राम प्रसाद सिन्हा
पाकुड़ : अनुसूचित जनजातीय सुरक्षित सीट राजमहल प्रदेश के मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा का विषय बन गया है. ऐसा इसलिए कि कांग्रेस का झंडाबरदार विजय हांसदा को पार्टी का प्रत्याशी बनाकर मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने एक नया प्रयोग किया है. यदि मुख्यमंत्री का प्रयोग यूपीए की प्रयोगशाला में फिट बैठा तो मुख्यमंत्री की बल्ले-बल्ले होगी यदि प्रयोग असफल हुआ तो न केवल पार्टी वरन मुख्यमंत्री सहित झामुमो के कई सिपहसलार के भविष्य संताल परगना में प्रभावित होंगे.
प्रतिष्ठा का सीट मान कर ही लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा चुनावी सभा राजमहल संसदीय क्षेत्र के साहिबगंज व पाकुड़ जिले में मुख्यमंत्री द्वारा किया गया है. यदि यूपीए गंठबंधन दल के प्रत्याशी झामुमो के विजय हांसदा की जीत हुई तो पार्टी में एक नयी फौज खड़ी होगी. यदि हार हुई तो पूरे संताल परगना प्रमंडल में झामुमो के सेहत पर प्रतिकूल असर भी पड़ेगा.
राजमहल संसदीय सीट पर यूपीए गंठबंधन की जीत होने पर पार्टी कोटे के ही मंत्री साइमन मरांडी के आगामी भविष्य को लेकर भी यहां राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं जोरों पर है. क्योंकि मंत्री श्री मरांडी शुरू से ही झामुमो प्रत्याशी का न केवल विरोध कर रहे है वरन दूसरे पार्टी के प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित करने को लेकर अपने समर्थकों व कार्यकर्ताओं को दिशा निर्देश भी दे दिया है. यही वजह है कि मंत्री श्री मरांडी के समर्थक व कार्यकर्ता झामुमो के प्रचार-प्रसार से दूर और एक राष्ट्रीय पार्टी के प्रत्याशी को जिताने में जी-जान से लगे हुए है.
यूपीए गठबंधन के ही कांग्रेस का एक मजबूत धड़ा, अब तक न तो प्रत्याशी और न ही गठबंधन दल को जिताने के लिए खासकर पाकुड़ जिले में अब तक मैदान में मतदाताओं के सामने नहीं आया है. कांग्रेस के स्थानीय नेताओं की शिथिलता जहां यूपीए गंठबंधन के लिए परेशानी का सबब बन रही है, वहीं कांग्रेस के दूसरे जिले के नेता सरफराज अहमद खास कर अल्पसंख्यक क्षेत्रों में यूपीए गंठबंधन धर्म निभाने के लिए बीते दो दिनों से जी-जान से लगे हुए है.
वैसे राजद की पाकुड़ जिले में कोई खास पैठ न तो ग्रामीणों में और न ही मतदाताओं में है जिसका वे यूपीए प्रत्याशी को फायदा दिला सके. प्रत्याशी की घोषणा के बाद झामुमो से जुड़े कई आदिवासी नेता यथा लिट्टीपाड़ा के दिनेश मुमरू, प्रसाद हांसदा, महेशपुर प्रखंड के दुर्गा मरांडी, मोजेस टुडू सहित दर्जनों झामुमो छोडकर भाजपा के पक्ष में प्रचार प्रसार कर रहे है. इन सारी परिस्थितियों को लेकर न केवल राजनीतिक गलियारों में बल्कि झामुमो के ही कई नेता दबे जुवां से यह कहते नहीं थकते कि राजमहल संसदीय सीट पार्टी से ज्यादा मुख्यमंत्री के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है.