मनोहरपुर. 20 सालों से गुहार लगा रहे हैं ग्रामीण, पुलिया नहीं बनने से बढ़ रहा आक्रोश
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बरसात में कैद हो जाते हैं सारंडा के कई गांव
मनोहरपुर. 20 सालों से गुहार लगा रहे हैं ग्रामीण, पुलिया नहीं बनने से बढ़ रहा आक्रोश नदी-नाले का लाल पानी ही बना सारंडा वासियों की जिंदगानी मनोहरपुर : मनोहरपुर प्रखंड के सारंडा के 56 गांव को चिह्नित कर 248 करोड़ की लागत से एक्शन प्लान चलाया गया. लेकिन कई गांवों में आज भी बुनियादी सुविधाओं […]
नदी-नाले का लाल पानी ही बना सारंडा वासियों की जिंदगानी
मनोहरपुर : मनोहरपुर प्रखंड के सारंडा के 56 गांव को चिह्नित कर 248 करोड़ की लागत से एक्शन प्लान चलाया गया. लेकिन कई गांवों में आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. मनोहरपुर प्रखंड के सारंडा क्षेत्र अंतर्गत गांव सोदा, टीमरा, लेमरे, राजबेड़ा, कसियापेचा, बहदा समेत कई गांव ऐसे हैं जहां एक्शन प्लान के बाद भी विकास कोसों दूर रह गया है. सोदा गांव के मुंडा माठु चेरवा ने बताया कि मूलभूत सुविधा के अभाव ने नारकीय जीवन जी रहे हैं. कभी कभी ख्याल आता हैं कि पूरे परिवार सहित सारंडा छोड़कर अन्यत्र चले जाये. ताकि हमें भी आम लोगों की जिंदगी जीने का हक मिले. बरसात के दिनों में पूरा गांव टापू बन जाता है.
प्रखंड अंतर्गत छोटानागरा और गंगदा पंचायत के कई गावों में भी लोग मूलभूत सुविधा के लिए दर दर भटकने को विवश हैं. सोदा गांव छोटानागरा मुख्य सड़क से दो किमी दूर कोयना नदी के पार अवस्थित है. यहां की जनसंख्या 800 के करीब एवं परिवार की संख्या 129 है. यहां आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. गांव में शिक्षित लोगों की संख्या महज डेढ दर्जन ही है. जीविकोपार्जन का मुख्य साधन खेती है. 70 फीसदी परिवार खेती पर निर्भर हैं. अत्यंत गरीब तबके के परिवारों का भरण-पोषण वनोत्पाद से होता है.
यहां की मुख्य समस्या आवागमन की है. गांव तक पहुंचने के लिए कोयना नदी पार करना पड़ता है. बरसात के दिनों में नदी अपने उफान से भयंकर रूप ले लेती है. इस दौरान अगर किसी व्यक्ति की तबीयत खराब हो जाये तो इलाज कराने में ग्रामीणों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ग्रामीणों द्वारा पुल निर्माण की मांग विगत 20 सालों से ज्यादा समय से की जा रही है. वर्ष 2016 में पुल का निर्माण कार्य शुरू किया गया लेकिन कार्य बीच में ही रूक गया.
टीमरा गांव की भी आधी जनसंख्या नदी पार में बसी हुई है. उनको भी इसी समस्या से जुझना पड़ रहा है. ग्रामीणों को मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए नदी पार करना पड़ता है. गांव में आठ नलकूप हैं, लेकिन सभी खराब पड़े हैं. पेयजल के लिए एक पुराना कुआं है, जो अंतिम सांसें ले रहा है. कुआं का पानी मुंडा टोला के लोग इस्तेमाल करते हैं. गांव के बाकी टोला सुरगिया के ग्रामीण नदी का पानी ही पीते हैं. गांव में एक स्कूल तो है, लेकिन शिक्षकों के अनियमित रहने है कारण ढंग से संचालित नहीं होता.
लेमरे गांव और मुख्य सड़क के बीच भी कोयना नदी पड़ती है. गांव में केवल एक मिडिल स्कूल स्कूल है. बरसात के दिनो में ग्रामीणों को गांव में ही कैद होकर रहना पड़ता है. अत्यंत आवश्यक कार्य होने पर गांव से शहर जाने के लिए जंगल के रास्ते 7 किमी दूरी तय कर दुइया गांव आना पड़ता है. इसके बाद यहां से गाड़ी लोग पकड़ते है. गांव में पक्की सड़क नहीं है.
राजाबेड़ा गांव में पक्की सड़क नहीं है. कसियापेचा गांव में गरीबी व अशिक्षा के साथ बुनियादी सुविधाओं का अभाव हैं. गांव में 12 नलकूप है. जिसमें दो से ही पानी निकलता है. बहदा गांव तक पहुंचने के लिए सड़क तक नहीं है. कच्ची सड़क काफी खराब हैं. लोग नदी का पानी पीते हैं.
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