सारंडा में अंधविश्वास चरम पर, छोटानागरा के तितिली घाट गांव में यूनिसेफ के सर्वे में खुलासा
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प्रसव के बाद जच्चा -बच्चा से किनारा कर लेता है परिवार, एक ही कमरे में गुजारते हैं नौ दिन
सारंडा में अंधविश्वास चरम पर, छोटानागरा के तितिली घाट गांव में यूनिसेफ के सर्वे में खुलासा अकेले हो जाते हैं जच्चा-बच्चा, समस्या नहीं बता पाने के कारण अधिकांश बच्चों की हुई मौत वर्ष 2016 में थी ऐसी स्थिति, डीसी को सौंपी गयी है रिपोर्ट, सुधार के लिए चला जागरुकता कार्यक्रम लचर सरकारी व्यवस्था व लापरवाही […]
अकेले हो जाते हैं जच्चा-बच्चा, समस्या नहीं बता पाने के कारण अधिकांश बच्चों की हुई मौत
वर्ष 2016 में थी ऐसी स्थिति, डीसी को सौंपी गयी है रिपोर्ट, सुधार के लिए चला जागरुकता कार्यक्रम
लचर सरकारी व्यवस्था व लापरवाही के कारण अंधविश्वास का जाल बढ़ता गया
चाईबासा : सारंडा की तीन पंचायतों में एक वर्ष में 32 नवजातों की मौत और प्रसव के दौरान दो गर्भवतियों के दम तोड़ने के मामलों की पड़ताल करने पहुंची टीम के सामने चौंकाने वाली बातें सामने आयी हैं. पड़ताल में पता चला कि जच्चा-बच्चा को सात से नौ दिनों तक परिवार से बाहर अलग कमरे में रखने के कारण उनकी परेशानियों का पता नहीं चल पाता था जिससे नवजातों की मौत होती रही.
पड़ताल करने वाली टीम ने पाया कि जन्म देने वाली मां व बच्चों को अलग एक कमरे में रख दिया जाता था. इस दौरान परिवार का कोई भी सदस्य उक्त कमरे में नहीं जाता था. इस तरह से लगभग सात से नौ दिन तक मां और नवजात अकेले कमरे में पड़े रहते थे. अकेले कमरे में पड़े रहने के कारण बच्चों व मां को होने वाली शारीरिक परेशानियां सही समय पर सामने नहीं आ सकीं. इस कारण समय पर इसका समाधान नहीं हो सका. लिहाजा, देखभाल व समय पर जरूरी चिकित्सकीय या अन्य जरूरतें पूरी नहीं होने के कारण अधिकांश बच्चों की मौत हो गयी.
ज्ञात हो कि सारंडा की गंगदा, छोटानागरा व चिड़िया पंचायतों में वर्ष 2016 में 32 नवजात की मौत जन्म के बाद हो गयी थी तथा दो गर्भवती महिलाओं ने भी प्रसव के दौरान दम तोड़ दिया था. बड़ी संख्या में बच्चों की मौत होने पर यूनिसेफ ने इसकी पड़ताल करायी है. आसरा व फिया फाउंडेशन को इसकी पड़ताल की जिम्मेवारी दी गयी थी. इसके लिए चयनित छोटानागरा के तितली घाट गांव में जब पड़ताल शुरू हुई तो चौंकाने वाली परंपरा व प्रचलित भ्रांति सामने आयीं.
बच्चा जन्म लेने के बाद मां को माना जाता है अशुद्ध, पति भी नहीं जाते हैं पत्नी के पास
बिना मेडिकल चेकअप के जना बच्चा
गर्भवास्था के दौरान महिलाओं को चार बार स्वास्थ्य की जांच करानी होती है. सारंडा क्षेत्र में महिलाओं की एक बार भी प्राथमिक रूप से खून, पेशाब व ब्लड प्रेशर की जांच नहीं हुई. रिपोर्ट में बताया गया है कि गंगदा पंचायत की कुम्बिया गांव में महीने में दो तीन दिन ही आंगनबाड़ी केंद्र खुला करता था. छोटानागरा पंचायत के बहदा में स्थापित हेल्थ सब सेंटर सड़क से 12 किलोमीटर दूर है. एएनएम लगातार हेल्थ सब सेंटर से गायब रहती थी. सहियाएं भी सही से अपना कार्य नहीं कर रही थीं. बहदा गांव में अधिकांश डिलीवरी बिना मेडिकल चेकअप के हुई. गंगदा पंचायत की सलाई, चिड़िया की अंकुआ, छोटानागरा की सोनपाई तथा गंगदा पंचायत के लेम्ब्रे गांव में हेल्थ सब सेंटर रोजाना नहीं खुलते थे.
गर्भवती का शुद्धीकरण करने के नाम पर 500 वसूलती थी सहिया
रिपोर्ट में बताया गया है कि छोटानागरा पंचायत की जाम्कुंडिया गांव की सहिया जेमा देवगम गर्भवती माता को शुद्ध करने के नाम पर 500 रुपये वसूलती थी. इलाके में फैली भ्रांति के डर से परिवार वाले गर्भवती को शुद्धिकरण करने के नाम पर 500 रुपये आसानी से दे देते थे.
प्रसूता को माना जाता है अशुद्ध
पड़ताल के दौरान देखा गया कि बच्चे के जन्म लेने के बाद मां को अशुद्ध मानने की प्रवृति पूरे समुदाय में है. इस प्रवृति के कारण जन्म के तुरंत बाद जन्म देने वाली मां और बच्चे को अलग कमरे में रख दिया जाता है. इस दौरान गर्भवती के लिए अलग से भोजन तथा अन्य जरूरत की सामग्री दी जाती है. इस अवधि में परिवार का कोई भी सदस्य जच्चा और बच्चा के पास नहीं जाता. यहां तक की पति भी अपने जन्मे बेटे-बेटी या पत्नी को देखने नहीं जा सकता.
सारंडा के इन गांवों में चरम पर हैं भ्रांतियां
कुम्बिया, बहदा, सोनपाई, सलाई, अंकुआ, चिड़िया, बिनुवा, लोड़ो, सोदा, चुरगी, मामाड़, छोटानागरा, बायहातु, दोदारी, गंगदा, चेलाई, कसियापेचा, जामकुंडिया, दूबिल, बाधा, लोडो, तितलीघाट, छोटानागरा आदि.
लचर व्यवस्था के कारण बढ़ता गया अंधविश्वास
पड़ताल के दौरान जिन-जिन गांवों को खंगाला गया, उन गांवों में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था व प्रशासनिक विफलता स्पष्ट रूप से जाहिर हुई. देखा गया कि अधिकांश गांवों में आंगबाड़ी केंद्र बंद रहते थे. हेल्थ सब सेंटर में ताला लगा रहता था. एएनएम हेल्थ सब सेंटर नहीं आती थीं. इन कारणों से सामाजिक भ्रांतियों के मकड़जाल में फंसे ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं से परिचित ही नहीं हो सके. सबकुछ पुराने ढर्रे पर चलता रहा और अब भी चल रहा है
सारंडा में अभी भी जारी हैं पुरानी मान्यताएं, खतरे में हैं नवजात
इस तथ्य के सामने आने के बाद यहां जागरूकता कार्यक्रम चलाये गये. इस कारण कुछ हद तक इसमें सुधार हुआ. मगर, सारंडा में कमोबेश अभी यह सिलसिला जारी है. जिसके कारण नवजात और गर्भवती खतरे में हैं. उपायुक्त अरवा राजकमल को यह रिपोर्ट सौंपी गयी है.
फैक्ट फाइल
यूनिसेफ ने 2016 में छोटानागरा, गंगदा व चिड़िया पंचायतों में पड़ताल करवायी
187 गर्भवती में से 81 का संस्थागत प्रसव हुआ, 106 की हुई होम डिलीवरी
187 में से 81 गर्भवती को ही ममता वाहन का लाभ मिला
28 में से सिर्फ 15 गांवों में ही आंगनबाड़ी केंद्र नियमित रूप से खुल रहे थे
28 में से 9 गांवों में ही सहिया नियमित रूप से जा रही थीं
दो हेल्थ सब सेंटर ही नियमित रूप से चल रहे थे
इन गांवों में पहुंच पथ खराब थे
दो-तीन दिनों तक मोबाइल नेटवर्क गायब रहता था
जिस घर में कोई महिला बच्चे को जन्म देती है, उस महिला व बच्चे को अलग घर में रखा जाता है. इस घर में दूसरे लोगों को जाने की अनुमति नहीं होती है. बच्चा जन्म देने वाली मां व बच्चे को लगभग एक सप्ताह के बाद पुन: पुराने घर में प्रवेश कराया जाता है. जरूरत पड़ने पर जरूरी चिकित्सकीय सेवायें उपलब्ध करायी जाती हैं.
मनचुड़िया सिद्धु, तितलीघाट गांव, छोटानागरा पंचायत
इस क्षेत्र में जो महिलाएं बच्चे को जन्म देती हैं, उन्हें सात या नौ दिन तक अलग कमरे में रखा जाता है. इस दौरान महिला के कमरे में अन्य लोगों की प्रवेश वर्जित रहता है. बच्चा जन्म देने वाली मां के साथ एक दाई उपलब्ध करा दी जाती है, जो महिला के कमरे में रहती है. धोबी से कपड़े धुलवाकर, उस महिला को महिला को स्नान करवाकर पुन: घर में प्रवेश कराया जाता है.
सुशेन गोप, निवासी, छोटानागरा
सहिया भी नहीं तोड़ सकीं अंधविश्वास का जाल
गर्भवती महिलाओं की देखरेख की जिम्मेवारी ग्रामीण स्तर पर सहियाओं के जिम्मे है. रिपोर्ट में बताया गया कि समुदाय स्तर पर फैले इस अंधिवश्वास को सहियाएं भी नहीं तोड़ सकीं. सहियाएं भी समुदाय की मान्यताओं पर ही चलीं जिसके कारण जच्चा और बच्चा को जरूरी सलाह और चिकित्सकीय सेवाएं नहीं मिल सकीं.
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