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सीएम से मिलना चाहते हैं खरसावां गोलीकांड के आंदोलनकारी

सरायकेला : खरसावां गोलीकांड के प्रत्यक्षदर्शी व आंदोलन में शामिल रहे 90 वर्षीय मांगु सोय अपने हक व अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं. मांगू सोय के पुत्र शंकर सोय ने शहीद दिवस पर खरसावां में मुख्यमंत्री से मिलने देने को लेकर उपायुक्त को पत्र लिखा है. मांगू सोय के पुत्र शंकर सोय ने […]

सरायकेला : खरसावां गोलीकांड के प्रत्यक्षदर्शी व आंदोलन में शामिल रहे 90 वर्षीय मांगु सोय अपने हक व अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं. मांगू सोय के पुत्र शंकर सोय ने शहीद दिवस पर खरसावां में मुख्यमंत्री से मिलने देने को लेकर उपायुक्त को पत्र लिखा है. मांगू सोय के पुत्र शंकर सोय ने कहा कि उनके पिता को आंदोलनकारी होने के बावजूद जिला प्रशासन से किसी प्रकार का सम्मान नहीं दिया जाता है. वर्षों पहले दिवंगत आंदोलनकारी दशरथ माझी व मांगु सोय खरसावां गोलीकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने गए थे.

जिला प्रशासन ने उन्हें आप कौन हैं कहते हुए श्रद्धांजलि देने से रोक दिया गया. इसके बाद वे वर्ष 2011 में मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सभी झारखंड आंदोलनकारियों व खरसावां गोलीकांड के घायलों को पहचान व प्रमाण पत्र देने की मांग की. अब तक आंदोलनकारी को न तो पहचान पत्र मिल पाया है, और न प्रमाण पत्र. घर में गिरने से घायल

हो गये हैं मांगू : विगत दस दिसंबर को घर में गिरने से मांगु सोय घायल हो गये हैं जिसके कारण उन्हें शरीर में काफी चोट आयी है. पुत्र शंकर सोय ने बताया कि उम्र अधिक होने के कारण वे अचानक गिर गये है, जिससे उन्हें चोट आयी है. इसी वर्ष हुआ दशरथ मांझी का निधन : सरकारी सम्मान के आस में खरसावां गोलीकांड के शिकार दशरथ मांझी का इसी वर्ष 13 अप्रैल 2017 को निधन हो गया है. स्व मांझी को जीवित काल में सरकारी स्तर से लालबत्ती तो दूर लाल कार्ड भी नहीं मिल पाया.आंदोलनकारियों को मिले राजकीय सम्मान : मांगु सोय के पुत्र शंकर सोय ने कहा कि उनका प्रशासन से यहीं मांग है कि आंदोलनकारियों को राजकीय सम्मान मिले. आंदोलनकारियों के निधन पर उनके समाधि स्थल में पार्क बनाया जाए, ताकि आंदोलनकारियों का नाम अमर हो.
कांड के प्रत्यक्ष गवाह हैं मांगू
खरसावां गोलीकांड का प्रत्यक्ष गवाह व गोली के शिकार सरायकेला प्रखंड के हेंसा गांव के मांगू सोय आज उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंच गये हैं. बावजूद एक जनवरी आते ही उनमें जोश का संचार हो जाता है. गोलीकांड के बारे में बताते हैं कि एक जनवरी को खरसावां हाट मैदान में सभा थी. सभा में मुख्य अतिथि के रूप में मारांग गोमके जयपाल सिंह आने वाले थे. सभा में सिंहभूम सहित पड़ोसी राज्य ओड़िशा से आदिवासी पहुंचे थे. अचानक खबर आयी कि मारांग गोमके नही आने वाले हैं, तभी भीड़ ने एक ज्ञापन सौंपने को निर्णय लिया. जैसे ही भीड़ आगे बढ़ी. दोनों छोर से तीर व गोलियों की बाछौर शुरू हो गयी. घटना में सैकड़ों आदिवासी मारे गये. कई जंगल जंगल छिप कर किसी तरह जानबचा कर वापस घर पहुंचे थे. गोलीकांड में एक गोली मुझे भी छूकर निकल गयी. मैं किसी तरह जान बचा कर वापस घर पहुंचा. घटना में बगल गांव भूरकूली के स्व दशरथ मांझी के पेट पर एक गोली लग गयी थी, जो पेट की अंतड़ियों को छेदते हुए निकल गयी थी. आज अलग राज्य का गठन हो चुका है. आंदोलन में शामिल लोगों को सरकार ने कोई सुधि नहीं ली. लाल बत्ती तो दूर लाल कार्ड तक नहीं मिल पाया है. सम्मान के नाम पर सिर्फ शॉल दिया गया था.

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