथ लंबाई घटने लगती है. हाथ-पैर टेढ़ा होना शुरू हो जाता है. शारीरिक विकास नहीं होता है. धीरे-धीरे पाचन शक्ति भी घटने लगती है. शरीर शिथिल होने लगता है.
हंटर सिंड्रॉम एक दुर्लभ बीमारी है. जेनेटिक डिसऑर्डर के कारण यह बीमारी होती है. भारत में हंटर सिंड्रॉम के मरीज बहुत कम हैं. बंगाल में भी इसकी संख्या कम है. इस बीमारी के इलाज में खर्च बहुत है, जो कि साधारण परिवार के लिए वहन करना संभव नहीं है. शरीर का एंजाइम इस बीमारी में जमा होने लगता है. एंजाइम थैरेपी से इलाज किया जा सकता है, जो बहुत महंगा है. इलाज पर सालाना एक करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं.
डॉ एमएल बंसाली, एमडी
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