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जब जलियांवाला बाग कांड की सच्चाई जानने के लिए मालवीयजी ने छोड़ दी थी कुलपति की कुर्सी…

बीएचयू के कुलपति का पद खाली हुआ था. मदन मोहन मालवीय को कुलपति बनना था लेकिन वह कुलपति का पद छोड़ जांच के लिया अमृतसर रवाना हो गए. सात महीने तक जांच की और फिर वापस आकर कुलपति का पद संभाला. मालवीयजी की रिपोर्ट के अनुसार 1300 लोग मारे गए थे.

Varanasi News: काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू/BHU) सदैव ही अपने शिक्षा व इससे जुड़े विद्वानों की वजह से इतिहास के स्मृति पटल पर अंकित रहने वाली घटनाओं से जुड़ा रहा है. ऐसी ही स्मृतियों के पन्नों पर आज जलियांवाला बाग नरसंहार की 103वीं बरसी से जुड़ी कुछ यादें ताजा हो रही हैं. 13 अप्रैल की तारीख में अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड की वीभत्स घटना घटी थी.

मालवीयजी के त्याग ने किया खुलासा

बता दें कि उस वक्त बीएचयू के कुलपति का पद खाली हुआ था. मदन मोहन मालवीय को कुलपति बनना था लेकिन वह कुलपति का पद छोड़ जांच के लिया अमृतसर रवाना हो गए. सात महीने तक जांच की और फिर वापस आकर कुलपति का पद संभाला. मालवीयजी की रिपोर्ट के अनुसार 1300 लोग मारे गए थे. दो हजार से अधिक घायल हुए थे. मगर ब्रिटिश सरकार ने आकड़ों को छुपाते हुए हंटर कमीशन के तहत 379 मौतों और एक हजार घायल की रिपोर्ट दी थी. यदि मालवीयजी अमृतसर नहीं गए होते तो इन आकड़ों का सच सामने नहीं आता.

लीपापोती के लिए बनाया हंटर कमीशन

सच्चाई तो यह है कि 13 अप्रैल 1919 को हुए इस वीभत्स कांड की जांच अगर पंडित मदन मोहन मालवीय ने शुरू न की होती, तो ब्रिटिश हुकूमत इस नरसंहार में मरने वालों की संख्या को छिपा लेती. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति पद को खाली छोड़कर मालवीय जी अमृतसर में सिख लोगों से पूछताछ करते रहे. क्योंकि ब्रिटिश सरकार की कोशिश थी कि मृत और घायलों के आकड़ो को छिपाया जाए. ब्रिटिश सरकार ने इस नरसंहार को छिपाने की हर कोशिश की. बाद में लीपापोती के लिए उसने हंटर कमीशन बनाया. कमीशन ने मात्र 379 मौतों और एक हजार घायल की रिपोर्ट दी. हालांकि, मालवीय की रिपोर्ट के अनुसार, 1300 लोग मारे गए. दो हजार से अधिक घायल हुए, जिसमें 42 बच्चे भी शामिल थे. इसमें से एक बच्चा महज सात महीने का था. मारे गए लोग 57 गांवों के निवासी थे. ब्रिटिश रिपोर्ट के अनुसार, एक मैदान में 15 हजार लोग अंग्रेजी सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़ने के लिए आए थे तो वहीं मालवीय जी की रिपोर्ट के मुताबिक उस दिन वैशाखी का पर्व था और लोग इसे मनाने के लिए जुटे थे. इसी रिपोर्ट के आधार पर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा कर दी.

ब्रिटिश सरकार ने दिया था सम्मान

जलियांवाला बाग हत्याकांड इतना वीभत्स था कि यहां बड़े स्तर पर भारतीयों को एक मैदान में घेर कर गोलियों से मार दिया गया था. घायलों को तड़पता हुआ तेज धूप में छोड़ दिया गया. ऐसा करने वाले सेनापति जनरल डायर को ब्रिटिश सरकार ने सम्मान दिया. यह तो महामना थे, जो ब्रिटिश सरकार की काली करतूत सामने आई और डायर को बाद में इस्तीफा देना पड़ा. महामना ने इस रिपोर्ट में करीब 5 लाख रुपए से शहीद स्मारक बनाने की सलाह दी थी, जिसे आजादी के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने (अग्नि की लौ नाम से) देश को समर्पित किया.

मई से नवंबर के बीच की बात

जलियांवाला बाग हत्याकांड का विरोध और जांच करने पर काशी में मालवीयजी की बहू उषा मालवीय को इस वजह से गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया. मालवीयजी ने कमेटी की रिपोर्ट कांग्रेस को सौंपी तो हंटर कमीशन की खूब आलोचना हुई. महामना ने साल 1919 का कांग्रेस अधिवेशन भी अमृतसर में रखवाया. इसके बाद पंडित मालवीय बीएचयू में आकर नवंबर में कुलपति के पद पर आसीन हुए. बीएचयू के पूर्व विशेष कार्याधिकारी डॉ. विश्वनाथ पांडेय बताते हैं कि साल 1919 में सात महीने तक बीएचयू बिना कुलपति के रहा. मई से नवंबर के बीच की बात है. इसके पीछे एकमात्र वजह थी, जलियावाला बाग नरसंहार. पंडित मालवीय ने तहकीकात कमेटी का अध्यक्ष रहते हुए 7 महीने तक पंजाब में गुजारे.

ट्रेन में अंग्रेजों से गए थे उलझ

इस हत्याकांड की जांच के लिए जो कमेटी बनी थी उसमें मोतीलाल नेहरू, श्रद्धानंद स्वामी भी थे मगर पंडित मालवीय वहां अकेले ही चल पड़े. कारण पंजाब में कमेटी के लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था. महामना माने नहीं बल्कि पंजाब सरकार को सूचित करते हुए काशी से निकल पड़े. रात का समय था. रेलगाड़ी में वह सोए थे कि अंबाला स्टेशन पर कुछ ब्रिटिश अधिकारी ट्रेन में चढ़ते हैं. मालवीयजी को कहते हैं कि आप पंजाब में प्रवेश न करें. सरकार ने आप पर रोक लगा दी है. इस पर उन्होंने कहा कि जब तक उनको गिरफ्तार कर गाड़ी से निकाला नहीं जाएगा तब तक वह न तो गाड़ी से उतरेंगे, न ही वापस काशी जाएंगे.

6 महीने में रिपोर्ट तैयार की

महामना ने जांच के दौरान लगातार छह महीने तक उन लोगों के विलाप और अपनों के खोने की चीख-चीत्कारें सुनी. उनकी दर्दनाक कहानी को समझकर करीब 6 महीने में रिपोर्ट तैयार की. हालांकि, बाद में मालवीय जी का साहस देख उस कमेटी के सभी सदस्य भी काम पर पहुंचे. मालवीय जी ने अमृतसर में जो किया, उसे सम्मानित किया गया. आज वहां पर उनके नाम से क्रिस्टल से नॉवेल्टी चौक एक सड़क का नाम रखा गया. गरीबों के इलाज के लिए अमृतसर सेवा समिति बनाई. यहां औषधालय है और मुफ्त में इलाज आज भी किया जाता है.

स्पेशल रिपोर्ट : विपिन सिंह

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