बोर्ड के इस कदम की छात्रों, अभिभावकों व शिक्षकों ने काफी सराहना की. कुछ अभिभावकों का कहना है कि आज भी लड़कियों के साथ कई तरह की घटनाएं होती हैं. लड़कियां डर के मारे कुछ बोल नहीं पाती हैं. इस व्यवस्था से छात्राओं में कुछ करने का साहस बढ़ेगा. साथ ही अगर उनको कराटे सिखाये जा रहे हैं तो उनकी फिटनेस भी बनी रहेगी. कराटे का प्रशिक्षण देने के लिए मदरसा निदेशक द्वारा एक विशेष पहल की जा रही है.
इस विषय में पश्चिम बंगाल मदरसा शिक्षा के निदेशक आबिद हुसैन ने कहा कि अल्पसंख्यक विभाग ने मदरसा की लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए यह कदम उठाया है. लड़कियां अपनी आत्मरक्षा किस तरह से करें, उनमें यह आत्मविश्वास पैदा करने के लिए उन्हें प्रशिक्षण दिया जायेगा. प्रतिदिन की दिनचर्या में लड़कियां किस तरह अपना बचाव करें, पढ़ाई के दाैरान वे अपने सम्मान की रक्षा कैसे करें, इसके प्रति उनमें जागरूकता पैदा करने के लिए यह विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
उनका कहना है कि इस प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षित इन्स्ट्रक्टर हरेक मदरसा में नियुक्त किये जायेंगे. अगले महीने से इसकी प्रक्रिया शुरू हो जायेगी. यह प्रशिक्षण लगातार चलता रहेगा. पूरी प्रक्रिया में लड़कियों के लिए विशेष सत्र आयोजित किये जायेंगे. इस विषय में मदरसा टीचर्स एसोसिएशन, पश्चिम बंगाल के राज्य अध्यक्ष ए के एम फरहाद ने कहा कि यह एक अच्छा कदम है.
इससे लड़कियों का डर खत्म होगा. कुछ समाज में भी चेतना बढ़ेगी. शिक्षकों ने मदरसा शिक्षा विभाग के प्रति आभार व्यक्त किया है. वहीं ग्रामीण इलाकों के मदरसा शिक्षकों का कहना है कि गांवों में मदरसा इतनी अच्छी स्थिति में नहीं हैं, कि वहां लड़कियों को कराटे सिखाने की छूट मिलेगी. कई लड़कियां बहुत ही पिछड़े परिवारों से आती हैं. उनको बहुत मुश्किल से मदरसा में जाकर पढ़ने की अनुमति मिलती है. अल्पसंख्यक समाज में अभी उतनी जागरुकता नहीं आयी है. लड़कियों के कराटे सीखने पर इन परिवारों के पुरुष असहमति व्यक्त कर सकते हैं. इसको गांव के मदरसों में अभी लागू करना कठिन काम होगा.