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तृणमूल से भाजपा में आये राजीव बनर्जी और सब्यसाची दत्त पर कार्रवाई की तैयारी

विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी शिकस्त और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की प्रचंड जीत के बाद टीएमसी छोड़कर भाजपा में आये नेताओं के सुर बिगड़ गये हैं.

कोलकाताः पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थामने वाले राजीव बनर्जी और सब्यसाची दत्त जैसे नेताओं पर कार्रवाई के लिए भगवा दल तैयार है.

विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी शिकस्त और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की प्रचंड जीत के बाद टीएमसी छोड़कर भाजपा में आये नेताओं के सुर बिगड़ गये हैं. वे सरेआम भाजपा और उसकी नीतियों के खिलाफ हमला बोल रहे हैं. भाजपा ने अब ऐसे नेताओं से सख्ती से निबटने का मन बनाया है.

कभी ममता बनर्जी के राइट हैंड रहे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय के चार साल तक भाजपा में रहने के बाद तृणमूल में लौटते ही राजीव बनर्जी और सब्यसाची दत्त जैसे नेताओं ने बागी तेवर अपना लिये हैं.

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ये लोग तृणमूल में लौटने की बात तो नहीं कर रहे, लेकिन अपने बयानों से भाजपा की किरकिरी करवा रहे हैं. ऐसे में सिरदर्द बन चुके इन नेताओं के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अहम रणनीति अपनायी है. इन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी हो चुकी है.

पार्टी के सूत्रों ने बताया है कि किसी भी कार्यक्रम में इन्हें आमंत्रित नहीं किया जायेगा. न ही किसी संगठन की बैठक अथवा रणनीति में इनसे किसी तरह की कोई सलाह ली जायेगी. किसी भी आंदोलन अथवा कार्यकर्ताओं की समस्याओं को लेकर भी इनसे संपर्क नहीं किया जायेगा.

कुल मिलाकर भाजपा ने पार्टी के खिलाफ बोलने वाले ऐसे नेताओं को अलग-थलग करने का निश्चय किया है, ताकि इन्हें इस बात का भ्रम न रहे कि उनके रहने अथवा जाने से भाजपा को कोई फर्क पड़ने वाला है.

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भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि बंगाल चुनाव में अगर हमारी जीत होती, तो सोने पर सुहागा था. नहीं भी हुई, तो हमने कुछ नहीं खोया है. भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है और देश में सबसे अधिक राज्यों में हमारी सरकार है.

उन्होंने कहा कि भाजपा के आगे तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक हैसियत नगण्य है. ऐसे में तृणमूल से आये हुए इन नेताओं को अधिक अहमियत देने का कोई औचित्य ही नहीं है. इनमें से अधिकतर ऐसे नेता हैं, जो विधानसभा चुनाव में अपनी सीट तक नहीं बचा पाये. यह बताता है कि उनका कोई जनाधार नहीं है.

उन्होंने कहा कि यही वजह है कि ऐसे नेताओं को पार्टी अब अहमियत नहीं देगी. साथ ही इनके बयानों और गतिविधियों की भी निगरानी की जायेगी. जिस दिन पार्टी को लगेगा कि इनकी करनी अथवा बयानों की वजह से नुकसान हो रहा है, इन्हें पार्टी से निकाल दिया जायेगा.

उक्त नेता ने बताया कि तृणमूल कांग्रेस में रहने वाले सभी नेता एक नायकवाद के प्रति समर्पण सीख चुके हैं. भाजपा जैसी बड़ी पार्टी में संवैधानिक रीति-नीति को मानकर पार्टी लाइन पर चलना स्वार्थी नेताओं के वश की बात नहीं है. इसलिए इन नेताओं का पार्टी में टिकना भी मुश्किल है. अगर ये तृणमूल में लौटते हैं, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा.

भाजपा का विश्वास नहीं जीत पाये मुकुल

भाजपा के सीनियर लीडर ने कहा कि वर्ष 2017 में भाजपा में शामिल होने वाले मुकुल रॉय कभी पार्टी का विश्वास नहीं जीत पाये. उन्होंने संगठन में पैठ बनाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वे ऐसा कर नहीं पाये. भाजपा अनुशासित और संगठन आधारित पार्टी है. यहां क्षेत्रीय पार्टियों से आने वाले नेताओं के आने-जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता.

लोकतंत्र में सरकार और विपक्ष का समान महत्व

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष दोनों की अहमियत समान है. जो सरकार में हैं उनकी और जो विपक्ष में है उनकी, दोनों की जिम्मेदारी है कि वे जनहित के मुद्दे पर बात करें. सरकार का काम है कि वह जनहित में योजनाएं बनाये और विपक्ष का काम है कि जब भी सरकार रास्ता भटके, उसे उसकी जिम्मेदारियों की याद दिलाये.

उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में एक पार्टी के तौर पर विपक्ष के रूप में हम अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभायेंगे. हमें कम सीटें मिली या ज्यादा, यह अब आयी-गयी बात हो गयी है. अपनी सांगठनिक क्षमता के जरिये राज्य में लोगों की आवाज को मुखर तरीके से उठाना हमारी प्राथमिकता है और इन नेताओं के रहने अथवा जाने के बारे में कोई चिंता नहीं है.

Posted By: Mithilesh Jha

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