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128 नक्सली घटनाओं में थी कुंदन पाहन की तलाश
रांची : कुंदन पाहन की तलाश पुलिस को 128 नक्सली घटनाओं में थी. उसके खिलाफ रांची में 42, खूंटी में 50, चाईबासा में 27, सरायकेला में सात, गुमला में एक और रामगढ़ में एक केस दर्ज है. यह जानकारी रांची रेंज के डीआइजी एवी होमकर ने दी.सरेंडर करने के दौरान कुंदन पाहन से मिलने उसके […]
रांची : कुंदन पाहन की तलाश पुलिस को 128 नक्सली घटनाओं में थी. उसके खिलाफ रांची में 42, खूंटी में 50, चाईबासा में 27, सरायकेला में सात, गुमला में एक और रामगढ़ में एक केस दर्ज है. यह जानकारी रांची रेंज के डीआइजी एवी होमकर ने दी.सरेंडर करने के दौरान कुंदन पाहन से मिलने उसके रिश्तेदार भी पहुंचे थे. चाचा तरकन पाहन, चाची गुरूंदी देवी, चचेरा भाई महादेव पाहन सहित सात रिश्तेदार उससे मिले. हालांकि कुंदन पाहन के अपने परिवार का कोई सदस्य उससे मिलने नहीं पहुंचा था. सभी रिश्तेदारों ने कुंदन पाहन के सरेंडर कर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उसने मुख्य धारा में आकर अच्छा काम किया. इधर, कुंदन पाहन का कहना था कि वह सरेंडर के बाद काफी खुश है. कुंदन पाहन ने बताया कि उसके दो बच्चे हैं. एक बेटी रांची के एक बड़े स्कूल में पढ़ती है.
संगठन में रहने की वजह से वह सिर्फ जन्म के समय ही अपनी बेटी का मुंह देख पाया था. इसके बाद उसे बच्चों से कभी मिलने का मौका नहीं मिला. उसने कहा कि अब जेल से निकलने बाद अपने परिवार के सदस्यों और बच्चों से आराम से मिल सकूंगा. कुंदन पाहन ने बताया कि अब नक्सली संगठन पूरी तरह से कमजोर हो चुका है. उसका काम सिर्फ लेवी वसूलना रह गया है. बड़े नक्सली लेवी में वसूले गये पैसे से अपने बच्चों को बाहर के देश और राज्यों में पढ़ा रहे हैं. कार्यक्रम के दौरान कुंदन पाहन को देखने के लिए झामुमो विधायक पौलुस सोरेन भी पहुंचे थे.
कुंदन पाहन उर्फ विकास उर्फ आशिष कैसे बना नक्सली : डीआइजी के अनुसार वर्ष 1990-91 में जमीन बंटवारे को लेकर कुंदन पाहन का विवाद रिश्तेदारों से हुआ था. कुंदन पाहन का परिवार कमजोर था.इसलिए परिवार के सदस्यों को मारपीट कर गांव से भगा दिया गया और जमीन छीन ली गयी. मारपीट के दौरान कुंदन पाहन के पिता नारायण पाहन और फूफा लेदो मुंडा घायल हो गये थे और बोलो मुंडा की मौत हो गयी थी. इसके बाद कुंदन पाहन का परिवार बारूहातू में गिरधारी सिंह मानकी के यहां शरण ली. दुर्गा पूजा के दौरान बुंडू घूमने गये कुंदन पाहन के बड़े भाई डिंबा पाहन को गोतिया बैजनाथ पाहन ने हमला कर घायल दिया. 1996 में भाकपा माले के साथ झारखंड मुक्ति मंच नामक एक संगठन इलाके में सक्रिय था, लेकिन सीपीएम पार्टी की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गयी.
तब गिरिधारी सिंह मानकी के कहने पर सुरेश स्वांसी, लेदो मुंडा और डिंबा पाहन ने नक्सली राजेश उर्फ गिरिश को गांव बुलाया और भीम सिंह मुंडा की हत्या कर दी. इस समय नक्सली मिसिर बेसरा इलाके में कराटे ट्रेनर के नाम पर घूमता था. इस दौरान राजेश के नेतृत्व में कुछ लोग इलाके में हथियार लेकर एमसीसी के नाम पर घूमने लगे. 1998-99 के दौरान गिरिश के नेतृत्व में प्लाटून की पहली बार पुलिस के साथ मुठभेड़ एनएच 33 पर इदलहातू के समीप हुई. बाद में प्लाटून हीरा सिंह मुंडा, सुरेन स्वांसी और डिंबा पाहन संगठन के निर्देश पर काम करने लगे. एक दिन पुलिस गांव पहुंची और डिंबा पाहन को पकड़ लिया. उसको छुड़ाने के लिए गांववालों ने पुलिस से अनुरोध किया.
जब डिंबा पाहन को पुलिस ने नहीं छोड़ा, तब आक्रोशित लोगों ने बुंडू चौक जाम कर दिया. डीएसपी के समझाने पर जाम खत्म हुआ. दो तीन महीने के बाद नक्सली मिसिर बेसरा गांव पहुंचा. उसने गांव वालों को पुलिस से बच कर रहने को कहा. मिसिर बेसरा के समझाने पर ही कुंदन पाहन ने वर्ष 1998-99 में नक्सली मुखलाल के टीम में शामिल हो गया.
एक साल तक किया झोला ढोने का काम : संगठन में शामिल होने के बाद कुंदन पाहन ने करीब एक वर्ष तक झोला ढोने का काम किया. इसके बाद उसे दस्ता का सदस्य बनाया गया.
वह बंडू इलाके में घूमने लगा. वर्ष 2006 में कुंदन पाहन को झारखंड रिजनल कमेटी का सचिव बनाया गया. कुंदन पाहन के दो भाई डिंबा और श्याम संगठन से पहले से जुड़े थे. इसके अलावा स्थानीय होने के कारण कुंदन पाहन को जन समर्थन मिला. उसने अपने कार्यकाल में जोनल, सब जोनल और मिलिट्री कमीशन में कई स्थानीय युवकों को शामिल किया.
संगठन में संथाली और गैर संथाली को लेकर हुआ था विवाद : डीआइजी के अनुसार कुंदन पाहन ने पूछताछ में बताया कि संगठन के अंदर कुछ लोग कुंदन पाहन के साथ गलत व्यवहार करने लगे. भुवन मांझी, अनल और राजेश ये तीनों नक्सली अपने से नीचे के नक्सलियों के साथ गलत व्यवहार करते थे. सभी दक्षिणी छोटानागपुर के प्रमुख नेता थे और सभी संथाली थे.
कुंदन पाहन एक गैर संथाली था. इसलिए बड़े नक्सली नेता जो संथाली थे, वे कुंदन पाहन से ठीक से व्यवहार नहीं करते थे. वे कुंदन पाहन पर पैसा गबन करने का आरोप लगाते हुए गाली- गलौज करते थी. कुंदन पाहन ने शीर्ष नक्सली नेताओं से इसकी शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. डीआइजी ने बताया कि इस घटना के बाद कुंदन पाहन ने संगठन छोड़ने का मन बना लिया और 2014 में दीपावली के कुछ दिन बाद संगठन छोड़ कर वह छिप कर रहने लगा. कुंदन पाहन पर पुलिस का लगातार दबाव बढ़ रहा था. कई नक्सली इलाके छोड़ कर बाहर चले गये थे. इसी बीच रांची एसएसपी कुलदीप द्विवेदी ने कुंदन पाहन के पास आत्मसमर्पण करने का संदेश भेजा, तो उसने सरेंडर करने की इच्छा जाहिर की.
20 साल तक संगठन के लिए काम किया, पर कुछ नहीं मिला, आत्मसमर्पण कर संतुष्ट हूं
सरेंडर करने के बाद कुंदन पाहन का एक वीडियो तैयार कर रांची पुलिस ने जारी किया है. वीडियो में कुंदन पाहन बता रहा है कि उसने नक्सली संगठन के लिए करीब 20 वर्षों तक काम किया. 13 साल उसने गुरिल्ला स्क्वायड के लिए काम किया. अब नक्सली पुरानी नीति को त्याग कर अपने लिए नयी नीति बना चुके हैं. संगठन के बड़े नक्सली नेता अपने बच्चों को बड़े शहरों में इंजीनियर और मेडिकल की पढ़ाई करा रहे हैं, लेकिन संगठन के एक गरीब गुरिल्ला से तेल और साबुन के खर्च का भी हिसाब मांगा जाता है. बड़े नक्सली नेता पार्टी के नीचे कैडर का शोषण करते हैं. मुझे संगठन में रहते कुछ नहीं मिला.
मैं आत्मसमर्पण कर संतुष्ट हूं. मैं बची जिंदगी परिवार, देश और राज्य की सेवा में बिताना चाहता हूं. कुंदन पाहन ने संगठन के साथी सदस्यों से सरेंडर करने की अपील की है. वीडियो के जरिये एसएसपी कुलदीप द्विवेदी ने भी नक्सलियों से सरेंडर करने की अपील की है. एसएसपी ने अनुरोध किया है कि नक्सली हिंसा का रास्ता छोड़े सरेंडर करें. पुलिस हर संभव सहयोग करने के लिए तैयार है.
जिन बड़ी घटनाओं में था शामिल
वर्ष 2003 में सारंडा में पुलिस पर हमला कर हथियार लूट लिया. घटना को अंजाम नक्सली गिरिश उर्फ उत्तम के नेतृत्व में दिया गया था. इस घटना में कुंदन पाहन भी शामिल था.
वर्ष 2003 में बलिवा में पुलिस के साथ मुठभेड़. इस घटना में पुलिस बल को नुकसान हुआ था और पुलिस से हथियार भी लूटे गये थे.
वर्ष 2008 में तमाड़ के सलगाडीह मोड़ सुप्रिया ढाबा के समीप आइसीआइसीआइ कैश भैन से पांच करोड़ रुपये और गार्ड से बंदूक की लूट. इस घटना की योजना आशुतोष उर्फ विपुल एवं संदीप दा ने तैयार की थी. पैसे सेंट्रल कमेटी के पिल और संदीप ने लिये थे.
इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदवार की हेंब्रम बाजार से अपहरण कर हत्या. इस घटना को अंजाम पुलिस में भय पैदा करने के उद्देश्य से दिया गया था.
वर्ष 2008 में पुंडीदिरी पुल के पास बारुदी सुरंग विस्फोट कर डीएसपी प्रमोद कुमार की हत्या.
वर्ष 2008 में बंडू विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या. हत्या की घटना को अंजाम अमिताभ बागची, अनल दा और कुंदन पाहन के निर्देश पर एक्शन टीम ने दिया था. एक्शन टीम में बोलो उर्फ बलराम साहू, विशाल उर्फ तुलसी, सचिन, संतोष, अर्जुन मुंडा, महेश मुंडा और भीम मुंडा शामिल थे.
रनिया में पुलिस गश्ती दल पर हमला और बारुदी सुरंग विस्फोट कर पुलिस को घायल कर उनसे हथियार की लूट.
वर्ष 2010 हुआंगहातू में पुलिस के साथ मुठभेड़.
वर्ष 2011 नक्सली बंदी के दौरान रड़गांव एनएच पर टेलर में आग लगाने की घटना.
वर्ष 2012 में चटनीबेड़ा में जेआरसी की मीटिंग के दौरान पुलिस के साथ मुठभेड़. इसमें अजय महतो का बॉडीगार्ड सुरजन मारा गया था.
वर्ष 2011 में मारंगबुरू में पुलिस के साथ मुठभेड़. इस घटना में नक्सली जकरिया और निर्मल महतो मारे गये थे.
वर्ष 2013 में टेबो थाना क्षेत्र में जेआरसी की बैठक के दौरान पुलिस के साथ मुठभेड़. इस मुठभेड़ में प्रदीप स्वांसी को स्पीलिंटर लगा था और अजय महतो के बॉडीगार्ड मंटू के हाथ में गोली लगी थी. इस बैठक में मिसिर बेसरा, किशन दा, विवेक, जया दी और सौरभ सहित अन्य बड़े नक्सली शामिल थे.वर्ष 2013 में नकुल सिंह मुंडा की हत्या रंगदारी को लेकर कुंदन पाहन ने कर दी थी.
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