खरसावां : खरसावां में प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा खरसावां रियासत के प्रथम शासक ठाकुर पद्मनाभ सिंह के शासन काल में 1672 के आसपास शुरु हुई. तब खरसावां में प्रभु जगन्नाथ खरसावां के दाश परिवार के घर पूजे जाते थे. बाद में 1880 के आसपास प्रभु जगन्नाथ को दाश परिवार के यहां से लाकर खरसावां राजमहल स्थित जगन्नाथ मंदिर में स्थापित किया गया. इसके पश्चात यहीं पर ही प्रभु जगन्नाथ की पूजा अर्चना होती है.
प्रभु जगन्नाथ के प्रतिमा स्थापना के संबंध में खरसावां के राजकुमार गोपाल नारायण सिंहदेव बताते है, कि दाश परिवार के किसी बुजुर्ग को स्वपA हुआ कि राजमहल के पीछे बह रही सोना नदी के तट पर जगन्नाथ के शक्ल में लकड़ी लगा हुआ है और उसी लकड़ी से प्रभु की प्रतिमा बनानी है. इसके पश्चात नदी से लकड़ी लाकर प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्र का रुप दे कर प्रतिमा स्थापित की गई.
जब तक खरसावां रियासत अस्तित्व में था, यहां रथ यात्रा का आयोजन राज परिवार द्वारा किया जाता था. देश की आजादी के पश्चात तमाम देशी रियासतों के भारत गणराज्य में विलय के बाद खरसावां में रथ यात्रा का आयोजन सरकारी खर्च पर होने लगा. इस वर्ष खरसावां के रथ यात्रा में सरकारी फंड से 36 हजार रुपये खर्च होगी.
रथ यात्रा के आयोजन में स्थानीय राजपरिवार के साथ- साथ स्थानीय लोगों का भी काफी सहयोग रहता है. भले ही कालांतर में पूजा के आयोजक बदल गये हो, परंतु आज भी यहां रथ यात्रा का आयोजन करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पुरानी परंपरा के अनुसार किया जाता है. रथ यात्रा के दौरान छेरा-पोहरा समेत हर तरह की रस्म अदायगी पूर्व की तरह खरसावां राजपरिवार के वर्तमान राजा ही करते है.