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कल अखिलेश ने बुलायी विधानमंडल दल की बैठक

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के ‘समाजवादी परिवार’ में जारी रार के बीच सत्तारुढ़ समाजवादी (सपा) की नवगठित प्रांतीय कार्यकारिणी की आज हुई पहली बैठक में आगामी पांच नवंबर को आयोजित होने वाले सपा के रजत जयंती समारोह को ‘ऐतिहासिक’ बनाने और अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी को हर स्तर पर मजबूत करने की रणनीति पर […]

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के ‘समाजवादी परिवार’ में जारी रार के बीच सत्तारुढ़ समाजवादी (सपा) की नवगठित प्रांतीय कार्यकारिणी की आज हुई पहली बैठक में आगामी पांच नवंबर को आयोजित होने वाले सपा के रजत जयंती समारोह को ‘ऐतिहासिक’ बनाने और अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी को हर स्तर पर मजबूत करने की रणनीति पर चर्चा की गयी.

सपा प्रवक्ता अंबिका चौधरी ने बैठक के बाद संवाददाताओं को बताया कि शिवपाल यादव के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी की नयी राज्य कार्यकारिणी की आज पहली बैठक हुई, जिसमें विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत विचार-विमर्श किया गया.

उन्होंने बताया कि कार्यसमिति की बैठक में आगामी पांच नवंबर को पार्टी के रजत जयंती समारोह को कामयाब बनाने और उसे ‘ऐतिहासिक’ स्वरूप देने पर विचार किया गया. सभी सदस्यों को इस सिलसिले में जिम्मेदारी भी दी गयी है.

चौधरी ने बताया कि राज्य विधानसभा के आगामी चुनाव में पार्टी को कामयाबी दिलाने के लिए सभी कार्यकारिणी सदस्य हर स्तर पर पूरी तैयारी के साथ मजबूती से काम करेंगे.

मालूम हो कि समाजवादी परिवार में जारी खींचतान के बीच बैठकों का दौर जारी है. सपा के प्रांतीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने कल पार्टी के जिलाध्यक्षों तथा महासचिवों की बैठक बुलायी थी. इसमें बुलावे के बावजूद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिरकत नहीं की थी. अखिलेश ने बाद में इन जिला पदाधिकारियों को अपने घर पर बुलाकर संबोधित किया था.

सपा मुखिया मुलायम सिंह ने आगामी 24 अक्तूबर को प्रदेश के सभी मंत्रियों की बैठक बुलायी है, लेकिन अखिलेश ने एक चौंकाने वाले फैसले में मुलायम से पहले 23 अक्तूबर को ही विधानमंडल दल की बैठक बुला ली है. साथ ही उन्होंंने यूथ विंग के नेताओं को भी बुलाया है.

शिवपाल ने अखिलेश के साथ अपनी तनातनी के बीच कल जिला पदाधिकारियों की बैठक में नरम रख अख्तियार करते हुए कहा था कि अगर अखिलेश कहें तो वह पार्टी प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ देंगे. अखिलेश ही आगामी चुनाव में सपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे.

मालूम हो कि गत जून में माफिया-राजनेता मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी की अगुवाई वाले कौमी एकता दल (कौएद) के शिवपाल की पहल पर सपा में विलय को लेकर अखिलेश की नाराजगी के बाद पार्टी में तल्खी का दौर शुरु हो गया था. कुछ दिन बाद इस विलय के रद्द होने से यह कड़वाहट और बढ़ गयी थी.

शिवपाल ने कुछ दिन बाद प्रदेश में जमीनों पर अवैध कब्जों को लेकर इस्तीफे की पेशकश की थी. गत 15 अगस्त को सपा मुखिया ने मैदान में उतरते हुए शिवपाल की हिमायत की थी और कहा था कि अगर शिवपाल पार्टी से चले गये तो सपा टूट जाएगी.

अखिलेश ने गत 12 सितंबर को भ्रष्टाचार के आरोप में तत्कालीन खनन मंत्री गायत्री प्रजापति तथा एक अन्य मंत्री राजकिशोर सिंह को बर्खास्त कर दिया था। ये दोनों ही सपा मुखिया के करीबी माने जाते हैं. मुलायम के कहने पर बाद में प्रजापति की मंत्रिमण्डल में वापसी हो गयी थी. इसे मुख्यमंत्री अखिलेश के लिए करारा झटका माना गया था.

मुख्यमंत्री 13 सितंबर को शिवपाल के करीबी माने जाने वाले मुख्य सचिव दीपक सिंघल को पद से हटाकर अपने पसंदीदा अधिकारी राहुल भटनागर को यह पद दे दिया था. उसके फौरन बाद मुलायम ने अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर वरिष्ठ काबीना मंत्री शिवपाल को यह जिम्मेदारी दे दी थी. इससे नाराज मुख्यमंत्री ने शिवपाल से उनके महत्वपूर्ण विभाग छीन लिये थे.

अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद पर वापस लेने से सपा मुखिया के इनकार से पार्टी के युवा नेताओं में नाराजगी की लहर दौड गयी और वे पार्टी राज्य मुख्यालय के सामने सडक पर उतर आये, जिसके बाद तीन विधान परिषद सदस्यों समेत कई युवा नेताओं को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निकाल दिया गया.

हाल में मुलायम द्वारा कौएद के सपा में विलय को बहाल किये जाने सम्बन्धी शिवपाल की घोषणा को अखिलेश की एक और पराजय के तौर पर देखा गया.

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