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न सड़क न पानी, फिर भी 85 फीसदी से अधिक मतदान

ओरमांझी प्रखंड के उत्तर दिशा में स्थित जावाबेड़ा गांव में बना बूथ रांची लोकसभा क्षेत्र का अंतिम बूथ है. बुनियादी सुविधाओं से वंचित इस गांव में कुल 449 वोटर हैं. इसमें से 386 लोगों ने मतदान किया.

मनोज सिंह,(रांची).

ओरमांझी प्रखंड के उत्तर दिशा में स्थित जावाबेड़ा गांव में बना बूथ रांची लोकसभा क्षेत्र का अंतिम बूथ है. इसके बाद हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र पड़ता है. बुनियादी सुविधाओं से वंचित इस गांव में कुल 449 वोटर हैं. इसमें से 386 लोगों ने मतदान किया. पहाड़ों के बीच स्थित गांव के राजकीयकृत उत्क्रमित मध्य विद्यालय में बूथ बना है. ओरमांझी से कुच्चू जाने के क्रम में सात-आठ किलोमीटर उत्तर दिशा में यह गांव बसा है. गांव तक जानेवाली सड़क जर्जर है. शुद्ध पेयजल की भी व्यवस्था नहीं है. गांव में स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं है. इलाज के लिए लोगों को दस किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. बेरोजगारी के कारण लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर जाते हैं. शनिवार को इस गांव में लोकतंत्र के इस महापर्व का उत्साह देखते ही बना.

रोज समस्याओं से जूझनेवाले लोग के चेहरे पर परेशानियों को लेकर कोई शिकन नहीं दिख रही थी. मतदानकर्मियों का उन्होंने दिल खोल कर स्वागत किया. उनके रहने और खाने-पीने में कोई दिक्कत नहीं हो, इसका ख्याल रखा जा रहा था. गांव में कोई होटल व दुकान नहीं होने के कारण ग्रामीणों ने ही उनके खाने-पीने की व्यवस्था की. नाश्ता से लेकर चाय तक की उत्तम व्यवस्था थी. गांव के आसपास में कई टोला बसे हैं. हर टोले के लोग यथासंभव सहयोग कर रहे थे. हर वर्ग के लोगों में चुनाव को लेकर काफी उत्साह था. सुबह से ही कतारबद्ध हो लोग मतदान के लिए अपनी बारी का इंतजार करते दिखे. यहीं कारण है कि एक ओर शहरों में 55 से 60 फीसदी तक मत पड़े. वहीं, इस सुदूर गांव में 86 फीसदी लोगों ने मताधिकार का प्रयोग किया. कुछ लोग गांव में नहीं थे, इस कारण मतदान नहीं कर सके. वर्ना 386 से अधिक वोट पड़ जाते. यह गांव पूर्व सांसद रामटहल चौधरी के पैतृक गांव कुच्चू से करीब सात किलोमीटर दूर है. वहीं कुच्चू में ही राज्यसभा के वर्तमान सांसद आदित्य साहु का भी घर है. भाजपा के नेता वहां प्रचार के लिए भी गये थे. गांव वालों ने उनसे सड़क की मांग भी की थी.

20 साल पहले बनी थी सड़क :

गांव की पूर्व पारा शिक्षिका मुन्नी रानी मांझी कहती है कि 30 साल पहले शादी कर जब गांव आयी थी. उस समय रास्ते की जगह पगडंडियां थी. बाद में गांव के लोगों ने ही श्रमदान कर कच्चा रास्ता बनाया. पहाड़ को काट कर चलने के लायक रास्ता बनाया . बाद में रामगढ़ जिले से एक रास्ता जोड़ा गया. 20 साल पहले सड़क बनायी गयी थी. रास्ता बनने के बाद इधर से पत्थर ढोनेवाला हाइवा चलने लगे. इस कारण सड़क जर्जर हो गयी. युवक मंजय बेदिया का कहते हैं कि इलाज कराने के लिए लोगों को 10 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. अगर कोई बीमार पड़ जाये, तो सड़क में ही दम तोड़ देगा. इसके बावजूद मतदान को लेकर उत्साह में कमी नहीं है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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