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मौजूदा दौर में लघु पत्रिकाओं की बढ़ रही है प्रासंगिकता

‘वर्तमान समय में पत्रकारिता की चुनौतियां’ विषय पर सेमिनार आयोजित ‘संवेद’ पत्रिका के संपादक किशन कालजयी ने किये विभिन्न पहलू उजागर आसनसोल : बीबी कॉलेज के हिंदी विभाग में सोमवार को ‘वर्तमान समय में पत्रकारिता की चुनौतियां’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. ‘संवेद’ पत्रिका के संपादक किशन कालजयी ने मुख्य रूप से संबोधित […]

‘वर्तमान समय में पत्रकारिता की चुनौतियां’ विषय पर सेमिनार आयोजित
‘संवेद’ पत्रिका के संपादक किशन कालजयी ने किये विभिन्न पहलू उजागर
आसनसोल : बीबी कॉलेज के हिंदी विभाग में सोमवार को ‘वर्तमान समय में पत्रकारिता की चुनौतियां’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. ‘संवेद’ पत्रिका के संपादक किशन कालजयी ने मुख्य रूप से संबोधित किया. कथाकार शिवकुमार यादव, बीबी कॉलेज के शिक्षक डॉ अरूण पांडेय, डॉ श्रीकांत द्विवेदी, ब्रजेश पांडे आदि उपस्थित थे. सेमिनार का संचालन डॉ अरूण पांडेय ने किया.
श्री कालजयी ने उपभोक्तावादी संस्कृति के विभिन्न पहलूओं को रखा. उन्होंने वर्तमान और पूर्व की पत्रकारिता के बारे में रोचक जानकारियां साझा की.
पहले के पत्रकारों को समाचार संकलन के तौर तरीके, ढांचागत सुविधाएं एवं वर्तमान समय में पत्रकारों के समाचार संकलन के तरीके और तकनीकी सहयोग के बारे में विस्तारपूर्वक बताया. उन्होंने कहा कि इस दौर के पत्रकारों को समाचार संकलन में जितनी तकनीकी सहायता उपलब्ध है, पहले के जमाने के पत्रकारों को उपलब्ध नहीं था. उन्होंने लघु पत्रिकाओं की विशेषताओं एवं वर्तमान समय में उनके महत्व के बारे में प्रकाश डाला. ‘दिनमान’, ‘सारिका’, ‘पहल’, ‘संवेद’, ‘माधुरी’ आदि पत्रिकाओं के विविध रूपों एवं विषयवस्तु के बारे में जानकारी दी. उन्होंने राजेंद्र माथुर, रघुवीर सहाय, सुरेंद्र वर्मा को अपना आदर्श संपादक और प्रेरणास्त्रोत बताया.
सेमिनार के दौरान उन्होंने अखबार के पाठकों की बढ़ती संख्या पर खुशी जतायी. परंतु पत्रिका के पाठकों की घटती संख्या पर चिंता जताते हुए इसका कारण बताया. उन्होंने कहा कि पत्रिका से लोगों को अरूचि क्यों हो रही है? पत्रिकाओं में वैचारिकता अभाव क्यों होता जा रहा है? उन्होंने हंिदूी भाषा की श्रेष्ठता पर भी अपना विचार रखा.
‘हंस’ पत्रिका के उत्थान का श्रैय राजेंद्र यादव को देते हुए उनके कार्यो और पत्रकारिता के प्रति उनके समर्पण की सराहना की. उन्होंने विज्ञापनों के भयावह परिणाम की ओर संकेत किया और पत्रकारिता की बदलती प्राथमिकताओं को जनता के लिए हानिकारक बताया. उन्होंने कहा कि विचारों का नहीं चरित्र का संकट है. विचार बोलते और पढ़ते हैं पर उसमें जीने के लिए तत्पर नहीं हैं. श्रीकांत द्विवेदी ने धन्यवाद ज्ञापन किया. डॉ पांडेय ने कहा कि बाजारवाद के दौर में कुछ पत्रकार जो जनपक्षधरता के प्रति प्रतिबद्ध है, उनमें कालजयी अन्यतम हैं.

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