सिमडेगा : जैन भवन में आयोजित सत्संग कार्यक्रम के दौरान डॉ पद्मराज जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि विश्वास मन से होता है, जबकि श्रद्धा हृदय की उपज है. विश्वास पानी के बुलबुले की भांति बनता और टूटता है, जबकि श्रद्धा एक बार जागृत हो जाये, तो फिर कभी समाप्त नहीं होती. उन्होंने कहा कि हमारा मन अभी मित्र नहीं, बल्कि शत्रु बना बैठा है. यही कारण है कि जब हम अध्यात्म का कोई काम करना चाहते हैं, तो मन रुकावट डालता है.
हमारा मन पापी हो गया, इसलिए पाप करने में आनंद आता है तथा पुण्य करने में बहाने बनाने लगते हैं. डॉ पद्मराज ने कहा कि प्रयत्न पूर्वक मन को वश में कर लेने के बाद मन हमारा सहयोगी बन जाता है. जिसका मन सहयोगी बन गया, उसका सहयोग सारी शक्तियां करने लग जाती हैं.
जिसका अपना ही मन शत्रु बन बैठा हो, उसे कदम कदम पर शत्रु मिलेंगे. इस मौके पर गुरु मां ने सुंदर भजन सुना का भक्तों को भावविभोर कर दिया. इस मौके पर प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम का आयोजन किया गया और विजेताओं को पुरस्कृत किया गया. महावीर प्रभु आरती उपारंत मंगल पाठ से सभा का समापन किया गया.