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बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे डॉ केपी जायसवाल

कोलकाता : शिक्षाविद, इतिहासविद, कानूनविद, पुरातत्वविद और एक पत्रकार के रूप में स्वयं को स्थापित करनेवाले डॉ काशीप्रसाद जायसवाल की प्रतिभा का लोहा उनके दौर की तमाम हस्तियां मानती थीं. वह जिस क्षेत्र में भी काम शुरू किये, उन्होंने अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ी. जो भी काम हाथ में लिया, उसे अंजाम तक पहुंचाया. राष्ट्रपिता […]

कोलकाता : शिक्षाविद, इतिहासविद, कानूनविद, पुरातत्वविद और एक पत्रकार के रूप में स्वयं को स्थापित करनेवाले डॉ काशीप्रसाद जायसवाल की प्रतिभा का लोहा उनके दौर की तमाम हस्तियां मानती थीं.

वह जिस क्षेत्र में भी काम शुरू किये, उन्होंने अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ी. जो भी काम हाथ में लिया, उसे अंजाम तक पहुंचाया. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव आंबेडकर व रवींद्रनाथ टैगोर आदि जैसे तमाम लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में अपने कामकाज से डॉ जायसवाल ने प्रभावित किया था. 1881 में 27 नवंबर को मिर्जापुर में जन्मे डॉ जायसवाल बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे. डॉ जायसवाल अपने छात्र जीवन में बेहद कुशाग्र थे. पढ़ाई-लिखाई में उनका कहना नहीं था. कई बार उन्हें उनकी कुशाग्रता के बूते स्कॉलरशिप मिला.

पढ़ने-सीखने की लगन ऐसी कि देश से लेकर विदेश तक की यात्रा कीं, विभिन्न विषयों की बारीकियों को पढ़ा-समझा और उसे व्यवहार में लाकर आमलोगों के हित से जोड़ने का प्रयास किया. यही वजह थी कि जो भी उन्हें जान-समझ पाता, उनका हो जाता. वैसे, तब अंग्रेजों के शासन का दौर होने के चलते तरह-तरह की कठिनाइयां अवश्य आयीं, पर डॉ जायसवाल ने उनका भी डट कर मुकाबला किया. दरअसल, डॉ जायसवाल भारतीय क्रांतिकारियों के साथ भी संपर्क में थे.

लाला हरदयाल, श्यामजी कृष्ण वर्मा और सावरकर जैसेक्रांतिकारियों का उन पर प्रभाव था. इस बात को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश शासक डॉ जायसवाल सेे भी घरबाया करते थे. एक शिक्षक के रूप में डॉ जायसवाल को कलकत्ता विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर के रूप में पढ़ाने के लिए नियुक्ति मिली थी. हालांकि वैचारिक मतभेद की वजह से उन्हें यहां कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. बाद में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया. बाद में उन्हें पटना विश्वविद्यालय ने भी अवसर देने का प्रस्ताव रखा.

पर सरकारी नीतियां और सरकार के रवैये ने उन्हें वहां भी टिकने नहीं दिया. बाद में वह न्यायिक कामकाज में लगे. कानून की प्रैक्टिस से जुड़े. कोलकाता से भी डॉ जायसवाल का नजदीकी संबंध रहा. वह कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाने के साथ ही यहां के क्रांतिकारियों के साथ घनिष्ठता के साथ जुड़े रहे. शहर के एलियट रोड पर खड़ी जायसवाल कोठी आज भी कोलकाता के एक शहरी के तौर पर उनकी याद दिलाती है.

अगस्त 1935 में स्वर्ग सिधारनेवाले डॉ जायसवाल को न केवल देश में, बल्कि विदेशी धरती पर भी उनके कृतित्व के लिए बार-बार सम्मानित होने का अवसर मिला. विभिन्न क्षेत्रों में उनके कामकाज के ट्रैक रिकॉर्ड से पता चलता है कि उनके जैसे प्रतिभाशाली लोगों का जन्म विरले ही हुआ करता है. वह अपने योगदान के लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी याद किये जायेंगे.

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