सरायकेला : छऊ नृत्य भारतीय नृत्य कला के सृजन का पहला इतिहास है. भारतीय धर्म दर्शन व ऋगवेद में विभिन्न सुप्तों का नाटय रूपांतरण करके चतरुवेद का अभिनय व सामवेद का संगीत लेकर आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व छऊ नृत्य का सृजन हुआ था. यह बात सरायकेला छऊ के वरीय गुरु सह लेखक अतनु कवि ने कही.
जापान में वर्ष 1981 में आयोजित एशियन ट्रेडिशन परफॉमिंग एक्ट फेस्टिवल में छऊ में प्रथम पुरस्कार पाने वाले श्री कवि ने छऊ के बाजारीकरण पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि छऊ का संरक्षण व विकास उसके सही जानकार लोग ही कर सकते है. वर्तमान में जानकारी व ज्ञान के अभाव में छऊ का शास्त्रीय महत्व घटते जा रहा है. जिससे छऊ समेत हमारी प्राचीन परंपरा विनाश के कगार पर पहुंच चुकी है. वर्ष 1999 में केंद्र सरकार के कला व संस्कृति विभाग से पहला वरीय फेलोशिप प्राप्त कर चुके गुरु अतनु कवि ने कहा कि छऊ के विकास व संरक्षण को लेकर वरीय कलाकारों व गुरुओं की उपस्थिति में ही आयोजक व प्रशासन को सेमिनार या गोष्ठी आयोजित करनी चाहिए.