कोलकाता: राज्य के मशहूर पर्यटन स्थल दीघा व मंदारमणि के समुद्र तटों के पास बगैर किसी निगरानी के पर्यटन एवं विकास संबंधी गतिविधियों के जारी रहने से कछुओं की मौत हो रही है. समुद्री कछुओं की स्थिति से जुड़े वर्ल्ड वाइड फंड फोर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ) के एक अध्ययन में कहा गया है कि दीघा में पर्यटकों की बढ़ती आवाजाही से कछुओं की संख्या में कमी आयी है अैर स्थानीय लोगों से मिली सूचना से पता चला है कि पांच-छह साल से इस इलाके में ओलिव रिडले कछुए प्रवास के लिए नहीं आये हैं.
कोलकाता से 200 किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित पूर्व मेदिनीपुर की 60 किलोमीटर लंबी तटरेखा पर मंदारमणि, दीघा और शंकरपुर जैसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल स्थित हैं. यह तटरेखा ओड़िशा तक जाती है, जहां समुद्र तट पर लाखों ओलिव रिडले कछुए हर साल सामूहिक रूप से प्रवास के लिए आते हैं. भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं शोध संस्थान के पुण्यश्लोक भादुड़ी के नेतृत्ववाले शोध दल ने अपने अध्ययन में बताया है कि मंदारमणि समुद्र तट पर कार एवं दूसरे चार पहिया वाहनों का बड़ी संख्या में आवागमन हो रहा है.
श्री भादुड़ी ने रिपोर्ट में कहा है कि इस तरह की गतिविधि रेत पर रहनेवाले ओलिव रिडले कछुओं के प्रवास में आ रही कमी का कारण हो सकती है. उन्होंने दावा किया है कि लगातार बढ़ती पर्यटकों की आवाजाही से कछुओं के अस्तित्व पर गंभीर खतरा पैदा हो रहा है. पर्यटन से जुड़ी विकास गतिविधियां यहां आनेवाले कछुओं की आबादी को प्रभावित कर रही है.
मछुआरों और ग्रामीणों ने शोधकर्ताओं को बताया कि मछली के जालों में फंसने वाले कछुओं को उनके मांस के लिए पकड़ा जाता है, जिसे खेत मालिकों को बेचा जाता है, जो इसका इस्तेमाल मछलियों के भोजन के लिए करते हैं. इन कछुओं के अंडों का इस्तेमाल मछुआरा समुदाय अपने भोजन के लिए करता है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट में सलाह दी गयी है कि क्षेत्र में आनेवाले पर्यटकों को समुद्री कछुओं के बारे में संवेदनशील व जागरूक किया जाये और वन्यजीव पर्यटन विशेष रूप से कछुआ पर्यटन की शुरुआत की संभावनाओं पर गौर किया जाये. श्री भादुड़ी ने कहा कि जब तक संरक्षण के उपाय नहीं किये जाते, तब तक पूर्वी मेदिनीपुर के तटीय क्षेत्र में आनेवाले समुद्री कछुओं का भविष्य खतरे में है.