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विशेषज्ञ चिकित्सकों की है कमी

साहिबगंज : स्वास्थ्य हमारी बुनियादी सुविधाओं का एक हिस्सा है. मगर जिले की स्वास्थ्य सुविधाओं को देख कर लगता है कि यहां की चिकित्सीय व्यवस्था भगवान भरोसे है. तभी तो जिले की तकरीबन 11 लाख की आबादी महज 60 चिकित्सकों पर निर्भर है. इनमें से दो चिकित्सक स्टडी लीव पर हैं. जिस कारण जिले के […]

साहिबगंज : स्वास्थ्य हमारी बुनियादी सुविधाओं का एक हिस्सा है. मगर जिले की स्वास्थ्य सुविधाओं को देख कर लगता है कि यहां की चिकित्सीय व्यवस्था भगवान भरोसे है. तभी तो जिले की तकरीबन 11 लाख की आबादी महज 60 चिकित्सकों पर निर्भर है. इनमें से दो चिकित्सक स्टडी लीव पर हैं.

जिस कारण जिले के विभिन्न स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज को आये मरीजों को बदहाली से निबटना पड़ता है. अधिकतर मामलों में मरीज को बाहर रेफर कर दिया जाता है.

सौ बेड का है सदर अस्पताल

जिले में 141 स्वास्थ्य उपकेंद्र, पीएचसी, सात सीएचसी, एक अनुमंडलीय अस्पताल राजमहल, एक रेफरल अस्पताल बरहेट, एक सौ बेड वाला सदर अस्पताल व एमसीएच है.

पांच में तीन डॉक्टर ने दिया योगदान

स्वास्थ्य समस्या को देखते हुए तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री हेमलाल मुमरू की पहल पर जिले में पांच डॉक्टरों का पदस्थापन हुआ था. इनमें से तीन डॉक्टरों ने ही योगदान दिया है.

डॉक्टर एक, आबादी 118333: एक डॉक्टर के भरोसे जिले की 1,18,333 आबादी को स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराया जा रहा है.

72 पद स्वीकृत, मात्र 11 कार्यरत

सरकारी आंकड़ों के अनुसार जिले में करीब दो सौ डॉक्टरों के पद सृजित हैं. इनमें नियमित डॉक्टरों के 72 स्वीकृत पद के विरुद्ध 49 डॉक्टरों में महज ग्यारह ही कार्यरत हैं. बताया जाता है कि कम वेतनमान मिलने से कई अनुबंधित डॉक्टर पलायन कर चुके हैं.

झोलाछाप डॉक्टर उठा रहे फायदा

डॉक्टर की कमी के कारण जिला मुख्यालय के अलावा सुदूर ग्रामीण इलाकों के मरीजों को सबसे अधिक परेशानी होती है. जिसका फायदा झोला छाप डॉक्टरों को मिल रहा है. मरीज इन झोला छाप डॉक्टर व नीम हकीम के चक्कर में फंस अपनी जान गंवा रहे हैं.
पीएचसी व सीएचसी सहित सदर अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों के अधिकांश पद रिक्त है.

जानकारी के अनुसार वर्तमान में स्री, शिशु, हड्डी, हृदय रोग विशेषज्ञ, यूरोलॉजिस्ट, पैथोलॉजिस्ट एमबीबीएस, न्यूरोलॉजिस्ट, रेडियो लॉजिस्ट नहीं हैं.

रोज पहुंचते हैं 250 मरीज

सदर अस्पताल में रोजाना दो सौ से 250 मरीज इलाज कराने पहुंचते हैं. ओपीडी में रोज 10-12 की जगह मात्र पांच-छह डॉक्टर ही उपलब्ध रहते हैं.

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