Jharkhand News : राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के मान-सम्मान के लिए भारत मां के लाल अपना सर्वोच्च बलिदान दे देते हैं. भारत-पाक युद्ध 1971 में परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का (गुमला) के साथ रांची के अनगड़ा निवासी सैनिक डेविड तिग्गा भी शहीद हुए थे. इनको भी अलबर्ट एक्का की कब्र के बगल में ही दफनाया गया था. इनका नाम भी शहीद स्मारक में अंकित है. डेविड तिग्गा अनगड़ा के जोन्हा दुबलाबेड़ा के निवासी थे. डेविड तिग्गा बचपन से ही काफी बहादुर थे. देशभक्ति के जुनून में वे सेना में बहाल हुए थे. उन्होंने फौज में बिहार रेजिमेंट से अपना कार्य शुरू किया था, बाद में जब 14 गार्ड्स का गठन हुआ, तब लांसनायक अल्बर्ट एक्का के साथ डेविड सहित कई साथी वहां स्थानांतरित किए गए थे. 3 अगस्त को शहीद डेविड तिग्गा की जयंती है, लेकिन दुखद ये है कि ढूंढे इनकी तस्वीर तक नहीं मिलती. शहीद का गांव दुबलाबेड़ा जाने के लिए सड़क तक नहीं है.
अल्बर्ट एक्का और डेविड तिग्गा हो गए थे घायल
1971 की लड़ाई में 14 गार्ड्स को पूर्वी सेक्टर में अगरतल्ला से 6.5 किलोमीटर पश्चिम में गंगासागर में पाकिस्तान की रक्षा पंक्ति पर कब्जा करने का आदेश मिला था. भारत के लिए इस पोजिशन पर नियंत्रण करना बहुत आवश्यक था क्योंकि अखौरा पर कब्जा करने के लिए इसका काफी महत्व था. लांस नायक अल्बर्ट एक्का साथियों के साथ पूर्वी मोर्चे पर गंगासागर में दुश्मन की रक्षा पंक्ति पर हमले के दौरान बिग्रेड ऑफ द गार्ड्स बटालियन की अग्रवर्ती कम्पनी में तैनात थे. पाकिस्तानी भारतीय सैनिकों पर लाइट मशीनगन से गोलियां चला रहे थे. इन्होंने पाकिस्तानी बंकर पर धावा बोल दिया था. इस दौरान उन्होंने कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. इस कार्रवाई में अल्बर्ट एक्का और डेविड तिग्गा घायल हो गए थे. इसके बावजूद शत्रु के अनेक बंकर नष्ट करते हुए वे आगे बढ़ते चले गए.
शहीद हो गए थे डेविड तिग्गा
अपने लक्ष्य के अनुसार उत्तरी किनारे पर पहुंचे, लेकिन पाकिस्तानी सैनिकों ने दो मंजिला भवन से छिपकर गोलियां दागीं. 3 दिसंबर 1971 को इस गोलीबारी में डेविड तिग्गा सहित कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए थे. नौकरी के दौरान ही उसका विवाह हेलेन तिग्गा से हुआ था. डेविड तिग्गा जब शहीद हुये थे, उस समय उनकी पुत्री सुभानी तिग्गा मात्र डेढ़ साल की थी. शहीद के परिजनों को तत्कालीन सरकार ने पूरा सम्मान दिया था. पटना में उन्हें एक आवास भी आवंटित किया गया था. अल्बर्ट एक्का और उनके सैनिकों का अदम्य साहस ही था कि एक भी पाकिस्तानी फौजी अगरतला में प्रवेश नहीं कर सके थे. इन्होंने बांग्लादेश को आज़ादी दिलवाई, लेकिन दुखद पहलू यह है कि शहीद के गांव दुबलाबेड़ा जाने का रास्ता आज तक नहीं बना है. गांव के लोग पगडंडियों और कच्चे रास्ते पर जाने को मजबूर हैं.
रिपोर्ट : जितेन्द्र कुमार, अनगड़ा, रांची