रांची: आज अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस है. मजदूरों के परिश्रम, दृढ़ निश्चय और निष्ठा का दिन. एक मजदूर देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है. राज्य और देश के विकास में अहम योगदान देता है. किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में काम करनेवाले श्रमिकों की भूमिका अहम होती है. इनके बिना किसी औद्योगिक ढांचे के खड़े होने की कल्पना तक नहीं की जा सकती.
मधु देवी, अनंतपुर: बेटियों के सपनों को पूरा करने के लिए 10 वर्षों से कर रही हैं दाई का काम
अनंतपुर की रहनेवाली मधु देवी 10 सालों से दाई का काम कर रही हैं. परिवार का पालन पोषण कर रही है़ं बच्चों की पढ़ाई और पूरे परिवार का खर्च खुद ही वहन करती है़ मधु कहती हैं : मैंने गरीबी देखी है. इसे बच्चों को नहीं देखने दूंगी. एक घर में दाई का काम करती हैं. वहीं तीन घरों में खाना बनाती हैं. वह कहती हैं कि अपनी दोनों बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाना ही उद्देश्य है़ 15-16 साल की उम्र में ही शादी हो गयी़ पति रिक्शा चलाते थे, उन्होंने भी यह काम छोड़ दिया. इसके बाद घर का पूरा खर्च खुद उठा रही है़ं मधु कहती हैं कि यदि घरों में काम नहीं मिलता है, तो रेजा का काम करती हैं. उनका सपना है कि बड़ी बेटी बैंक अधिकारी और दूसरी इंजीनियर बने.
मुन्नी कच्छप, सिदरौल:1.5 वर्ष की उम्र में मां चल बसी, पिताजी बीमार रहने लगे, तब से कर रहीं मजदूरी
डेढ़ साल की उम्र में मां चल बसी. पिताजी रिक्शा चलाते थे. मां की मौत के बाद पिताजी भी बीमार रहने लगे. अब सबसे बड़ा संकट था कि घर का चूल्हा-चौका कैसे चलेगा? तब मैं बाहर निकली और काम करना शुरू किया. पढ़ी-लिखी नहीं थी, इसलिए काफी परेशानी हुई. कभी-कभी काम तक नहीं मिलता. पानी पीकर सो जाती. यह कहना है मुन्नी कच्छप का. नामकुम सिदरौल की रहनेवाली मुन्नी ने संघर्ष करते हुए खुद को संभाला और अपने बच्चों को सही मुकाम तक पहुंचाया. उनके चारों बेटे ग्रेजुएट हैं. वह कहती हैं कि समाज में जगह बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. बच्चे छोटे थे. शुरुआत में फ्लैट में काम करने लगी. बच्चों का पालन-पोषण किया. आज भी गोदाम में काम कर रही हैं. वह कहती हैं : आज भी नहीं थकी हूं. लगातार काम कर रही हूं. इसी विश्वास के साथ कि बच्चों का भविष्य संवार जाये. आगे चल कर गरीबों की सेवा करें.