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काबुलीवाले का कारोबार हो रहा खत्म
कोलकाता : दशकों से महाजनी का काम करनेवाले काबुलीवाले अब चिट फंड, माइक्रो फाइनेंस और आसान बैंकिंग प्रणाली की वजह से कोलकाता की गलियों से गायब हो रहे हैं. अफगान महाजन उमर मंसूर (60 ) ने बताया कि कर्ज देना अब हमारे लिए लाभवाला कारोबार नहीं रहा है, जो 25-30 साल पहले हुआ करता था. […]
कोलकाता : दशकों से महाजनी का काम करनेवाले काबुलीवाले अब चिट फंड, माइक्रो फाइनेंस और आसान बैंकिंग प्रणाली की वजह से कोलकाता की गलियों से गायब हो रहे हैं.
अफगान महाजन उमर मंसूर (60 ) ने बताया कि कर्ज देना अब हमारे लिए लाभवाला कारोबार नहीं रहा है, जो 25-30 साल पहले हुआ करता था. चिटफंड कंपनियां, आसान बैंकिंग प्रणाली हमारे कारोबार को पिछले कई साल से प्रभावित कर रही हैं. वहीं नोटबंदी ने हमारे कारोबार को काफी क्षति पहुंचायी. अब जब कभी हम अपना कर्ज वापस मांगने जाते हैं, तो हमें परेशानी का सामना करना पड़ता है. मैं अब मरने से पहले वापस अपने देश जाकर वहीं रहना चाहता हूं. अफगानिस्तान के लोगों को पश्चिम बंगाल में काबुलीवाला कहा जाता है.
काबुलीवाला को रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी लघु कथा काबुलीवाला से प्रसिद्ध कर दिया था. काबुलीवाले 19वीं शताब्दी और 20वीं सदी के शुरू में मेवे बेचने के लिए बंगाल आया करते थे, लेकिन समय के साथ इस कारोबार में लाभ में कमी होती गयी और ये लोग महाजनी के कारोबार में आ गये, लेकिन साल 1980 के बाद कई समुदायों के इस कारोबार में आने के बाद चीजें बदलती गयीं. अब शहर में 15 अफगान कोठियां ही बची हैं.
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