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दवाओं का एक हो नाम, मिले एक कीमत पर

परिचर्चा. शहर के चिकित्सक और प्रबुद्ध नागरिकों ने प्रभात खबर के मंच पर खुल कर रखी अपनी बातें जेनेरिक, ब्रांडेड जेनेरिक व ब्रांडेड दवाओं को लेकर समाज में चल रहे गतिरोध पर आइएमए, चिकित्सकों अौर शहर के प्रबुद्ध लोगों ने रविवार को ‘प्रभात खबर’ सभागार में अायोजित परिचर्चा में खुल कर अपनी बातें रखीं. चिकित्सकों […]

परिचर्चा. शहर के चिकित्सक और प्रबुद्ध नागरिकों ने प्रभात खबर के मंच पर खुल कर रखी अपनी बातें
जेनेरिक, ब्रांडेड जेनेरिक व ब्रांडेड दवाओं को लेकर समाज में चल रहे गतिरोध पर आइएमए, चिकित्सकों अौर शहर के प्रबुद्ध लोगों ने रविवार को ‘प्रभात खबर’ सभागार में अायोजित परिचर्चा में खुल कर अपनी बातें रखीं. चिकित्सकों ने जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता और उपलब्धता की बात की. वहीं, समाज के प्रबुद्ध लोगाें ने जेनेरिक दवाओं से आम आदमी को मिलने वाली राहत और डॉक्टरों की भूमिका पर अपने विचार रखे.
रांची : ‘प्रभात खबर’ सभागार में अायोजित यह परिचर्चा करीब दो घंटे तक चली. इसमें कई महत्वपूर्ण बातें निकल कर सामने आयीं. यह आम राय बनी कि देश में दवा का निर्माण एक नाम से हो और दवाओं की कीमत एक हो. इससे चिकित्सकों को दवा लिखने में परेशानी नहीं होगी और मरीजों को एक ही कीमत पर देश के किसी कोने में दवाएं मिल जायेंगी.
परिचर्चा के दौरान आइएमए रांची की ओर से सचिव डॉ अमित मोहन ने कहा कि दवाओं के रासायनिक नाम लिखने से मरीज को ही घाटा हो रहा है. देश में कई दवा कंपनियां रसायनिक नाम से अलग-अलग दवाएं बनाती हैं. दवा कंपनियां दवाओं की कीमत अलग-अलग रखती हैं.
अगर सरकार यह तय कर दे कि बुखार के लिए सभी कंपनी को पारासिटामोल को एक ही ब्रांड नाम से बनाना है. उसकी कीमत एक निर्धारित करना होगा, तो सही मायने में मरीजों को सस्ती दवाएं मिल पायेंगी. वहीं दवा दुकानों पर फार्मासिस्टों की कमी का भी मुद्दा उठा. डॉक्टरों ने कहा कि कई दवा दुकानों में नॉन-मैट्रिक विक्रेता हैं, जिनको नाम तक पढ़ना नहीं आता है.
वह ब्रांड नेम ही जानते हैं. डॉक्टर रासायनिक नाम लिखने लगेंगे, तो मरीज को लाभ के बजाय घाटा हो जायेगा.कार्यक्रम में प्रभात खबर के प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी, डॉ अजय सिंह, डॉ आरसी झा, डॉ अमित मोहन, डॉ विनय कमार ढ़ाढनिया, डॉ विकास, डॉ संजय जायसवाल, विष्णु राजगढ़िया, विकास कुमार सिंह, पंकज पोद्दार, संतोष अग्रवाल, ऋषि पांडेय, मनीष चौधरी, पवन कुमार शर्मा, किरण बगाई, अनूप चौधरी, दीपक कुमार मारू, आदित्य विक्रम जायसवाल, विशाल पाटोदिया, पंकज चौधरी एवं प्रकाश खेमका आदि ने अपने विचार रखे.
आइएमए सरकार के फैसले का समर्थन करती है. हम दवाओं का रासायनिक नाम लिखने को तैयार हैं, लेकिन इससे मरीज को लाभ के बजाय हानि होती है. मरीज जब दवा दुकानों में जाता है, तो वहां उसे सबसे महंगी जेनेरिक ब्रांडेड दवा दे दी जाती है. ऐसे में अगर सरकार मरीजों को सही मायने में लाभ पहुंचाना चाहती है, तो एक ब्रांड तय करे. उसकी कीमत निर्धारित करे. दुकानों पर प्रशिक्षित लोग ही दवा दें, नहीं तो गलत दवाओं से लोगों की जान तक जा सकती है. एक डॉक्टर साहब ने मरीज को एंटीबॉयोटिक लिखा, लेकिन रासायनिक नाम का ज्ञान नहीं होने से दवा दुकान के कर्मचारी ने उसे मिरगी की दवा दे दी. ऐसे में कैसे किसी की जान बचायी जा सकती है.
डॉ अमित मोहन, आइएमए सचिव
जेनेरिक दवाओं को लेकर सरकार ने जो पहल की है, उसका स्वागत करना चाहिए. हम चिकित्सकों से यह आग्रह करेंगे कि डॉक्टर मरीज हित में जेनेरिक दवाअों के नाम ही लिखें.
अनूप चौधरी
हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि डाॅक्टर भगवान होते हैं, इसलिए उनको सबके लिए दोषी करार नहीं कर सकते है. दुनिया को बेवकूफ तो फार्मा कंपनियां बनाती हैं. वह कहती हैं कि डॉक्टर को देना होता है, मार्केटिंग करनी पड़ती है, लेकिन इसमें ज्यादा खर्च नहीं करती हैं.
कंपनियों ने नया फारमूला तैयार कर लिया है. अब तो दवाओं के ग्राम बढ़ा दे रहे हैं. पहले 350 ग्राम की दवा से काम चल जाता था. अब तो 650 ग्राम की दवाएं आ गयी हैं. डोज बढ़ जाने से कीमत बढ़ा दी जाती है. हम दवाई दोस्त के नाम पर राजधानी में 12 सेंटर चला रहे हैं. टॉप टेन कंपनियों की दवाएं खरीदते हैं. प्रयास करते हैं कि सस्ती दवा देकर लोगों को लाभ पहुंचायें.
पंकज पोद्दार, दवाई दोस्त के संचालक
जेनेरिक दवा से गरीब और मध्यम श्रेणी के लोगों का भला होगा. अाजकल दवाओं को खर्च घर के पूरे खर्च से ज्यादा हो गया है. ऐसे में सरकार का जेनेरिक दवाअों का नाम लिखने का निर्देश स्वागत योग्य है.
प्रकाश खेमका
मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया (एमसीआइ) ने कोई नयी गाइड लाइन नहीं जारी की है, यह वर्ष 2012 की ही अधिसूचना है, जिसे एक बार फिर से जारी कर दिया गया है. हम भी चाहते हैं कि दवाओं कीमत कम है. हम तो कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के अंदर आते हैं. अगर मरीज को किसी प्रकार की समस्या होती है, तो हमें कोर्ट का सामना करना पड़ता है. हिंदुस्तान फार्मा कंपनी, आइडीपीएल सहित पांच देशी दवा कंपनियां थीं, लेकिन उन्हें सरकार ने बंद कर दिया. निजी फार्मा कंपनियों को लाइसेंस दे दिया. कॉरपोरेट कल्चर बढ़ रहा है. मुझे लगता है कि वह दिन दूर नहीं है, जब कॉरपोरेट अस्पताल दवा का निर्माण शुरू कर दें.
डाॅ अजय सिंह, वरिष्ठ चिकित्सक
आइएमए ने समझाया दवाओं में अंतर
जेनेरिक दवा
दवा का रासायनिक नाम लिखा होता है, जिसकी मार्केटिंग नहीं की जाती है.
ब्रांडेड जेनेरिक दवा
पेटेंट कंपनी द्वारा 20 साल तक दवा बनाने के बाद उस रासायनिक नाम को दूसरी कंपनी अपने नाम से बना सकती है. उसे ब्रांडेड जेनेरिक कहते हैं.
ब्रांडेड दवा
जिस कंपनी ने शोध के बाद कोई नयी दवा बनायी और उसे अपने नाम से पेटेंट कराया, वह दवा 20 साल तक वही कंपनी बना सकती है. दवा की कीमत का निर्धारण भी वही कंपनी करेगी.

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