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जीएसटी पर तकरार, व्यवसायी वर्ग बेकरार

केंद्र सरकार ने ‘वन इंडिया, वन टैक्स’ की महत्वाकांक्षी योजना को लक्ष्य करते हुए एक जुलाई से पूरे देश में जीएसटी लागू करने की घोषणा की है, जिसको लेकर व्यवसायी वर्ग में पसोपेश की स्थिति बनी हुई है. जीएसटी को लेकर जितना अधिक जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, उससे अधिक भ्रम की स्थिति भी […]

केंद्र सरकार ने ‘वन इंडिया, वन टैक्स’ की महत्वाकांक्षी योजना को लक्ष्य करते हुए एक जुलाई से पूरे देश में जीएसटी लागू करने की घोषणा की है, जिसको लेकर व्यवसायी वर्ग में पसोपेश की स्थिति बनी हुई है. जीएसटी को लेकर जितना अधिक जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, उससे अधिक भ्रम की स्थिति भी पैदा की जा रही है. सरकार का तर्क है कि एक समान टैक्स से भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी व राज्यों को भी लाभ पहुंचेगा, क्योंकि कर चोरी का लाभ भ्रष्ट व्यवसायी व लोभी अधिकारी उठाते हैं. वहीं उद्योग व व्यवसाय से जुड़े लोगों को इसके सरलीकरण पर भरोसा नहीं है, जिसकी वजह से उन्हें अनावश्यक परेशानी उठाने का भय सता रहा है. प्रस्तुत है प्रभात खबर की ओर से जीएसटी पर मार्निंग वॉकरों से ली गयी राय का संक्षिप्त अंश.
संजय तरवे मानते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर एक समान टैक्स से राहत मिलेगी, पर वह इस मुद्दे पर राजनीति के खिलाफ हैं. वह पूरी तरह से इसके समर्थन में हैं.
राजकुमार खेतान मानते हैं कि आजादी के बाद से ही भ्रष्टाचार अनवरत जारी है. सरकार कर के ऊपर कर लगाती जा रही है, जिससे आम जनता त्रस्त है. उनका मानना है कि प्रस्तावित जीएसटी कानून में जरूरी संसोधन करने की जरूरत है, ताकि लोगों को कठिनाई का सामना नहीं करना पड़े.
विजय चोखनी कहते हैं कि जब भी कोई अच्छा काम आरंभ होता है तो लोगों को कठिनाई होती है. जीएसटी के साथ भी ऐसा ही है. एक भारत, एक टैक्स का विचार से हमें लाभ ही होगा.
अजय सिंघी का कहना है कि जीएसटी अच्छा विचार है. परंतु इसकी पेंचीदगी से लोग परेशान है. इसके लिए सरकार को विकल्प तलाशना चाहिए.
संदीप अग्रवाल कहते हैं कि सरकार को इसे लागू करने से पहले और भी तैयारी करने की जरूरत है. लोगों को जागरूक किये बगैर इस तरह का कानून थोपने से परेशानी बढ़ेगी.
अरुण किरनानी मानते हैं कि यह विकासोन्मुख है. पूरे भारत में एकसमान कर लगने से व्यवसायी वर्ग के साथ आमलोगों को भी लाभ होगा. यह भारत के लिए अच्छी बात है.
मुकेश बंसल का मानना है कि जीएसटी का लाभ तो है, पर यह काफी पेंचीदा है. इसे और भी अच्छी तरीके से सरलीकृत करने की जरुरत है. तभी इसका लाभ आम लोगों को मिलेगा.
प्रगनेश रुपारेल कहते हैं कि आम लोग अभी तक जीएसटी को समझ नहीं सके हैं. इसके लिए विभाग को अपने स्तर से और भी प्रयास करने की आवश्यकता है.
विनय दोसी कहते है कि पारदर्शिता के बगैर कोई भी नियम अमल में लाना बेकार है. जीएसटी पर अभी भी सरकार का रुख पूरी तरह से सही नहीं है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है और इसके लिए आधारभूत संरचना भी तैयार नहीं हो सकी है. जिससे इसकी सफलता संदिग्ध है.
पवन शाह कहते हैं कि जो लोग जीएसटी के विरोध में हैं वे अभी भी इसे समझ नहीं पा रहे हैं. इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी. सरकार की आय बढ़ेगी.
वी खुराना मानते हैं कि जीएसटी अच्छा विकल्प है. पर इसे आम जनता तक पहुंचाना मुश्किल है. इसे एक समान दर के हिसाब से लागू करना होगा.

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