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कमर और रीढ़ के दर्द को सिर्फ हड्डी की बीमारी न समझें, गठिया भी हो सकता है : डाॅ घोष

इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, कोलकाता के रूमेटोलॉजिस्ट डॉ परासर घोष ने बताया कि कमर और रीढ़ में दर्द को सिर्फ हड्डी की बीमारी न समझें.

रांची. इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, कोलकाता के रूमेटोलॉजिस्ट डॉ परासर घोष ने बताया कि कमर और रीढ़ में दर्द को सिर्फ हड्डी की बीमारी न समझें. यह दर्द गठिया की वजह से भी हो सकता है. सुबह सोकर उठने के बाद अगर कमर और रीढ़ में दर्द रहे, तो गठिया रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए. दर्द होने पर अक्सर लोग हड्डी की बीमारी का इलाज कराते हैं. ऐसे में देर होने से बीमारी की जटिलता बढ़ जाती है. डॉ घोष रविवार को करमटोली चौक स्थित आइएमए भवन में आयोजित झारखंड रूमेटोलॉजी एसोसिएशन के सम्मेलन जाराकॉन-24 में बोल रहे थे. सीएमएसी वेल्लोर से आये रूमेटोलॉजिस्ट और इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ जॉन मैथ्यू ने कहा कि स्क्लेरोडर्मा रूमेटोलॉजी व ऑटोइम्यून बीमारी है. इसमें चमड़ा कड़ा और रूखा हो जाता है. यह गठिया की बीमारी है. इसका समय पर इलाज जरूरी है. समय पर इलाज नहीं होने से जोड़ों में दर्द,अकड़न और हाथ-पैर में सूजन हो जाता है. पीजीआइ चंडीगढ़ के किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ मनीष राठी ने कहा कि ल्यूपस नेफ्राइटिस वात की बीमारी है. इसमें पहले किडनी से प्रोटीन का स्राव होता है, लेकिन बाद में क्रोनिक किडनी डिजीज हो जाता है. वहीं, रिम्स निदेशक डॉ राजकुमार ने कहा कि गठिया की बीमारी से बचाव के लिए जीवनशैली में बदलाव की जरूरत है. खानपान भी संतुलित और पौष्टिक होना चाहिए. एसोसिएशन के फाउंडर प्रेसिडेंट डॉ आरके झा ने कहा कि देश में 18 फीसदी लोग गठिया की बीमारी से ग्रसित हैं. नन कम्युनिकेबल डिजीज आयोजन समिति के सचिव डॉ देवनीश खेस ने कहा कि भागदौड़ की जिंदगी में लोगों की जीवनशैली बिगड़ गयी है. शारीरिक परिश्रम भी लोग नहीं कर रहे हैं. इससे गठिया की बीमारी हो रही है. ल्यूपस के मरीजों का अगर समय पर इलाज हो जाये, तो वह गर्भधारण कर सकती है.

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