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AMU दीक्षांत समारोह : जब सुरक्षा कारणों से बग्घी पर नहीं बैठे थे ज्ञानी जैल सिंह

अलीगढ़ः अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यानी एएमयू के 65वें दीक्षांत समारोह में शामिल होने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पहुंच चुके हैं. उनके साथ प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक भी मौजूद हैं. दीक्षांत समारोह से कुछ दिन पहले एएमयू के कुछ पूर्व और वर्तमान छात्रों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के विरोध का ऐलान किया था जिसके […]

अलीगढ़ः अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यानी एएमयू के 65वें दीक्षांत समारोह में शामिल होने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पहुंच चुके हैं. उनके साथ प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक भी मौजूद हैं. दीक्षांत समारोह से कुछ दिन पहले एएमयू के कुछ पूर्व और वर्तमान छात्रों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के विरोध का ऐलान किया था जिसके बाद यहां की सुरक्षा काफी बढ़ा दी गयी. यदि हम समारोह की सुरक्षा की बात करें तो हमें 32 साल पहले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को याद करना होगा.

‘जी हां’ उस वक्त के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से ज्यादा मजबूत सुरक्षा घेरा रामनाथ कोविंद का है. रामनाथ कोविंद पांचवें राष्ट्रपति हैं जो एएमयू के दीक्षांत समारोह में शिरकत कर रहे हैं. इससे पूर्व 1951 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, 1966 में डॉ. एस राधा कृष्णनन, 1976 में फखरुद्दीन अली अहमद एवं 1986 में ज्ञानी जैल सिंह एएमयू के दीक्षांत समारोह में शामिल हो चुके हैं.

यहां चर्चा कर दें कि 32 साल पहले जब ज्ञानी जैल सिंह यहां आए थे तो उनके लिए अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम किये गये थे. दरअसल, ज्ञानी जैल सिंह ऑपरेशन ब्लू स्टार के जमाने में यहां पहुंचे थे. जून 1984 में हर मंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) में भारतीय सेना द्वारा ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया गया था. उस वक्त अलगाववादियों की हिट लिस्ट में ज्ञानी जैल सिंह का नाम भी शामिल था. यही कारण है कि जब वह 29 अप्रैल 1986 को एएमयू के दीक्षांत समारोह में पहुंचे तो उनकी सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम किये गये.

एएमयू उर्दू अकादमी के डायरेक्टर एवं पूर्व पीआरओ डॉ. राहत अबरार ने उन दिनों को याद करते हुए बताया कि सुरक्षा कारणों से वह बग्घी पर नहीं बैठे थे और उनके रुकने की व्यवस्था वीसी आवास में की गयी थी. उस समय सैयद हाशिम अली कुलपति और प्रो. एआर किदवई कुलाधिपति थे. वे वीसी लॉज से कार्यक्रम स्थल एथलेटिक्स ग्राउंड तक गये थे. राइडिंग स्क्वायड उनके साथ-साथ चलते नजर आये थे. सुरक्षा कारणों से राइडिंग स्क्वायड के हाथ में लोहे के बदले लकड़ी का तलवार देने की पेशकश की गयी थी लेकिन तत्कालीन प्रशासन ने इसे स्वीकार नहीं किया.

Prabhat Khabar Digital Desk
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