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बंगभूमि में बेटियों की स्थिति सबसे ज्यादा भयावह

सेना के पूर्व जवान मनोज पांडे की पुस्तक ‘बेटी मैं अपराधी हूं’ बेिटयों को समर्पित पानागढ़. बेटी मैं अपराधी हूं! के लेखक और सेना के पूर्व जवान मनोज पांडे ने गुरुवार को पानागढ बाजार ग्राम बांग्ला होटल के सभागार में पुस्तक को लेकर आयोजित परिचर्चा में भाग लिया. इस दौरान साहित्यकार ,पत्रकार, शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी […]

सेना के पूर्व जवान मनोज पांडे की पुस्तक ‘बेटी मैं अपराधी हूं’ बेिटयों को समर्पित
पानागढ़. बेटी मैं अपराधी हूं! के लेखक और सेना के पूर्व जवान मनोज पांडे ने गुरुवार को पानागढ बाजार ग्राम बांग्ला होटल के सभागार में पुस्तक को लेकर आयोजित परिचर्चा में भाग लिया. इस दौरान साहित्यकार ,पत्रकार, शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी उपस्थित थे.
पुस्तक के लेखक श्री पांडे ने परिचर्चा में भाग लेते हुए कहा कि पुस्तक में देश की नारियों की मौजूदा स्थिति पर प्रकाश डाला गया है. पांडे जी ने कहा कि दिल्ली में निर्भया कांड के बाद विचलित होकर यह पुस्तक लिखने का विचार बनाया. महिलाओं को दुर्गा का रूप देकर सम्मानित करने वाली बंगभूमि पर नारियों की स्थिति सबसे ज्यादा भयावह है.
उन्होंने विषय वस्तु को लेकर कहा िक बलात्कार की िशकार बेटी के बाप के दर्द को इस पुस्तक के माध्यम से समाज के सामने रखने की कोशिश की है. जहां गर्भस्थ बेटियों की हत्या की जाती है, कार्यस्थलों पर वे यौन शोषण का शिकार होती है, दहेज के नाम पर उन्हें जला कर मार िदया जाता है, ऐसे समाज और देश को ‘बेटी मैं अपराधी हूं’ के माध्यम से सन्देश देने का प्रयास किया है. इन स्थितियों को ठीक करने हेतु स्वयं कदम उठाना होगा.
श्री पांडे ने बताया िक उनकी अगली पुस्तक ‘व्याकुल भारत’ जल्द ही प्रकाशित हो कर आ रही है. इसमें समाज में बेटो के प्रति विलगाव एवं परिजनों के प्रति उनके व्यवहार पर चर्चा करते हुये जातिवाद, नक्सलवाद, आतंकवाद, िजहाद की समस्या को उठाया है. पुस्तक में वैमनस्यता के साथ राजनीतिक द्वंद्व को भी उकेरा गया है. श्री पांडे ने कहा िक उनकी पहली पुस्तक पूर्ण रूप से बेटियों को समर्पित है. बेटियों के प्रति होने वाले अन्याय, अत्याचार, व्यभिचार को उकेरा गया है. एक बेटी की परेशानियों को सबके सामने लाया गया है.
इतना ही नहीं उसे हम कैसे ठीक कर सकते हैं, हमारे समाज का क्या उत्तरदायित्व है? हमारे परिवारों का इसमें कितना योगदान है, इसे सब मिलकर सही कर सके इस पर विशेष रूप से चर्चा की गयी है. इसमें राजनीति तो है ही है साथ में न्यायपालिका को भी लाया गया है. उसकी कार्य प्रणाली पर भी उंगली उठाई गयी है. साथ में जो हमारी चुनाव की प्रक्रिया है, उस प्रक्रिया में भी कहीं ना कहीं व्यापक पैमाने पर खामियां हैं. इसे ठीक करने की जरूरत है और वह हम ही कर सकते हैं. हम अपनी ओर से ही शुरुआत कर इस कार्य को संपन्न कर सकते हैं.
सारी महिलाओं को साथ लेकर, सारी बेटियों को साथ लेकर, समाज के प्रबुद्ध जन को साथ लेकर, जब हम इस समस्या के समाधान की ओर प्रयास करेंगे, समस्या को सुलझाने की कोशिश करेंगे तो शायद हम कामयाब हो जायेंगे. परिचर्चा में स्वागत भाषण समाजसेवी, गीतकार सत्यप्रकाश केशरी ने किया.धन्यवाद ज्ञापन शिक्षाविद् उमेश मिश्र ने किया. ‘दुस्साहस’ के संपादक विपिन कुमार ने लेखक मनोज पांडे को सम्मानित किया. इस दौरान अन्य अतिथियों में पत्रकार और समाज के गणमान्य लोग उपस्थित थे.

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