लखनऊ् उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा सहयोगी दलों को लेकर उलझन में है. लिहाजा वह दूसरी सूची जारी नहीं कर पा रही है. भाजपा ने पहली सूची में 149 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की थी. केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के बाद उसे गुरुवार को दूसरी सूची जारी करनी थी. सूत्रों के मुताबिक दूसरी सूची में 150 उम्मीदवारों के नाम हैं, लेकिन सहयोगी दलों के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर ऐसा नहीं किया जा सका.
भाजपा राज्य विधानसभा में जिन छोटे दलों से गंठबंधन चाहती है, उनमें अपना दल, सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी और स्वाभिमान पार्टी प्रमुख है. अपना दल से भाजपा का पुराना गंठबंधन है और वह एनडीए का घटक दल है. इस दल की प्रमुख अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री हैं. इस दल के लोकसभा में दो सदस्य हैं. अनुप्रिया अपनी पार्टी के लिए 2014 के लोकसभा चुनाव में मिले वोट शेयर के आधार पर इस बार के विधानसभा चुनाव में सीट चाहती हैं.
भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर का पूर्वी उत्तरप्रदेश के 7-8 जिलों में बड़ा प्रभाव है. वह कुर्मी समाज से आते हैं और वाराणसी-प्रतापगढ़ परिक्षेत्र के 5-6 जिलों में इस जाति के वोटरों की संख्या अच्छी-खासी है.
उधर स्वाभिमान पार्टी के आरकेे चौधरी भी बसपा छोड़ कर भाजपा के निकट आ गये हैं. उन्होने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ चुनावी सभा भी की है. वह पासी जाति से हैं और लखनऊ, सीतापुर, उन्नाव एवं रायबरेली जैसे एक दर्जन जिलों में इस जाति का एक तरह बड़ा वोट बैंक है. चौधरी का इन जिलों में बड़ा प्रभाव है.
भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर और अपना दल की अनुप्रिया पटेल इस चुनाव में अपने-अपने दल के लिए 30-30 सीटों की मांग कर रहे हैं, जबकि भाजपा उन्हें पांच से कम सीटें देना चाहती है. स्वाभिमान पार्टी के आरके चौधरी भी छह सीटें मांग रहे हैं, जबकि भाजपा महज दो सीटें देने के पक्ष में है.
दरअसल, भाजपा इन दलों और नेताओं के प्रभाव और उनके जातीय वोट की अहमियत को तो कबूल कर रही है, लेकिन गंठबंधन केे बाद भी इनसे अच्छे नतीजे का भरोसा नहीं कर पा रही है. इसलिए गंठबंधन कायम करने के लिए वह इन्हें ज्यादा सीट देने के पक्ष में नहीं है. इस मामले में भाजपा को बिहार का कड़वा अनुभव है. वहां विधानसभा चुनाव में जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाला और राम विलास पासवान पर उसने ज्यादा भरोसा किया था, लेकिन नजीते निराश करने वाले रहे थे.
बहरहाल, इन छाेटे दलों और उसके नेताओं को नाराज किये बगैर भाजपा गंठबंधन की फॉर्मूला तलाशने में लगी है.