उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा का गठबंधन भारतीय राजनीति की एक बड़ी घटना है और इस मेलजोल ने कई पार्टियों की नींद उड़ा दी है और नये सिरे से रणनीति बनने लगी है. यह गठजोड़ जिस पार्टी के लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबस बनेगा वह है भाजपा. कांग्रेस की स्थिति तो पिछले चुनाव में भी बहुत खराब थी, तो इस चुनाव में भी उसके पास बहुत कुछ हारने को नहीं है. रायबरेली और अमेठी के अतिरिक्त अगर एक सीट भी कांग्रेस के पाले में आती है, तो पोजिटिव ही होगा. हालांकि सपा-बसपा गठबंधन में शामिल नहीं किये जाने के बाद कांग्रेस ने अकेले ही 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है. लेकिन बात अगर भाजपा की करें, तो उसने पिछले चुनाव में 80 में से 71 सीट जीते थे, सहयोगी को मिलाकर 73 सीट एनडीए के खेमे में थे, जबकि पांच सपा और दो कांग्रेस के थे. सपा-बसपा के साथ आने से भाजपा को नुकसान होगा, यह कहने की जरूरत ही नहीं है. हां यह बात दीगर है कि उसे कितना नुकसान होगा, इसपर विश्लेषण की जरूरत है.
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बसपा का अपना वोटबैंक है जो उससे हटता नहीं है इस बात का सबूत यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भले ही बसपा को एक भी वोट नहीं मिले थे, लेकिन 33 लोक सभा सीटों पर बसपा दूसरे नंबर की पार्टी थी. और इन 33 सीटों में 19 सामान्य सीटें थीं और 14 अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटें थीं. ऐसी स्थिति में जब सपा-बसपा एक साथ होंगे तो दलित और ओबीसी वोटर्स का बंटवारा नहीं होगा, जिसका फायदा सपा-बसपा को तो होगा, लेकिन भाजपा के लिए यह परेशानी का सबब होगा.
क्या है जातीय समीकरण
बसपा के साथ दलित वोटर होते हैं, वहीं सपा का अपना वोटबैंक है जिसमें यादव और मुस्लिम शामिल हैं. उत्तरप्रदेश का जातीय गणित कुछ यूं है कि यहां दलित मतदाता करीब 22 प्रतिशत है, जिसमें से जाटव (14 प्रतिशत) है. जाटव बसपा का सबसे मजबूत वोट बैंक है. इनके अलावा पासी, धोबी, मुसहर, कोली, वाल्मीकी और गोंड सहित कई जातियां हैं. वहीं ओबीसी की जनसंख्या लगभग 45 प्रतिशत है. जिसमें से लगभग 11-12 प्रतिशत यादव है, जो सपा का बड़ा वोट बैंक है. वहीं प्रदेश में मुसलमानों की संख्या 19 प्रतिशत है, जो उसी के साथ होता है जो भाजपा को हरा सकती है. सपा पर इन्होंने काफी समय से विश्वास दिखाया है.
अब क्या करेंगे अमित शाह
पिछले लोकसभा चुनाव में अमित शाह ने पुख्ता रणनीति बनायी थी, उन्होंने दलितों, ओबीसी और सवर्ण को साधने की ऐसी रणनीति बनायी थी कि 80 में से 71 सीट जीतकर ले गये. संभवत: अमित शाह को भी ऐसी जीत की उम्मीद नहीं रही होगी. अब जबकि सपा-बसपा एक साथ होकर अपनी शक्ति बढ़ा चुके हैं, भाजपा की नींद उड़ी हुई है और वह यह सोच रही है कि कैसे इस खेमें सेंध लगायी जाये. 10प्रतिशत आरक्षण के मुद्दे से उसे लाभ मिलेगा इसमें कोई शक नहीं है, इसके अतिरिक्त अनुपूरक बजट के दौरान भी भाजपा कई लुभावने प्रयास कर लोगों को अपनी ओर खींचने का प्रयास करेगी लेकिन इससे उसे कितना फायदा मिलेगा, अभी कहा नहीं जा सकता.