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भारत सरकार से बात करने को तैयार : मोरचा
राज्य सरकार को अशांति का जिम्मेवार बताया बातचीत गोरखालैंड के मुद्दे पर ही हो दार्जीलिंग : भारत सरकार गोजमुमो के साथ वार्ता करना चाहे, तो वह इसके लिए तैयार है, लेकिन वार्ता गोरखालैंड के मुद्दे पर होनी चाहिए. यह बात गोजमुमो के दार्जीलिंग विधायक अमर सिंह राई ने दार्जीलिंग प्रेस गिल्ड में पत्रकारों को संबोधित […]
राज्य सरकार को अशांति का जिम्मेवार बताया
बातचीत गोरखालैंड के मुद्दे पर ही हो
दार्जीलिंग : भारत सरकार गोजमुमो के साथ वार्ता करना चाहे, तो वह इसके लिए तैयार है, लेकिन वार्ता गोरखालैंड के मुद्दे पर होनी चाहिए. यह बात गोजमुमो के दार्जीलिंग विधायक अमर सिंह राई ने दार्जीलिंग प्रेस गिल्ड में पत्रकारों को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने पहाड़ की वर्तमान स्थिति के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार बताया. विधायक ने कहा कि राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने प्राइमरी से लेकर हाइस्कूल तक में बांग्ला भाषा अनिवार्य करने की बात कही थी. यही बात मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी अपने फेसबुक एकाउंट में कही.
इसी के बाद पहाड में शांति-व्यवस्था भंग होना शुरू हुई. श्री राई ने कहा कि पहाड़ में शांति वापस लाने के लिए भारत सरकार अब मोरचा के साथ वार्ता करना चाहे, तो हम तैयार हैं. लेकिन सबसे पहले पहाड़ से अर्धसैनिक बलों, पुलिस, आर्मी को हटाना होगा और वार्ता के लिए स्थिति अनुकूल बनानी होगी. श्री राई ने कहा कि वार्ता केवल गोरखालैंड पर होनी चाहिए. एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि बंगाल के साथ भी हम लोग वार्ता के लिए तैयार हैं, लेकिन एकसूत्री मांग गोरखालैंड पर. एक अन्य प्रश्न के जवाब में श्री राई ने मुख्यमंत्री के मोरचा को आतंकवाद से जोड़नेवाले बयान को घोर आपत्तिजनक बताया और बयान को वापस लेने की मांग की.
दार्जीलिंग. पृथक गोरखालैंड राज्य के मुद्दे पर जहां जीजेएम पश्चिम बंगाल सरकार के साथ लंबे टकराव के लिए तैयार हो रहा है, वहीं पार्टी का नेतृत्व अपनी ‘शांतिरक्षण’ शाखा ‘गोरखालैंड पर्सनल’ (जीएलपी) को पुनर्जीवित करने की योजना बना रहा है. जीजेएम की केंद्रीय समिति के सदस्य व जीएलपी के पूर्व प्रभारी कर्नल (सेवानिवृत्त) रमेश अलेय ने बताया : स्थिति दिन पर दिन बुरी होती जा रही है. हमें लगता है कि टकराव समय की बात है.
इसलिए हमें राज्य सरकार के साथ लोकतांत्रिक तरीके से टकराव के लिए तैयार रहने की जरूरत है. उन्होंने कहा : हम (जीजेएम) हमारे अपने शांतिरक्षण बल को पुनर्जीवित करेंगे तथा और युवाओं की भर्ती करेंगे. न तो हम और न ही जीएलपी किसी भी तरह की हिंसा के पक्षधर हैं. लेकिन हमें खुद को तैयार रखना होगा. श्री अलेय ने कहा कि जीजेएम दार्जीलिंग की पहाड़ियों में 8000 सदस्यों का मजबूत बल बनाना चाहता है जो किसी भी तरह की स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार रहेगा.
पहाड़ियों से युवाओं की भर्ती कर जीएलपी की स्थापना करने का विचार गोरखा जनमुक्ति मोरचा (जीजेएम) के प्रमुख बिमल गुरुंग ने साल 2008 में गोरखालैंड आंदोलन के दौरान दिया था.
तब गुरुंग ने पहाड़ियों से पूर्व सैन्य कर्मियों और अधिकारियों के साथ एक बैठक की और उनसे युवाओं का चयन , भर्ती करने तथा उन्हें प्रशिक्षण देने का जिम्मा लेने का अनुरोध किया था. इस संगठन का नाम पहले गोरखालैंड पुलिस रखा गया, लेकिन फिर विभिन्न वर्गों के विरोध के चलते इसका नाम बदल कर गोरखालैंड पर्सनल (जीएलपी) रखा गया.
शुरुआती चयन के बाद जीएलपी के लिए करीब 3000 युवाओं का चयन किया गया था. बल ने वर्ष 2009 में जीजेएम द्वारा आयोजित बंद लागू कराया था और यह सुनिश्चित किया था कि स्थानीय लोग सप्ताह में कम से कम तीन बार नेपाली परिधान पहनें. साथ ही बल ने शराब जब्त कर उसे नष्ट कर दी थी और गुरुंग तथा जीजेएम के शीर्ष नेताओं को सुरक्षा मुहैया करायी थी.
जीएलपी के युवाओं को मामूली मानदेय दिया जाता था और उनसे वादा किया गया था कि गोरखालैंड बनने के बाद उन्हें पुलिस बल में भर्ती किया जायेगा. बहरहाल, वर्ष 2011 में गोरखालैंड भूभागीय प्रशासन (गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन) के गठन के बाद जीएलपी हाशिये पर चला गया और इसके ज्यादातर प्रशिक्षित युवाओं को जीजेएम की युवा शाखा में ले लिया गया.
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