19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जेल से ही आंदोलन का बिगुल फूंकते रहे शहीद लाल सिंह मुंडा

आदिवासियों के हक के लिए शहीद हो गये लालसिंह मुंडा बंदगांव : पश्चिम सिंहभूम सीमा पर बसा है टोकाद गांव. जहां 1978 के जंगल आंदोलन के अगुवा शहीद लाल सिंह मुंडा की समाधि है. झारखंड आंदोलनकारी लाल सिंह मुंडा की हत्या प्रधानमंत्री इंदिर गांधी की हत्या के एक दिन बाद एक नवंम्बर 1984 को बंदगांव […]

आदिवासियों के हक के लिए शहीद हो गये लालसिंह मुंडा

बंदगांव : पश्चिम सिंहभूम सीमा पर बसा है टोकाद गांव. जहां 1978 के जंगल आंदोलन के अगुवा शहीद लाल सिंह मुंडा की समाधि है. झारखंड आंदोलनकारी लाल सिंह मुंडा की हत्या प्रधानमंत्री इंदिर गांधी की हत्या के एक दिन बाद एक नवंम्बर 1984 को बंदगांव के बाजारटांड में कर दी गयी थी. लाल सिंह मुंडा ने सासनदिरी की जमीन पर निर्माण कार्य का विरोध किया था. उनका कहना था कि सासनदिरी की जमीन में गड़ा पत्थर इस बात का सबूत है कि यहां आदिवासियों के पूर्वजों को दफनाया गया है.
मेधावी छात्र थे लाल सिंह मुंडा: लाल सिंह मुंडा काा जन्म 28 मई 1946 को हुआ था. बंदगांव का टिंडा गांव लाल सिंह मुंडा का पैतृक गांव है.जहां वे पत्नी जोसफीन बारला के साथ रहते थे. संत मिखाइल मिडिल स्कूल से उन्होंने मैट्रिक पास किया था.स्नातक उन्होंने रांची स्थित जेवियर कॉलेज से उत्तीर्ण किया था. 1973 में लाल सिंह मुंडा की शादी जोसफीन बारला से हुई थी. प्रारंभ में लाल सिंह मुंडा का झुकाव पढ़ाई व नौकरी की ओर था. शादी के कुछ दिनों बाद वे
पत्नी जोसफीन बारला के साथ जमशेदपुर चले गये. जहां उन्होंने अस्थायी शिक्षक के रूप में पढ़ाने लगे. जिंदगी बेहतर कट रही थी. दो साल तक मुंडा परिवार जमशेदपुर में रहा. इस बीच उन्होंने स्कूल भी बदला. बाद में लाल सिंह मुंडा टीबी से पीड़ित हो गये. पैसे की कमी होने से परेशानी बढ़ने लगी. बीमारी से परेशान लाल सिंह परिवार समेत पैतृक गांव टिंडा लौट आये.
पुलिस ने लाल सिंह मुंडा की घर की कर ली कुर्की, बेघर हो गया परिवार: 8 सितम्बर 1980 को गुवा गोलीकांड की घटना घटी. पुलिस चुन – चुनकर आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर रही थी. पुलिस ने लाल सिंह मुंडा की गिरफ्तारी के लिए कई बार छापा मारा था. नोटिस से वे बचते थे. उनका मानना था की उनकी गिरफ्तारी के बाद उस क्षेत्र के लोग दिशाहीन हो जायेंगे. इसी बीच एक दिन पुलिस ने उनके घर की कुर्की कर ली. पुलिस सारा सामान ले गयी.परिवार को घर छोड़ना पड़ा. ऐसी स्थिति में पतरस मुंडा ने उनके परिवार को शरण दी.
सासनदिरी की जमीन पर मंदिर निर्माण का किया विरोध:बाजारटांड में सासनदिरी की जमीन पर मंदिर निर्माण का प्रयास किया जा रहा था. जिसका लाल सिंह मुंडा ने विरोध किया.उनका कहना था की किसी भी हालत में सासनदिरी की जमीन पर मंदीर नहीं बनने देंगे. जिसके कारण उन्हें कई बार धमकियां भी मिली आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार से दुखी थे लाल सिंह मुंडा: लाल सिंह मुंडा शुरू से ही आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार से दुखी रहते थे. रांची जेवियर कालेज में पढ़ाई के बाद उनकी आंखें खुल गयी थी. वे आदिवासी समाज के लिय कुछ करना चाहते थे. यह अवसर उन्हें जमशेदपुर से लौटने के बाद मिला. उन दिनों झारखंड पार्टी का काफी बोल बाला था.
झारखंड आंदोलनकारियों को उस क्षेत्र में एक तेज नेता की तलाश थी. झारखंड आंदोलनकारी मेरा मुंडा और जॉन का लाल सिंह के यहां आना जाना था. लाल सिंह मुंडा की क्षेत्र में पकड़ थी. मेरा मुंडा व जॉन ने लालसिंह मुंडा को पार्टी में शामिल होने के लिए राजी कर लिया. लेकिन मुडा के इस फैसले का पत्नी जोसफीन ने काफी विरोध किया था.
बंदगांव में एक नवंबर 1984 को हत्यारों ने दिया था घटना को अंजाम
सड़क पर अपराधियों ने लाल सिंह मुंडा को मार दी गोली
हत्या के दिन यानी सुबह छह बजे लाल सिंह मुंडा घर से अपनी बीमार दीदी से मिलने साइकिल से जा रहे थे. योजना थी की वहां से लौटकर जमशेदपुर जायेंगे.लेकिन वे लौट नहीं पाये.उस दिन वे बंदगांव के फादर व सिस्टर से मिले थे. फिर लुम्बै स्थित दीदी घर गये. वहां जाकर वे फुट – फुटकर रोने लगे. शायद उन्हें अपने मौत का अहसास हो गया था. वे समझ रहे थे की इस जीवन में अपनी बहन से यह उनकी अंतिम मुलाकात है. जब वे लौटने लगे तो हत्यारे रास्ते में सड़क पर ही लेटे थे. हत्यारे ने लाल सिंह को रोक साइकिल छिनी और उनकी हत्या कर दी.
आदिवािसयों को बेदखल करने की कोशिश का विरोध
लाल सिंह मुंडा ने मचुवा गागराई के साथ खुंटकट्टी की जमीन सोनगरा वन क्षेत्र,बांझीकुसुम तथा नकटी रंजा क्षेत्र में वन अधिकारियों द्वारा आदिवासियों को बेदखल करने की कोशिश का पूरजोर विरोध किया. अधिसूचना के अनुसार खूंटकटटी जमीन पर वर्षों से रह रहे आदिवासियों को जमीन से बेदखल करने की बात थी. इधर नकटी हाट मैदान से 15 अगस्त 1978 को जंगल आंदोलन शुरू हो चुका था. प्राचीन काल से झारखंड के कोल्हान तथा पोड़ाहाट के सुदूर जंगलो में खुंटकटटी प्रथा होने के कारण आदिवासी लोग खुंटकटटी जमीन पर ही खेती करते और निवास करते थे. परिजन की मृत्यु हो जाने पर आंगन में शव को दफनाते थे
.
जेल में ही मुंडा ने शुरू कर दी थी भूख हड़ताल
पुलिस ने एक दिन छापेमारी की और रात में दो बजे ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उन्होंने चाईबासा जेल में रखा गया था. उन्होंने जेल की कुव्यवस्था के खिलाफ मछुवा गागराई , गुरुचरण हांसदा, बहादुर उरांव, मोरा मुंडा , भुवनेश्वर महतो, सुखदेव हेम्ब्रम, ललित हेंब्रम, लखन बोदरा तथा सुला पूर्ती आदि लोगों के साथ मिल कर 84 घंटा जेल में भूख हड़ताल किया.
जिससे लाल सिंह मुंडा तथा मछुवा गागराई की हालत गंभीर हो गयी थी. इसके बाद लाल सिंह मुंडा तथा गुरुचरण हांसदा को बक्सर तथा गया जेल भेजा दिया गया. वहां से फिर हजारीबाग जेल में ले जाया गया. अंत में उन्हें चाईबासा जेल लाकर सेल में रखा गया. बाद में वे रिहा हो गये.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें