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भाजपा बदल सकती है मिशन-19 की रणनीति

।। हरीश तिवारी ।। लखनऊ : पहले गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा उपचुनाव और अब कैराना लोकसभा उपचुनाव और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव में मिली हार के बाद राज्य की सत्ता पर काबिज भाजपा मिशन-2019 की रणनीति में बदलाव करने जा रही है. क्योंकि संघ और भाजपा का मानना है कि पिछले छह महीने में परिस्थितियों में […]

।। हरीश तिवारी ।।

लखनऊ : पहले गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा उपचुनाव और अब कैराना लोकसभा उपचुनाव और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव में मिली हार के बाद राज्य की सत्ता पर काबिज भाजपा मिशन-2019 की रणनीति में बदलाव करने जा रही है. क्योंकि संघ और भाजपा का मानना है कि पिछले छह महीने में परिस्थितियों में बदलाव हुआ है और उन चुनौतियों से लड़ने के लिए मौजूदा रणनीति नाकाफी है. इसके लिए नए सिरे से बदलाव की जरूरत है.

आमतौर पर उपचुनाव में सत्ताधारी दल के खाते में ही जाती है. लेकिन पिछले छह महीने के दौरान उत्तर प्रदेश में इसकी परिभाषा में बदलाव आया है. राज्य की सत्ता पर काबिज होने के बावजूद भाजपा ने लोकसभा की तीन और विधानसभा की एक सीट गवांई है.

लिहाजा भाजपा संगठन मिशन-2019 की रणनीति में बदलाव करने जा रहा है. संगठन से जुड़े पदाधिकारी मानते हैं कि छह महीने में राज्य की परिस्थितियां बदली हैं. खासतौर से सपा और बसपा का एकजुट होना, पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.

इसका असर तीन लोकसभा उपचुनाव और एक विधानसभा उपचुनाव में देखने को मिला है. जबकि पहले विपक्ष बिखरा हुआ था और इसका सीधा फायदा पार्टी को मिला था. हालांकि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह तो पहले ही कार्यकर्ताओं को यूपी में 50 फीसद वोट शेयर लाने की दिशा में टिप्स भी दे चुके हैं. लेकिन नयी परिस्थितियों के लिए मौजूदा तैयारियां नाकाफी हैं.संघ की तरफ से भी इन नयी परिस्थितियों के मुताबिक रणनीति बनाने को लेकर भाजपा संगठन पर जबरदस्त दबाव है. संघ के पास उपचुनाव को लेकर जो रिपोर्ट आयी हैं उसने उन्हें भाजपा के राज्य संगठन को सौंप दिया है. सूत्रों के मुताबिक इस रिपोर्ट में स्थानीय कार्यकर्ताओं की नाराजगी को हार के लिए बड़ा कारण बताया गया है.

कैराना लोकसभा उपचुनाव में हार 49 हजार से ज्यादा वोट से हुई है जबकि सभी विपक्ष दल भाजपा के खिलाफ एकजुट थे. संघ का कहना है कि चुनाव में स्थानीय कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर बाहरी नेताओं को तवज्जों दी गयी. जिसके कारण परंपरागत वोटर सक्रिय नहीं हुआ.

लेकिन नहीं तो हार का अंतर काफी कम हो सकता था. कुछ ऐसा ही गोरखपुर और फूलपुर में भी हुआ था. वो कार्यकर्ता जो वोटर को बूथ तक लाते थे वह सक्रिय नहीं हुए और इसके कारण हार देखने को मिली. पिछले दिनों संघ की तरफ से पुराने कार्यकर्ता, पत्रकार और बुद्धिजीवी वर्ग से सरकार और मौजूदा संगठन के लिए फीडबैक लिया गया है.

संघ का कहना है कि नये वोटर को जोड़ने में परंपरागत वोटर को नाराज किया गया है और भाजपा संगठन और सरकार की तरफ से उसे तवज्जो नहीं मिल रही है. जिसके कारण वह सक्रिय नहीं हो रहा है.अब जल्द ही भाजपा संगठन, सरकार और संघ के पदाधिकारियों की बैठक लखनऊ में होने जा रही है. जिसमें सभी विषयों पर चर्चा की जाएगी और फिर अंतिम रूप दिया जाएगा.

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