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National Science Day: राष्ट्रीय विज्ञान दिवस आज, झारखंड के बच्चों के इन Idea से आयेगा बदलाव, पढ़ें खास रिपोर्ट

National Science Day: वर्ष 1987 से यह दिवस देशभर के स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, वैज्ञानिक, तकनीकी, चिकित्सा और अनुसंधान से जुड़े संस्थानों में मनाया जाता रहा है.

रांची, अभिषेक रॉय : आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस है. वर्ष 1928 में इसी दिन नोबेल पुरस्कार विजेता और भौतिक विज्ञानी सीवी रमन ने रमन प्रभाव की खोज की थी. वर्ष 1987 से यह दिवस देशभर के स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, वैज्ञानिक, तकनीकी, चिकित्सा और अनुसंधान से जुड़े संस्थानों में मनाया जाता रहा है. इसका उद्देश्य है : वैज्ञानिक सोच को बढ़ाना, विज्ञान को लोकप्रिय बनाना और लोगों में वैज्ञानिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देकर नवीन गतिविधियों को प्रोत्साहित करना. इस वर्ष का थीम है : वैश्विक कल्याण के लिए वैश्विक विज्ञान.

झारखंड के बच्चों
के इन आइडिया से
आयेगा बदलाव

  • रांची के वसीम अंसारी ने स्टैंडिंग बार के साथ सीपी चेयर तैयार किया है. इसे मस्तिष्क पक्षाघात (सेरेब्रल पाल्सी) से पीड़ित बच्चों को काफी मदद मिलेगी. पीड़ित कुर्सी में लगे बेल्ट के सहारे आसानी से खड़े हो सकते हैं.

  • देवघर के शुभम सौरभ ने डुअल रिमूवेबल लेंस के साथ मल्टी-फंक्शनल आइ ग्लास तैयार किया है. बरसात और ठंड के दिनों में कांच पर जमनेवाली भाप से छुटकारा मिलेगा. इससे देखने में आसानी होगी.

  • बोकारो की समायरा सौरभि का रोवर किसानों के लिए काफी राहत देनेवाला है. इस रोवर से बारिश और गर्मी के दिनों में खेत की मिट्टी को तैयार करने में किसानों को मदद मिलेगी. इसे ऐप के जरिये भी संचालित किया जा सकता है.

  • पूर्वी सिंहभूम की श्रुति सिंह ने शॉक अब्जॉर्बर के साथ सीढ़ियों पर इस्तेमाल किये जाने वाले स्ट्रेचर को तैयार किया है. इसकी मदद से मरीजों को उबड़-खाबड़ जमीन पर बिना झटका लगाये आसानी से ले जाया जा सकता है.

प्लांडू की तकनीक से किसान खुद तैयार कर सकते हैं खाद

प्लांडू अनुसंधान केंद्र पारंपरिक खेती के लिए खाद तैयार कर रहा है. नाम दिया है : शिवंश. इस खाद को किसान 18 दिनों में तैयार कर सकते हैं. इससे महंगे रसायनों के इस्तेमाल से राहत मिलेगी. साथ ही कम से कम पानी के इस्तेमाल से अच्छी फसल तैयार कर सकेंगे. शिवंश खाद को मिट्टी, धूप और छांव के संतुलित वैज्ञानिक सिद्धांत से तैयार किया जा रहा है. किसान खेती के बाद बची सूखी सामग्री, हरी घास या खर-पतवार, पानी वाले पौधे, घर में इस्तेमाल के बाद बची सब्जियां या फल और ताजा गोबर के इस्तेमाल से शिवंश खाद बना सकते हैं. करीब डेढ़ मीटर जगह में छह से आठ परत (सूखी सामग्री, हरी सामग्री और गोबर) बनाकर इसे तैयार किया जा सकता है. हालांकि अंतिम परत भी सूखा होना चाहिए और अच्छी तरह से ढका होना चाहिए. तैयार हो रहे खाद के तापमान का नियमित परीक्षण जरूरी है. एक-एक दिन के अंतराल पर परतों को पलटने से 18 दिनों में यह खाद तैयार हो जायेगा. इसके बाद किसान बोरी में बांध कर सामान्य तापमान वाले क्षेत्र में इकट्ठा कर जुताई, रोपाई और फसल के ऊपर इसका छिड़काव कर सकते हैं. साथ ही अब फसलों में ड्रोन तकनीक से कीटनाशक का छिड़काव किया जा रहा है. इससे खेती-किसानी को फायदा हो रहा है.

प्लांडू स्थित संस्थान के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डॉ एस कुमार ने कहा कि ऑर्गेनिक खेती में विज्ञान का प्रभाव बढ़ा है. पारंपरिक खेती अब कृषि पद्धति के सिद्धांत में बदल चुकी है. इस तरह के खाद के साथ-साथ फसल भंडारण को भी प्रभावी बनाया जा रहा है. कृषि में प्रचलित रासायनिक खेती विज्ञान के अतिरिक्त एक अन्य सैद्धांतिक व्यवस्था विकसित हो रही है. इसके पीछे भी एक विज्ञान है.

बीआइटी मेसरा की सुरभि ने सैटेलाइट डाटा से तैयार किया फॉरेस्ट टेक

बीआइटी मेसरा के डीन रिसर्च एंड डेवलपमेंट डॉ सी जगन्नाथन के मार्गदर्शन में रिसर्च स्कॉलर सुमेधा सुरभि सिंह ने वन के बदलते स्वरूप का अध्ययन करने की तकनीक तैयार की है. इससे यह आकलन होगा कि जंगल में आग लगने के बाद कौन सा पेड़ जीवित रहा, किनसे पत्तियां दोबारा निकलीं या उन जगहों पर दूसरे पेड़ ने जगह ली या नहीं. यह आकलन किसी निश्चित जगह में पिछले 20 वर्षों के सैटेलाइट डाटा का इस्तेमाल कर किया जा सकता है. सुमेधा ने बताया कि हाल ही में बांधवगढ़ नेशनल फॉरेस्ट के सैटेलाइन डेटा-मोडिइज (2002 से 2022) का अध्ययन किया. इलाके में मौजूद पेड़ में रिमोट सेंसिंग की मदद से अलग-अलग वेवलेंथ जैसे : ग्रीन बैंड (हरियाली का आकलन करने के लिए), रेड बैंड (पेड़ में मौजूदा ऊर्जा के आकलन के लिए) और नीयर इंफ्रारेड से सिग्नल हासिल किये.

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सैटेलाइट से भेज गये इस वेवलेंथ से पेड़-पौधों के जमीनी स्तर की गतिविधि के आकलन करने में मदद मिली है. बिग डेटा को खंगालने के लिए 20 वर्षों के सैटेलाइट डेटा के प्रत्येक 16 दिनों के आकलन का इस्तेमाल किया गया. इससे पेड़-पौधे की फेनोलॉजी यानी जले हुए पेड़ में वापस पत्ते आये या नहीं, आये तो कितने दिनों के बाद और पेड़ के जलने के बाद कितने दिनों बाद स्वस्थ पेड़ के रूप में विकसित हुए का आकलन हो सका है. सुमेधा को इसके लिए आइआइटी खड़गपुर में बेस्ट पेपर का पुरस्कार मिल चुका है.

मीट, मछली और अंडे का विकल्प तैयार कर रहा आइएचएम रांची

खान-पान को पौष्टिक और प्रभावी बनाने में फूड टेक्नोलॉजी तेजी से वैज्ञानिक पद्धतियों को अपना रही है. प्राकृतिक जड़ी-बूटी और हरी साग-सब्जियों में फूड टेक का इस्तेमाल कर प्लांट बेस्ड मीट तैयार किया जा रहा है. यह वीगन कल्चर को अपना रहे लोगों के लिए उपयोगी है. आइएचएम रांची के प्राचार्य डॉ भूपेश कुमार ने बताया कि वीगन कल्चर से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि पशु कल्याण और खाद्य पारिस्थितिकी तंत्र में क्रांति आ रही है. आइएचएम रांची भी वेजीकेन और वेज बाइट्स जैसी खाद्य सामग्री को तैयार में जुटा हुआ है. इन्हें तैयार करने में प्लांट प्रोटीन का इस्तेमाल किया जा रहा है. वहीं मीट, मछली और अंडे के विकल्प भी प्लांट प्रोटीन से तैयार किये जा रहे हैं. सबसे प्रचलित प्लांट बेस्ड प्रोटीन में सोया (जैसे सोया बीन्स, सोया नट्स, सोया चंक्स, सोया चाप, सोया दूध, सोया आटा, टोफू, टेंपेह) एक सुपरफूड विकल्प है.

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