–मिट्टी से घरों की रंगाई-पुताई का काम शुरू –श्रद्धा व देवताओं के प्रति विश्वास का प्रतीक है सोहराय संवाददाता, साहिबगंजजिले के आदिवासी गांवों में सोहराय पर्व को लेकर काफी उत्साह है. पर्व को लेकर ग्रामीण अपनी संस्कृति के अनुरूप मिट्टी से घरों की रंगाई-पुताई शुरू कर दिये हैं. कहीं दीवार पर सफेद मिट्टी तो कहीं काली मिट्टी से घर को आकर्षक रूप से पुताई किया जा रहा है. पर्व पर नये चावल की हडि़या का विशेष महत्व है. सोहराय पर्व पर टमाक, मांदर, झांझर और बांसुरी आदि बजाने की परंपरा है. सोहराय पर्व को वंदना भी कहा जाता है. इसे भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक, पशु और प्रकृति के प्रति श्रद्धा एवं देवी-देवताओं के प्रति अटूट विश्वास का प्रतीक है. सोहारय पर्व धान का फसल काटने के बाद पूस माह में मनाये जाना वाला पर्व है. इस अवसर पर प्रत्येक संताली परिवार अपने परिजनों बेटी, बहन एवं अन्य रिश्तेदारों को आमंत्रित करते हैं. खास कर यह पर्व बहन-भाई के पवित्र रिश्तों का भी घोतक है. छह दिनों तक चलने वाले पर्व में न केवल देवी-देवताओं एवं इष्ट देव की पूजा की जाती है बल्कि गाय, भैंस, बैल, हल एवं अन्य प्रकार के औजारों की भी पूजा करते हैं. इस पर्व के अलग-अलग दिनों की अलग-अलग महत्ता है. सोहराय गोंड टंडी से प्रारंभ होता है एवं बेझा टंडी में समाप्त होता है. गांव के सभी लोग मांझी, पराणिक जोरा टंडी में सोहराय के स्वागत को पहुंचते हैं. जहां नायकी गाय के गोबर से लीप कर 14 पिंड बना कर सिंदूर से घेर कर मंत्रोच्चार के साथ देवताओं एवं इष्ट देव मरांग देवताओं आदि के नाम पर मुरगा की बली चढ़ाते हैं और नाचते-गाते हैं.
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ओके::फलैग-सोहराय पर्व को लेकर तैयारी शुरू
–मिट्टी से घरों की रंगाई-पुताई का काम शुरू –श्रद्धा व देवताओं के प्रति विश्वास का प्रतीक है सोहराय संवाददाता, साहिबगंजजिले के आदिवासी गांवों में सोहराय पर्व को लेकर काफी उत्साह है. पर्व को लेकर ग्रामीण अपनी संस्कृति के अनुरूप मिट्टी से घरों की रंगाई-पुताई शुरू कर दिये हैं. कहीं दीवार पर सफेद मिट्टी तो कहीं […]
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