रवींद्र यादव
नोवामुंडी : सारंडा में पांच गांव की हकीकत विकास का जीवंत व जमीनी उदाहरण है जो प्रशासनिक तंत्र पर सवाल खड़ा करता है. नोवामुंडी प्रखंड में शामिल पांच गांव धरनादिरी, चेरवालोर, जुंबईबुरू, कादोडीह, बालेहातु को अब तक न तो राजस्व ग्राम में शामिल किया जा सका, न ही वनाधिकार के तहत पट्टा ही मिल सका.
इन गांवों को रोजगार व विकास से जोड़ने के लिए बनायी गयी 17 योजनाएं संचिकाओं की शोभा बढ़ा रही है. इन पांच गांवों के लोगों को सारंडा एक्शन प्लान का लाभ नहीं मिल रहा है. अधिकार शिविर में सामाजिक सुरक्षा पेंशन के लिए 150 ग्रामीणों का चयन यहां किया गया. आलम यह है कि इन गांवों में वन विभाग भी मनरेगा समेत अन्य योजनाएं कार्यान्वित करने की पहल नहीं करता.
रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं
सारंडा के लोगों ने जब एक-एक कर अपनी समस्याएं बताना शुरू की तो नोवामुंडी बीडीओ अमरेन डांग भावुक हो गये. करमपदा गांव की वार्ड सदस्य ने बताया कि बीपीएल कार्ड नहीं होने के कारण कल्याणकारी योजनाओं के लाभ नहीं मिलता. रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं. लकड़ी काट कर जीवन चलता है. पूंजी लकड़ी की खाट ही बची है. पेयजल का संकट है, कुपोषण लाइलाज बन चुका है.
विकास में बड़ी बाधा वन विभाग : बीडीओ
अमरेन डांग के अनुसार वन विभाग विकास कार्य में सबसे बड़ी बाधक बना है. दो साल पूर्व से ही मनरेगा की तरह कई योजनाएं कार्यान्वित करने के लिए प्रस्ताव भेजा गया. लेकिन वन विभाग की ओर से एनओसी नहीं मिल सकी, और तो और एक चेक डैम निर्माण कार्य को भी रोक दिया गया. ऐसी विपरीत परिस्थितियों में सारंडा के लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने पर प्रश्नचिह्न् लग गया है.