डॉ चौधरी ने कहा कि पूर्व बंगाल में भी 1858-59 में इसी नील की खेती को लेकर आंदोलन हो चुका था, जिसे दबा दिया गया था. इस बार चंपारण में गांधी जी का साथ डॉ राजेंद्र प्रसाद, जेबी कृपलानी, ब्रजकिशोर प्रसाद, महादेव देसाई, मजहरबल हक आदि ने दिया.स्नातकोत्तर इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ एके चट्टोराज ने कहा कि इस आंदोलन ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम की एक मजबूत कड़ी स्थापित की, जो बंगाल के नील आंदोलन के प्रतिक्रिया स्वरूप थी. इस आंदोलन ने महात्मा गांधी को एक सशक्त लीडर के रूप में स्थापित किया.
कथाकार रणेंद्र ने बताया कि चिंगरी, विष्णपुर से लोक नायक बने जतरा उरांव व मोहन दास करमचंद से महात्मा गांधी बने दोनों व्यक्ति दो अक्तूबर को पैदा हुए. गांधी के लिए चंपारण का नीलहा आंदोलन व तरह-तरह के टैक्स अौर हर्जाने से त्रस्त जनता के बीच जाना एक नये आंदोलन का प्लेटफार्म था.