साहिबगंजः राजमहल लोकसभा सीट शुरू से अपनी अनिश्चितता के लिए मशहूर रहा है. यहां जनता की खामोशी प्रत्याशियों के पसीने छुड़ा देती है. राजनीतिक पंडितों के सारे समीकरण नतीजों के साथ धराशायी हो जाते है.
लेकिन इस बार 2014 लोकसभा चुनाव कई मायने में नया इतिहास रचने जा रहा है. एक तरफ जहां दल-बदलु प्रत्याशियों के कारण कार्यकर्ता असमंजस में है, वहीं दूसरी तरफ कद्दावर नेताओं की प्रतिष्ठा दावं पर लगी है. ऐसे में ये कद्दावर नेता अपनी साख बचाने के लिए बागी तेवर अपना रहे हैं. विजय हांसदा के झामुमो प्रत्याशी बनाये जाने से पहले हेमलाल मुमरू का झामुमो प्रत्याशी बनने का दावा फेल हुआ. अपने पुत्र दिनेश मरांडी को टिकट दिलाने की कोशिश में लगे साइमन मरांडी का सपना भी टूट गया.
ऐसे में हेमलाल ने तो भाजपा का दामन थाम लिया. साइमन ने बागी तेवर अपनाया. इन्होंने पार्टी निर्णय के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. पुत्र के प्लेसमेंट नहीं होने से खिन्न साइमन नाराज है. इधर कांग्रेस के कद्दावर नेता आलमगीर आलम गंठबंधन के तहत सीट झामुमो के कोटे में जाने और विजय हांसदा के झामुमो प्रत्याशी बनने से उनके खेमे के तेवर तल्ख है. इधर भाजपा में हेमलाल के आने से दिल में दरार पड़ने लगी. देवीधन बेसरा पुन: टिकट नहीं मिलने से नाराज हो गये. पूर्व भाजपा सांसद सोम मरांडी झामुमो में चले गये है. झाविमो में प्रत्याशी डॉ अनिल मुमरू के टिकट दिये जाने से भी पार्टी में कई लोग नाराज है. इन समीकरणों ने दलों के कार्यकर्ताओं में ऊहापोह की स्थिति उत्पन्न कर दी है. फिलहाल खामोश जनता दल-बदलू के पैंतरे पर कड़ी नजर जमाये है.