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समाज का बड़ा हिस्सा पर्सनल लॉ के बारे में नहीं जानता : हुसैनी

रांची : मुसलिम समाज का एक बड़ा हिस्सा इसलामी पारिवारिक कानूनों के बारे नहीं जानता और समुदाय के बहुत से लोग इन कानूनों का उनका मूल रूप में पालन नहीं करते़ संवैधानिक न्यायालय अक्सर मुसलिम पर्सनल लॉ से संबंधित विवादों पर इसलामी शरीयत के उसूलों के विपरीत निर्णय लेते हैं और फिर ये निर्णय कानूनी […]

रांची : मुसलिम समाज का एक बड़ा हिस्सा इसलामी पारिवारिक कानूनों के बारे नहीं जानता और समुदाय के बहुत से लोग इन कानूनों का उनका मूल रूप में पालन नहीं करते़ संवैधानिक न्यायालय अक्सर मुसलिम पर्सनल लॉ से संबंधित विवादों पर इसलामी शरीयत के उसूलों के विपरीत निर्णय लेते हैं और फिर ये निर्णय कानूनी उदाहरण बन जाते है़
विधायी संस्थाएं मुसलिम पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप करती हैं. वहीं मीडिया भी एकतरफा छवि पेश करता है़ आमतौर पर वे कुछ नादान मुसलमानों के दोषपूर्ण आचरण से आमलोगों को गुमराह कर देते है़ यह इसलामी कानून की एक विकृत छवि पेश करता है़ भारतीय संविधान में अकीदा, धर्म और अंतरात्मा की आजादी एक मौलिक अधिकार के तहत स्वीकार किया गया है़
इस विषय पर मुसलिम समाज में जागरूकता फैलाने की जरूरत है. इसके मद्देनजर जमाअत इसलामी हिंद द्वारा 23 अप्रैल से सात मई तक देश के 1200 जगहों पर मुसलिम पर्सनल लॉ जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है़ इसके लिए सेमिनार, किताबें, परचा, फिल्में, सोशल मीडिया, नुक्कड़ सभाएं आदि की मदद ली जा रही है़ यह जानकारी जमाअत इसलामी हिंद के सैयद सादतउल्लाह हुसैनी, जफर इमाम, इबरार अहमद व असद बारी ने होटल सरताज में शुक्रवार को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में दी.
परामर्श केंद्र, शरई पंचायत या दारुल कजा से करें संपर्क : उन्होंने कहा कि पति-पत्नी के बीच मतभेद हो जाये, तो उसे हल करने का तरीका भी इसलामी शरीयत ने बताया है़ पहले पति-पत्नी को अपने मतभेद अापस में हल करने की कोशिश करनी चाहिए़ सफलता नहीं मिलने पर दोनों तरफ से जज नियुक्त कर उनके माध्यम से हल करना चाहिए़ यदि मजबूरी में संबंध तोड़ना अनिवार्य हो जाये, तो यह काम भी इसलामी शरीयत के अनुसार होना चाहिए़ अापसी विवाद के निवारण के लिए परामर्श केंद्र, शरई पंचायत या दारुल कजा से संपर्क करना चाहिए़

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