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मुकुल को लेकर संशय बरकरार
नवीन कुमार राय कोलकाता : तृणमूल कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. चल रही चर्चाओं पर ध्यान दिया जाये, तो पार्टी में मुकुल राय को लेकर अब भी असमंजस की स्थिति है. कभी ममता बनर्जी के बाद मुकुल राय ही पार्टी के प्राण केंद्र हुआ करते थे. लेकिन आज स्थित अलहदा है. शहीद […]
नवीन कुमार राय
कोलकाता : तृणमूल कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. चल रही चर्चाओं पर ध्यान दिया जाये, तो पार्टी में मुकुल राय को लेकर अब भी असमंजस की स्थिति है. कभी ममता बनर्जी के बाद मुकुल राय ही पार्टी के प्राण केंद्र हुआ करते थे. लेकिन आज स्थित अलहदा है. शहीद दिवस की सभा से लेकर अभी तक की स्थित पर अगर गौर किया जाये, तो पार्टी के अंदर मुकुल राय के अलग-थलग पड़ने की तसवीर साफ नजर आ रही है. मुकुल विरोधियों की माने, तो उनकी गतिविधियाें पर पार्टी सुप्रीमो की पैनी नजर है. लिहाजा तृणमूल के अंदरखाने में मुकुल राय से दूरी बरतने की बात सामने आ रही है.
पार्टी से विदा हो रहे मुकुल के लोग
तृणमूल के अंदरखाने की खबर रखनेवालों का कहना है कि मुकुल ने पार्टी की विस्तार योजना के तहत जिन लोगों को पार्टी में लाया था, अब वे लोग धीरे-धीरे विदा हो रहे हैं.
मसलन त्रिपुरा में कांग्रेस से तोड़कर मुकुल ने जिन छह विधायकों को तृणमूल में शामिल करवाये थे, वे अब सीधे भाजपा का दामन थाम लिये हैं. केरल में पार्टी का झंडा थामनेवाले सभी लोग फॉरवर्ड ब्लाॅक में जा चुके हैं. पंजाब, बिहार और उत्तर प्रदेश में हालात अनुकूल नहीं है. थोड़ी बहुत गुंजाइश बंगाल से सटे झारखंड में है. लेकिन जिन लोगों को मुकुल राय तृणमूल का झंडा पकड़ाये थे, आज एक-एक कर वे लोग भाजपा या अन्य पार्टियों का दामन थाम रहे हैं.
बंगाल में भी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान क्राॅस वोटिंग हुई. विरोधी दलों का आरोप है कि यह क्राॅस वोटिंग तृणमूल कांग्रेस के विधायकों ने किया है. लेकिन ममता ने शहीद दिवस की सभा में यह ठीकरा विरोधी दल यानी कांग्रेस और वाम के मत्थे फोड़ दिया.
बावजूद इसके मुकुल राय की स्थित कुछ खास सुविधाजनक नहीं बन पा रही है.
चूंकि उन्हें बेहतर संगठक के रूप में जाना जाता है, लेकिन जब से अभिषेक बंद्योपाध्याय तृणमूल युवा कांग्रेस की जिम्मेवारी संभाल रहे हैं. संगठन पर उनकी पकड़ मजबूत होते जा रही है. इसके अलावा सुब्रत बख्शी तकनीकी रूप से सारी कार्रवाई संभाल रहे हैं. दिल्ली का मोरचा डेरेक ओ ब्रायन ने संभाल रखा है. ऐसे में पार्टी के अंदर मुकुल राय की अहमियत अब नहीं के बराबर रह गयी है.
दिन बहुरने के इंतजार में मुकुल
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राजनीतिक रूप से मुकुल की स्वीकार्यता पर अब सवालिया निशान उठने लगा है, क्योंकि पार्टी में उपेक्षित चल रहे मुकुल राय के पास विकल्प के रूप में भाजपा में जाने की अटकलबाजियां तेज हो गयी थीं.
लेकिन नारदा और सारधा को लेकर राजनीतिक हथियार बनानेवाली भाजपा अगर मुकुल राय को पार्टी में शामिल करती है, तो उसकी छवि पर असर पड़ेगा. इसलिए उनके भाजपा में जाने की बात थम गयी है, क्योंकि भाजपा को अब उनकी जरूरत नहीं है. ऐसे में राजनीति के माहिर खिलाड़ी मुकुल राय पार्टी के अंदर ही ‘तेल देखो और तेल की धार देखो’ की नीति अपनाते हुए चुपचाप खामोशी से अपने दिन बहुरने का इंतजार कर रहे हैं.
भाजपा में जाने की थी अटकलें
राजनीति के जानकारों की माने, तो यह मामला सारधा घोटाले की जांच कर रही सीबीआइ को लेकर हुई है. मनाही के बावजूद मुकुल सीबीआइ दफ्तर गये थे.
चर्चा है कि उसके बाद उनके भाजपा में जानेकी अटकलबाजी तेज हो गयी थी. पर बाद में ऐसा कुछ नहीं हुआ. लेकिन पार्टी सुप्रीमोे की नजर में उनकी अहमियत घट गयी. आलम यह था कि साल 2015 की 21 जुलाई की शहीद सभा में मुकुल राय दूरदूर तक नजर नहीं आये. 2016 की सभा में किसी तरह उन्हें मंच पर जगह मिली और लोगों को संबोधित भी किये. लेकिन इस बार की सभा में मुकुल राय मंच पर एक कोने में अलगथलग पड़े नजर आये. उन्हें बोलने भी नहीं दिया गया.
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