चक्रधरपुर: मसजिद में अल्लाह के लिए नीयत के साथ ठहरना एतकाफ है. इसके लिए मुसलमानों का आकिल और औरतों का हैज व नफास से पाक होना शर्त है. बालिग होना शर्त नहीं है. तमीज रखने वाला नाबालिग भी एतकाफ कर सकता है.
एतकाफ का शाब्दिक अर्थ है धरना मारना. मोतकीफ (एतकाफ करने वाला) की मिसाल उस शख्स जैसी है जो अल्लाह के दर पर आ पड़ा हो और यह कह रहा हो कि या अल्लाह जब तक तु मेरी मगफिरत नहीं फरमायेगा, मैं यहां से नहीं हिलूंगा. एतकाफ की तीन किस्में हैं. एतकाफ-ए-वाजिब, एतकाफ-ए-सुन्नत व एतकाफ-ए-नफिल. मोतकीफ अगर जुबान से कहे कि मैं इतने दिन के लिए एतकाफ कर रहा हूं तो वह जितने दिन कहेगा उतने दिन एतकाफ करना वाजिब हो जायेगा.
एतकाफ का मिन्नत मर्द मसजिद में करे और औरत मसजिद-ए-बैयत में करे. इसमें रोजा शर्त है. औरत घर में जो जगह नमाज के लिए मखसूस कर ले उसे मसजिद-ए-बैयत कहते हैं. रमजान के आखिरी अशरह का एतकाफ सुन्नतुल मोअक्कदा अलल कफाया है. यानी पुरे शहर में किसी एक ने एतकाफ कर लिया तो सब की तरफ से अदा हो गया और किसी एक ने भी नहीं किया तो सभी मुजरिम हुए. इस एतकाफ में जरूरी है कि रमजान की बीसवीं तारीख को सूरज डूबने से पहले मसजिद के अंदर एतकाफ की नीयत के साथ दाखिल हो जायें और 29 या 30 का चांद देख कर ही बाहर निकलें. मोतकीफ नीयत में यह कहे कि मैं अल्लाह की रजा के लिए रमजानुल मुबारक के आखिरी अशरह के सुन्नत-ए-एतकाफ की नीयत करता हूं. नफिल एतकाफ के लिए रोजा या वक्त की कैद नहीं है. जब भी मसजिद में दाखिल हों एतकाफ की नीयत कर लें. जब तक मसजिद में रहेंगे सवाब मिलता रहेगा. जब मसजिद से बाहर निकलेगा एतकाफ खत्म हो जायेगा. एतकाफ के लिए जामा मसजिद होना शर्त नहीं है.