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सूखे की मार झेल रहे जिले को है राहत की आस

शचिंद्र कुमार दाश खरसावां : सरायकेला- खरसावां जिला में सूखे का असर चारों तरफ देखने को मिल रहा है. रविवार को सूखाड़ से हुई क्षति का आंकलन करने खरसावां पहुंची केंद्रीय टीम ने भी माना था कि क्षेत्र में करीब 50 फीसदी धान की फसल बर्बाद हुई है. दिल्ली से केंद्रीय टीम के खरसावां पहुंचने […]

शचिंद्र कुमार दाश
खरसावां : सरायकेला- खरसावां जिला में सूखे का असर चारों तरफ देखने को मिल रहा है. रविवार को सूखाड़ से हुई क्षति का आंकलन करने खरसावां पहुंची केंद्रीय टीम ने भी माना था कि क्षेत्र में करीब 50 फीसदी धान की फसल बर्बाद हुई है. दिल्ली से केंद्रीय टीम के खरसावां पहुंचने के बाद किसानों में भी इस बात की आस जगी है कि अब सरकार से कुछ राहत मिल सकती है. राहत पैकेज के लिए हर कोई केंद्र सरकार की ओर टकटकी लगाये बैठा हुआ है.
राज्य सरकार ने भी पूरे राज्य को सूखाड़ घोषित कर रखा है. क्षेत्र के किसानों को भी उम्मीद है, कि सूखाड़ राहत के तहत उन्हें सरकार से राहत मिलेगी. सरायकेला खरसावां जिला पदाधिकारी द्वारा केंद्रीय टीम को उपलब्ध कराये गये आंकड़ों पर नजर डाले तो जिला में सूखाड़ का सबसे अधिक असर सरायकेला प्रखंड पर पड़ा है, जबकि कुचाई में सबसे कम. केंद्रीय टीम को अक्तूबर माह में सूखाड़ के असर पर प्रखंड वार किये गये सर्वे के आधार पर रिपोर्ट तैयार कर सौंपा गया है.
इस रिपोर्ट में उपलब्ध कराये गये आंकड़ों के अनुसार सरायकेला खरसावां जिला में औसतन 41.52 फीसदी धान की फसल बर्बाद हुई है.
सरकारी आंकड़ों पर नजर डाले तो सरायकेला प्रखंड में 51.40 फीसदी, ईचागढ़ प्रखंड में 48 फीसदी, कुकडू प्रखंड में 44.40 फीसदी, चांडिल प्रखंड में 43.18 फीसदी, खरसावां प्रखंड में 43 फीसदी, राजनगर प्रखंड में 40.19 फीसदी, नीमडीह प्रखंड में 40.11 फीसदी, गम्हरिया प्रखंड में 38.46 फीसदी तथा कुचाई प्रखंड में 24.92 फीसदी फसल बर्बाद हुई है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष सरायकेला, कुचाई, राजनगर तथा ईचागढ़ प्रखंड में उपरी जमीन पर की गयी खेती की क्षति हुई है, जबकि खरसावां, गम्हरिया, चांडिल, नीमडीह व कुकडू प्रखंड में उपरी व मध्यम जमीन पर क्षति हुई है. समय पर बारिश नहीं होना सुखाड़ का प्रमुख कारण माना जा रहा है.
अगस्त से अक्तूबर तक हुई सामान्य से कम बारिश: कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार सरायकेला- खरसावां जिला में अगस्त से अक्तूबर माह तक सामान्य से कम बारिश हुई है. जिला प्रशासन के आंकड़ों को माने तो अगस्त माह में जिला का सामान्य वर्षापात 319.2 मिमी है.
जबकि इस वर्ष अगस्त माह में 153.8 मिमी वर्षापात दर्ज किया गया है, जो सामान्य वर्षापात से 165.4 मिमी कम है. सितंबर माह में जिला का सामान्य वर्षापात 186.9 मिमी है. जबकि इस वर्ष सितंबर माह में 101.4 मिमी बारिश हुई है, जो सामान्य से 85.5 मिमी कम है. अक्तूबर में जिला में बारिश नाम मात्र की हुई है. अक्तूबर माह में जिला का सामान्य वर्षापात 52.7 मिमी है, जबकि इस वर्ष अक्तूबर माह में 52 मिमी कम वर्षा हुई.
9,358 किसानों ने कराया फसल बीमा: फसल बीमा योजना के तहत सरायकेला खरसावां जिला के नौ प्रखंडों में कुल नौ हजार 358 किसानों ने अपने फसल का बीमा कराया है. जिला सहकारिता पदाधिकारी से प्राप्त प्रतिवेदन के आधार पर मिली जानकारी के अनुसार जिला में 9,358 किसानों ने 10 हजार 650.48 एकड़ जमीन पर लगी धान की फसल का बीमा कराया है. इसके लिए किसानों ने प्रीमियम की राशि के रुप में 18 लाख, 31 हजार 882 रुपये का भुगतान किया है.
पेयजल की समस्या से निपटने की तैयारी शुरू: सुखाड़ के कारण अगले साल अप्रैल मई में पेयजल की समस्या उत्पन्न हो सकती है. संभावित पेयजल की समस्या से निपटने के लिए अभी से ही तैयारी शुरू कर दी गयी है. डीसी ने डिजास्टर मैनेजमेंट सोसाइटी की बैठक कर जिला के 40 स्वास्थ्य उप केंद्र, दो सौ आंगनवाड़ी केंद्र, 77 स्कूलों में चापाकल गाड़ने का निर्देश जारी किया है.
पूर्वी व पश्चिमी सिंहभम में भी सूखाड़ का असर: सरायकेला खरसावां जिला के साथ- साथ पूर्वी व पश्चिमी सिंहभूम जिला में भी सूखाड़ का जबरदस्त असर है. सरकारी आंकड़ों में पश्चिमी सिंहभूम में जहां 61.90 फीसदी सूखाड़ दर्शाया गया है.
वहीं पूर्वी सिंहभूम जिला में 53.60 फीसदी सूखाड़ दर्शाया गया है. सरकारी आंकडों के अनुसार कोल्हान में सूखाड़ का सबसे अधिक असर पश्चिमी सिंहभूम में देखा जा रहा है. पश्चिमी सिंहभूम जिला के तांतनगर, झींकपानी, टोंटो, मंझारी, हाटगम्हरिया, चक्रधरपुर, बंदगांव, गोइलकेरा, सोनुआ, मनोहपुर, आनंदपुर, गुदड़ी, जगनाथपुर, नोआमुंडी, मंझगांव, कुमारडुगी प्रखंड सूखाड़ से सबसे अधिक प्रभावित है तथा पूर्वी सिंहभूम जिला में गोलमुरी, पटमदा, पोटका, बोड़ाम, धालभूमगढ़, घाटशिला, मुसाबनी, डुमरिया, बहरागोड़ा व गुड़ाबांधा प्रखंड सूखाड़ के कारण काफी प्रभावित है. समय पर बारिश नहीं होने के कारण इन क्षेत्रों में धान की खेती पर बुरा प्रभाव पड़ा है.

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