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नाची से बांची : झारखंड का देश को एक अनोखा उपहार

!!अनुज कुमार सिन्हा!! ‘नाची से बांची’ एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म है, जाे डॉ रामदयाल मुंडा के जीवन पर आधारित है. इसका निर्माण फिल्म्स डिविजन ने कराया है. यह फिल्म मेघनाथ, बीजू टोप्पो, गुंजल इकिर मुंडा और रूपेश कुमार साहू के सम्मिलित प्रयास का परिणाम है. बीजू टाेप्पाे और मेघनाथ द्वारा निर्देशित इस फिल्म में डॉ मुंडा […]

!!अनुज कुमार सिन्हा!!
‘नाची से बांची’ एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म है, जाे डॉ रामदयाल मुंडा के जीवन पर आधारित है. इसका निर्माण फिल्म्स डिविजन ने कराया है. यह फिल्म मेघनाथ, बीजू टोप्पो, गुंजल इकिर मुंडा और रूपेश कुमार साहू के सम्मिलित प्रयास का परिणाम है. बीजू टाेप्पाे और मेघनाथ द्वारा निर्देशित इस फिल्म में डॉ मुंडा से जुड़ी कुछ ऐसी घटनाआें काे दिखाया है, जिसकी जानकारी दर्शकों को पहली बार मिलेगी.
इस फिल्म में यह दिखाया गया है कि कैसे देऊड़ी का एक आदिवासी बालक अपनी बहुमुखी प्रतिभा के बल पर अमेरिका जा कर वहां भी लाेकप्रिय हाे जाता है आैर जब माटी से पुकार आती है, बुलावा आता है ताे फिर झारखंड लाैट आता है. यहां आदिवासियाें की पहचान काे लेकर लंबी लड़ाई लड़ता है. भाषा आैर संस्कृति की रक्षा के लिए अभियान छेड़ता है.
दरअसल डॉ मुंडा के परम मित्र मेघनाथ ने जब इस फिल्म को बनाने का फैसला किया था, तब वह जीवित थे. इंटरव्यू हुआ ही था कि डॉ मुंडा की बीमारी की खबर आ गयी आैर फिल्म का काम राेक दिया गया. डॉ मुंडा के निधन के बाद मेघनाथ ने उसी जज्बे के साथ एक बेहतर फिल्म बना कर अपने मित्र काे श्रद्धांजलि दी है.
फिल्म अनाेखी है. जज्बा इतना कि फिल्म बनाने के लिए कर्ज ले लिया, जहां-जहां डॉ मुंडा रहे, वहां अपनी टीम के साथ चले गये. अमेरिका भी गये, जहां डॉ मुंडा पढ़ते-पढ़ाते थे, उन सभी लाेगाें से मिले, बात की, जानकारी हासिल की, जाे डॉ मुंडा के अमेरिका में मित्र थे, शिक्षक थे या शिष्य. इसलिए इस फिल्म की प्रामाणिकता पर काेई सवाल नहीं उठा सकता.
फिल्म में डॉ रामदयाल मुंडा के बेटे गुंजल काे मुख्य पात्र बनाते हुए उनकी जुबान से बाताें काे कहने का प्रयास किया गया है ताकि डॉ मुंडा की कमी खले नहीं, उनकी छवि दिखते रहे. काम कठिन था, पर मेघनाथ ने इसे बखूबी पूरा किया है. फिल्म में दर्जनाें ऐसी तसवीरें हैं, जाे कहीं मिलती नहीं. मेघनाथ ने आनेवाली पीढ़ियाें काे एक उपहार दिया है जाे डॉ मुंडा काे अमर करती है. कुछ वीडियाे में डॉ मुंडा कभी मांदर बजाते नजर आते हैं ताे कभी बांसुरी बजाते. कभी मांदर के थाप पर नृत्य करते नजर आते हैं ताे कभी लाेक गीत गाते.
फिल्म में डॉ मुंडा के पिता अपने पुत्र के साथ गीत गाते भी नजर आते हैं, बेटे काे सिखाते नजर आते हैं. पूरे जुनून से बनायी गयी इस फिल्म काे मेघनाथ ने अपने एक आैर करीबी मित्र डॉ बीपी केसरी काे समर्पित किया है. इस फिल्म का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका में फिल्माया गया है. डॉ मुंडा जब शिकागाे में पढ़ाई कर रहे थे, वहां नार्मन जाइड डॉ मुंडा के गुरु थे.
बहुत कम लाेगाें काे मालूम हाेगा कि डॉ निर्मल मिंज अमेरिका में डॉ मुंडा के सीनियर थे. मुंडा मार्टिन लूथर किंग काे अपना आदर्श मानते थे आैर पुस्तकालय में घंटाें बैठ कर अध्ययन करते थे. पढ़ने के बाद वहां पढ़ाने का भी काम किया. फिल्म में राेचक तरीके से बताया गया है कि मिन्नेसाेटा में कैसे डॉ मुंडा संस्कृत पढ़ाते थे. जब रेणु के उपन्यास ‘मैला आंचल’ का अंगरेजी में अनुवाद हाे रहा था, ताे अनुवादक ने डॉ मुंडा की सहायता ली थी. डॉ मुंडा के मन में यह सवाल उठता था कि मिसिसिपी का पानी इतना साफ कैसे रहता है आैर दामाेदर का इतना गंदा क्याें. वह अमेरिका में नदी किनारे बैठ कर बांसुरी भी बजाते थे.
डॉ मुंडा की खासियत यह रही कि अमेरिका जाने के बावजूद अपनी भाषा-संस्कृति से उन्होंने कोई समझौता नहीं किया़ अमेरिका के रंग में नहीं रंगे, बल्कि वहां के सैकड़ों लोगों को झारखंड के रंग में रंग दिया़ डॉ मुंडा ने एक अमेरिकी युवती हेसल लुत्ज से शादी की थी. दाेनाें लगभग दस साल तक साथ रहे. शादी देऊदी में हुई थी. यह सब फिल्म में दिखाया गया है.
लेकिन दाेनाें अलग क्याें हुए, यह बहुताें काे पता नहीं है. खुद डॉ मुंडा के पुत्र गुंजल ने फिल्म की शूटिंग के दाैरान हेसल लुत्ज (जिन्हें गुंजल बड़ी मां कहते हैं)से पूछ लिया कि आप दाेनाें के अलग हाेने का कारण क्या था? यह सवाल वाकई हिम्मत वाला था. बड़ी ईमानदारी से हेसल ने कहा- हमें लगता था कि डॉ मुंडा के पास हमारे लिए समय नहीं है आैर वे समाज काे ज्यादा प्यार करते हैं. इसलिए भारी मन से अलग हाेने का फैसला किया. फिल्म में डॉ मुंडा के एक जापानी मित्र ताेशिकी आेसादा से बातचीत है, जाे फिल्म काे आैर प्रामाणिक बनाता है. डॉ मिंज का इंटरव्यू भी है, जिसमें उन्हाेंने कहा है कि जब लगा कि क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई हाेगी ताे पहला नाम डॉ मुंडा का ही आया.
कुमार सुरेश सिंह का सहयाेग था आैर डॉ मुंडा झारखंड लाैटने काे तैयार हाे गये. विदेश में रहने के दाैरान भी डॉ मुंडा ने अपनी भाषा-संस्कृति पर किसी का असर नहीं पड़ने दिया. जब झारखंड लाैटे तब झारखंड काे समझने के लिए पूरे इलाके की माेटरसाइकिल से यात्रा की, खुद स्थिति देखी. इसे देख तकलीफ भी हुई आैर उसी समय तय किया कि पहचान का मुख्य संकट है. हर गांव में अखड़ा खाेल कर ही इसका निदान किया जा सकता है.
फिल्म में डॉ मुंडा काे सरहुल के माैके पर खुद मांदर बजाते आैर मांदर की थाप पर नाचते दिखाया गया है. बीमारी के बाद डॉ मुंडा काे जब दिखाया जाता है, वह एक भावुक पल बन जाता है. मेघनाथ की यह डॉ मुंडा के संपूर्ण व्यक्तित्व पर केंद्रित है आैर एक दाेस्त की आेर से झारखंड-देश काे एक अनाेखा उपहार है.

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