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मुलायम की मजबूरी और जरूरत दोनों हैं शिवपाल

लखनऊ : समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव को अंतत: अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच जारी जंग में बीच बचाव के लिए उतरना पड़ा है और आज उन्होंने सपा के कार्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि पार्टी में कोई लड़ाई नहीं है सब एकजुट हैं. अब जरूरत इस बात […]

लखनऊ : समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव को अंतत: अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच जारी जंग में बीच बचाव के लिए उतरना पड़ा है और आज उन्होंने सपा के कार्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि पार्टी में कोई लड़ाई नहीं है सब एकजुट हैं. अब जरूरत इस बात की है कि सब मिलकर चुनाव का सामना करें. उन्होंने कहा कि मेरे रहते पार्टी में कोई फूट नहीं होगी. लेकिन इससे पहले समाजवादी पार्टी में मुलायम परिवार का झगड़ा सड़क पर उतर आया . चाचा-भतीजे की बढ़ती लड़ाई को देखते हुए कल रात ही मुलायम सिंह लखनऊ पहुंच गये थे. उन्होंने अखिलेश और शिवपाल दोनों से अलग-अलग मुलाकात भी की. मुलायम यह अच्छी तरह जानते हैं कि उनके परिवार की लड़ाई का असर चुनाव पर पड़ सकता है और भाजपा-बसपा इस मामले का फायदा उठा सकती है. इसलिए वे रिस्क लेने के मूड में बिलकुल भी नहीं है. यही कारण है कि उन्होंने अखिलेश पर दबाव बनाया है, ताकि पार्टी को कोई नुकसान ना हो.

शिवपाल के मन में मुख्यमंत्री ना पाने की है टीस
मुलायम सिंह यादव ने भले ही अपने बाद यूपी के मुख्यमंत्री पद के लिए अखिलेश को चुना, लेकिन सच्चाई यह है कि शिवपाल खुद को इस पद के लिए दावेदार मानते रहे हैं, हालांकि उन्होंने कभी इस बात को कहा नहीं. वे हमेशा यह कहते रहे हैं कि नेताजी का आदेश उनके लिए सर्वोपरि है. लेकिन जानकार यह मानते हैं कि शिवपाल मुख्यमंत्री का पद चाहते थे. वर्ष 2007 में जब मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री थी उस वक्त शिवपाल विपक्ष के नेता थे.
शिवपाल को साथ रखना मुलायम की मजबूरी
सपा में शिवपाल ऐसे नेता हैं, जिनकी स्वीकार्यता पार्टी में मुलायम सिंह यादव के बाद सबसे ज्यादा है. वह संगठन पर भी मजबूत पकड़ रखते हैं. सपा को अगर 2017 का चुनाव जीतना है तो वह शिवपाल यादव को दरकिनार नहीं कर सकती है. शिवपाल ऐसे नेता हैं जो जमीन से जुड़े हैं और जिन्हें जनता का विश्वास भी प्राप्त है. जानकार बताते हैं कि वे रोज अपने घर पर आम लोगों से मिलते हैं और उनकी समस्याओं को सुनते हैं. मुलायम सिंह यादव भी शिवपाल की ताकत से भलीभांति परिचित हैं, यही कारण है कि वे शिवपाल को दरकिनार नहीं करना चाहते हैं. जब अखिलेश ने उनके करीबी चीफ सेक्रेटरी दीपक सिंघल को हटाकर राहुल भटनागर को सीएस बनाया, तो तुरंत डैमेज कंट्रोल के लिए मुलायम ने शिवपाल को सपा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. मुलायम सिंह इस बात से भली भांति वाकिफ हैं कि सपा अभी शिवपाल को नाराज करने का खतरा नहीं उठा सकती है क्योंकि यह उनके लिए घाटे का सौदा होगी.
अखिलेश के भले के लिए मुलायम डाल रहे हैं उनपर दबाव
अगर शिवपाल पार्टी छोड़ गये, तो अखिलेश के लिए मुसीबत हो जायेगी. संभव है कि सपा की वापसी सत्ता में ना हो, ऐसे में मुलायम उनपर यह दबाव डालेंगे कि वे समय को देखते हुए निर्णय लें. हालांकि अखिलेश अपनी छवि को लेकर बहुत चिंतित हैं लेकिन वे मुलायम के निर्णय के आगे कितना टिक पायेंगे यह देखने वाली बात होगी. आज कार्यकर्ताओं से बात करते हुए मुलायम ने कहा कि पार्टी में अखिलेश, शिवपाल और रामगोपाल के बीच कोई लड़ाई नहीं है.

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