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मोदी और अपने नाम पर मेनका मांग रही वोट

।। पीलीभीत से राजेन्द्र कुमार ।। वे अपने भाषणों में ‘मेरे पति’ या ‘मेरे परिवार’ का बखान नहीं करती. उन्हें अपने देशी होने का सबूत भी नहीं देना पड़ रहा है. वे परिवार के नाम पर नहीं पीलीभीत में 25 वर्षो में कराए गए विकास कार्यों तथा नरेन्द्र मोदी को पीएम की कुर्सी पर बिठाने […]

।। पीलीभीत से राजेन्द्र कुमार ।।

वे अपने भाषणों में ‘मेरे पति’ या ‘मेरे परिवार’ का बखान नहीं करती. उन्हें अपने देशी होने का सबूत भी नहीं देना पड़ रहा है. वे परिवार के नाम पर नहीं पीलीभीत में 25 वर्षो में कराए गए विकास कार्यों तथा नरेन्द्र मोदी को पीएम की कुर्सी पर बिठाने के लिए वोट मांग रही हैं. उनके लिए सुरक्षा का कोई ताम-झाम भी नहीं है. जिस फार्चूनर पर वे प्रचार के लिए निकलती हैं. उसके पीछे वाली गाड़ी पर चार पुलिसवाले बैठे रहते हैं.

चुनाव प्रचार पर निकलने के पहले रोज सुबह असम रोड़ पर उनके अस्थायी आवास पर कोई भी जाकर उनसे मिल सकता है. वे हिंदी में धाराप्रवाह भाषण करती हैं. स्थानीय बोली पंजाबी में भी लोगों से बात करती हैं. चुनाव प्रचार का यह तरीका नेहरू गांधी परिवार की एक और बहू मेनका गांधी का है.

चुनाव प्रचार के दौरान मेनका कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर कोई सीधी टिप्पणी नहीं करती पर कांग्रेस द्वारा भाजपा और वरुण गांधी पर लगाए गए आरोपों पर वह चुप भी नहीं रहती. गत 12 अप्रैल को यही हुआ. प्रियंका गांधी ने राहुल गांधी के नामांकन के दौरान वरूण गांधी का जिक्र किया और कहा कि उनका चचेरा भाई वरुण गलत रास्ते पर (भाजपा में) चला गया है. उसे सही रास्ते पर लाना है.

मेनका को अपने पुत्र के बारे में प्रियंका का यह कथन खल गया और उन्हेंने कहा कि वरुण गलत रास्ते पर गया है या दूसरे? यह जनता तय करेगी. यह दावा करते हए मेनका ने कांग्रेस को चोरों और दलालों की पार्टी बता डाला और कहा कि देश में स्थिरता के लिए नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना जरूरी है और जो लोग कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए कमर कसे हुए हैं वे बताएं कि उनका देश के लिए क्या योगदान है.

मेनका की यह टिप्पणी सोनिया गांधी के लिए दी. समूचे देश के लोगों को पता है कि सोनिया और मेनका में खटपट है. देवरानी और जेठानी एक दूसरे के पसंद नहीं करती है, हालांकि वरुण, राहुल और प्रियंका में जरूर भाईचारा है. जिसके चलते ही प्रियंका ने वरुण को लेकर टिप्पणी की तो मेनका ने नाराज होकर यह जवाब दिया.

मेनका फिर पीलीभीत संसदीय सीट से चुनाव लड़ रही हैं. बीते लोकसभा चुनाव को छोड़कर वह 1989 से यहां से चुनाव लड़ रही हैं. पांच बार वह यहां से जीतकर संसद में पहुच चुकी हैं. अपने पुत्र वरुण के लिए मेनका ने इस सीट को छोड़कर बीते लोकसभा चुनाव में बरेली की आंवला सीटे से चुनाव लड़ा था.

वरुण अब सुल्तानपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं तो मेनका फिर यहां लौट आई हैं. पीलीभीत को अपनी पारिवारिक सीट मानती हैं मेनका. उनके खिलाफ इस बार यहां 11 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. सपा ने उनके खिलाफ बुद्धसेन वर्मा को टिकट दिया है. बसपा ने अनीस अहमद उर्फ फूल बाबू और कांग्रेस ने रामपुर जिले के विधायक संजय कपूर को टिकट दिया है.

आम आदमी पार्टी (आप) के राजीव अग्रवाल मैदान में हैं. यह सारे प्रत्याशी मिलकर भी मेनका को गंभीर चुनौती नहीं दे पा रहे हैं, हालांकि समूचे क्षेत्र में सड़कें इतनी टूटी हैं कि शहर उजाड़ लगता है. बिजली आती नहीं. विकास ठप पड़ा है. बड़े उद्योग है नहीं. फिर भी कोई उम्मीदवार मेनका को घेर नहीं पा रहा है.

वहीं मेनका अपनी धुंन में अपने पुत्र वरूण के कार्यकाल को जोड़ कर बीते 25 वर्षो में यहां कराए गए कार्यों की चर्चा करते हुए मोदी को पीएम बनाने के लिए वोट मांग रही है. अपने चुनाव प्रचार के दौरान मेनका पिछले लोकसभा चुनाव में जीते अपने पुत्र वरुण का जिक्र नहीं करती क्योंकि वरुण चुनाव जीतने के बाद यहां ज्यादा नहीं आए. वरुण के इस रूख से क्षेत्र के लोग नाराज भी है. जिसे भांपने हुए मेनका यहां से गांधी परिवार के नाम पर अपने लिए वोट नहीं मांग रही है. वह ऐसा क्यो कर रही है? इस सवाल पर मेनका कहती हैं कि ‘ मैं गांधी परिवार के नाम पर वोट क्यों मांगू. लोग जानते हैं कि मैं किस परिवार से हूं.’

मेनका दिन भर में 20 से 25 सभाएं करती हैं. वे हर जगह दस से पंद्रह मिनट तक भाषण देती हैं. जिसमें उनका मुख्य मुददा अपना चुनाव निशान बताते हुए मोदी को पीएम बनाने की खातिर अपने लिए वोट मांगना होता है. वह लोगों से कहती हैं कि नरेन्द्र मोदी को पीएम बनाने के लिए मुझे जिताइए.

यहां किससे उनका मुकाबला है? मेनका इसका भी जवाब देती हैं. कहती हैं, बसपा के अनीस अहमद उर्फ फूल बाबू से उनका मुकाबला हैं. फूल बाबू का यहां अपना जनाधार है. वह चुनावी अखाड़े के पुराने खिलाड़ी हैं. हर बार मुस्लिम मतदाताओं का उन्हें समर्थन मिलता है फिर भी वह मेनका को रोक नहीं पाते. बसपा को छोड़ यहां बाकी के सभी प्रत्याशी मुस्लिम वोटों के बटवारे की बात कर रहे हैं.

भगवा पार्टी के जुड़ने के कारण मुसलमान यहां बसपा के साथ होने का दावा कर रहे हैं पर कहीं-कही वह सपा और मेनका के साथ भी हैं. कांग्रेस के संजय कपूर की नजर यहां के करीब एक लाख सिख मतदाताओं पर है. पीलीभीत में सिख असरदार और मालदार हैं. बड़े-बड़े फार्मों के मालिक पंजाब में रहते हैं. जमीन यहां है. मेनका गांधी का इन सरदारों से जुड़ाव 1989 के लोकसभा चुनावों से हैं. यहां की तीसरी बिरादरी लोध है. इस बिरादरी के नेता सपा का समर्थन कर रहे है पर बिरादरी के तमाम गांव मेनका के साथ खड़े हैं.

पीलीभीत के चुनावी माहौल को लेकर पूरनपुर कस्बे के एचके अग्रवाल बताते हैं कि यहां मुद्दे बहुत बड़े-बड़े हैं, लेकिन मोदी लाओ और मोदी भगाओ के शोर में वह सारे दब गए हैं. फिलहाल यहां पर त्रिकोणीय लड़ाई है. मेनका को बसपा और सपा से अभी कड़ी चुनौती मिल रही है. पर अंत में हर बार की तरह मेनका को यहां के लोगों का समर्थन मिल जाएगा क्योंकि पीलीभीत के लोग नहीं चाहते कि नरेन्द्र मोदी पीएम बनने की राह में यहां कोई बाधा उत्पन्न हो.

मैं भी नेहरू-गांधी परिवार सदस्य हूं : मेनका

मेनका गांधी उनकी गिनती के उम्मीदवारों में है जो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पीलीभीत सीट से चुनाव जीत कर कई बार संसद पहुंची हैं. बिना किसी पार्टी के उन्होंने पीलीभीत में अपना मजबूत जनाधार तैयार किया है.

मेनका का दावा है कि वे नेहरू गांधी परिवार की ऐसी एकमात्र सदस्य हैं जो अपने परिवार के नाम का फायदा उठाने की कोशिश नहीं करती. करीब 34 साल पहले एक विमान दुर्घटना में अपने पति संजय गांधी की मौत के बाद मेनका नेहरू- गांधी परिवार से दूर हो गई थी. आज भी मेनका की अपनी जेठानी सोनिया से नहीं पटती है. लंबे समय से वह एक दूसरे से नहीं मिली हैं. इसे लेकर जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें देश के पहले राजनीतिक परिवार से बिछड़ने का दुख है? तो मेनका ने सीधा उत्तर ना देने हुए कहा कि वे अभी भी इस परिवार में शामिल हैं.

प्रमुख उम्मीदवार

मेनका गांधी ::::: भाजपा

बुद्धसेन वर्मा ::::: सपा

अनीस अहमद ::: बसपा

संजय कपूर :::: कांग्रेस

राजीव अग्रवार :: आप

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