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कोलकाता से डीपीआर बनाने के लिए साहिबंगज पहुंची टीम

दिसंबर माह के अंत तक सौंपेगी रिपोर्ट साहिबगंज : साहिबगंज जिले के मंडरो प्रखंड में दुलर्भ जीवाश्म के संरक्षण के लिए तारा व गुरमी पहाड़ स्थित 33 हेक्टेयर वनभूमि पर फॉसिल्स पार्क जीवाश्म उद्यान ईको टूरिज्म पार्क का निर्माण 800 करोड़ की लागत से होगा. जिसका डीपीआर बनाने के लिये कोलकाता के जोसकोन सर्विस के […]

दिसंबर माह के अंत तक सौंपेगी रिपोर्ट

साहिबगंज : साहिबगंज जिले के मंडरो प्रखंड में दुलर्भ जीवाश्म के संरक्षण के लिए तारा व गुरमी पहाड़ स्थित 33 हेक्टेयर वनभूमि पर फॉसिल्स पार्क जीवाश्म उद्यान ईको टूरिज्म पार्क का निर्माण 800 करोड़ की लागत से होगा. जिसका डीपीआर बनाने के लिये कोलकाता के जोसकोन सर्विस के टीम ध्रुव रंजन गोस्वामी के नेतृत्व में साहिबगंज पहुंची. मंडरो के फॉसिल्स पार्क के निरीक्षण करने के बाद मंगलवार संध्या छह बजे डीएफओ कार्यालय में बैठक कर रणनीति बनायी. बैठक के बाद वन विभाग के डीएफओ मनीष तिवारी ने कहा कि कोलकाता के जोसकोन सर्विस के टीम डीपीआर बनाने के लिये साहिबगंज आयी.

जहां 800 करोड़ की लागत से डीपीआर बनाने पर चर्चा हुई. उन्होंने कहा कि रोड मैप दिसंबर माह के अंत तक बना लिया जायेगा. जो जनवरी में पूरी रिपोर्ट डीपीआर का सर्वे के साथ सरकार को सौंप दी जायेगी. साथ ही साहिबगंज में 50 छात्रों का रिसर्च स्कोलरशीप शोधार्त का चयन किया जायेगा. जो बाहर से आने वाले लोगों को जानकारी देंगे. डॉ रंजीत सिंह ने कहा कि राजमहल क्षेत्र में फॉसिल्स के प्रभाव के बारे में जानकारी दी जायेगी. साहिबगंज जिले के मंडरो प्रखंड के तारा व गुरमी पहाड़ पर फॉसिल्स पार्क और ईको टूरिज्म पार्क निर्माण के लिए तैयार डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट को सरकार ने स्वीकृति मिल गयी है. फिलहाल चहारदीवारी निर्माण विभाग की ओर से प्रारंभ कराया जायेगा. इस मौके पर डॉ रंजीत सिंह, टीम के सदस्य ध्रुव रंजन गोस्वामी, रेंजर एलके दास उपस्थित थे.

पार्क का नाम तय : पार्क का नाम बीरबल साहनी फॉसलिस पार्क रखा गया है. बीरबल साहनी रिसर्च इंस्टीट्यूट लखनऊ के निदेशक प्रो सुनील वाजपेयी के निर्देश पर वैज्ञानिकों के तीन सदस्यीय दल डॉ अमित कुमार घोष, डॉ श्रीकांत मूर्ति और डॉ एस सुरेश कुमार पिल्लई के साथ वन प्रमंडल पदाधिकारी साहिबगंज ने पार्क केलिये प्रस्तावित स्थल भ्रमण 11 व 12 नवंबर को किया था.

टीम ने इस स्थल को उपयुक्त बताया था. भूगर्भशास्त्री ओल्डहम और मॉरिस ने 1833 और बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पालाबॉटनी के संस्थापक प्रो बीरबल साहनी ने 1928 में राजमहल की पहाड़ियों पर अति दुलर्भ फॉसिल्स का जिक्र किया था. साथ ही इसके संरक्षण की बात कही थी. दरअसल, वन विभाग ने दस आर्किटेक्ट कंपनियों को प्राक्कन बनाने का निर्देश दिया था.

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