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खादी के लिए काम करनेवालों की ग्रासरूट सच्चाई, रोज 35 से 100 रुपये ही कमाते हैं सूत कातनेवाले

खादी के कपड़ों के लिए सूत कातने वाले (कत्तीन) रोजाना सिर्फ 35 से 100 रुपये तक ही कमाते हैं. लगातार बैठ कर सूत कातने का यह श्रम साध्य काम आम तौर पर महिलाएं ही करती हैं. भारत सरकार के खादी व ग्रामोद्योग आयोग ने एक किलो रेशमी सूत कातने की मजदूरी 350 रुपये तथा एक […]

खादी के कपड़ों के लिए सूत कातने वाले (कत्तीन) रोजाना सिर्फ 35 से 100 रुपये तक ही कमाते हैं. लगातार बैठ कर सूत कातने का यह श्रम साध्य काम आम तौर पर महिलाएं ही करती हैं. भारत सरकार के खादी व ग्रामोद्योग आयोग ने एक किलो रेशमी सूत कातने की मजदूरी 350 रुपये तथा एक किलो सूती सूत कातने की मजदूरी 175 रुपये तय की है. एक दिन (अौसतन सात-आठ घंटे) में एक महिला अधिकतम सौ ग्राम रेशमी या अाधा किलो सूती धागा ही कात सकती है. इस तरह इन्हें रेशमी सूत के लिए 35 रु तथा सूती सूत के लिए अधिकतम 87 रु तक रोज मिलते हैं. समझा जा सकता है कि महंगाई के इस दौर में ये सूत कातने वाले कैसा जीवन जी रहे होंगे.
रांची: अायोग से मान्यता प्राप्त खादी संस्था आदिवासी समग्र विकास परिषद, अनगड़ा के सिल्ली स्थित सूत कताई सेंटर पर सूत कात रही कुंती, पद्मावती, भानु, शशि, अंजना, पोदा, काजल व छवि देवी ने कहा कि रोज कठिन परिश्रम करके भी वे घर में ताने सुनती हैं. बच्चों की पढ़ाई तथा जरूरत पड़ने पर उनका इलाज तक वे नहीं करा पातीं. रोज रेशमी सूत कातने वाली इन महिलाअों की किस्मत में रेशमी साड़ी अगले जनम का सपना है. धागा कातने से उनके हाथ भी तार-तार हो गये हैं.

इन महिलाअों ने आग्रह किया कि उन्हें रेशमी धागे के लिए कम से कम पांच सौ रु तथा सूती धागे के लिए 250 रु प्रति किलो की मजदूरी दी जाये. अायोग से मान्यता प्राप्त राज्य में खादी की सभी 18 संस्थाअों की यही सच्चाई है. वहां सूत कातने वाले या कपड़ा बुनने वाले मजबूरी में यह काम कर रहे हैं. नये लोग इस अोर आकर्षित नहीं हो रहे. रेजा-कुली के काम में भी रोजाना ढाई से तीन सौ रु तक की कमाई होने या फिर मनरेगा में 168 रु मजदूरी मिल जाने से खादी संस्थाअों को काम करने वाले नहीं मिलते.

बुनकरों तथा खादी की रिटेल दुकानों पर काम करनेवाले कर्मचारियों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. एक थान (11 मीटर) रेशमी कपड़ा बुनने पर पांच सौ रु तथा सूती कपड़ा के लिए दो सौ रु दिये जाते हैं. एक थान कपड़ा बुनने में दो रोज लगते हैं. इस तरह रेशमी कपड़े के लिए एक बुनकर को करीब 250 रु तथा सूती कपड़े के लिए सौ रु की ही रोजाना कमाई होती है. दूसरे अोर सेल्स मैन सहित अन्य कार्य करनेवाले कर्मचारियों को पांच से छह हजार रु हर माह मिलते हैं. तो इस तरह खादी संस्थाअों से जुड़े करीब 1895 लोग मुफलिसी में जी रहे हैं. खादी की दुकान के एक कर्मचारी (नाम नहीं दे रहे) ने अपना दर्द बताया कि खादी से जुड़े हैं, इसलिए चकाचक सफेद कपड़े पहनकर दुकान में बैठते हैं. पर अंदर से हमलोग दुखी हैं.

दूसरी अोर राज्य खादी बोर्ड के बुनकर, कत्तीन व कर्मचारियों की हालत भी कमोबेश यही है. सूती धागा कातने की बोर्ड की दर 200 रु तथा रेशमी धागा कातने की 350 रु प्रति किलो निर्धारित है. इस तरह बोर्ड के कत्तीन भी रोजाना 35 से 100 रु तक ही कमाते हैं. इधर इनके बुनकरों को एक थान सूती कपड़ा बुनने के लिए 176 रु का भुगतान होता है. वहीं रेशमी कपड़े के लिए अभी प्रति थान 423 रु का भुगतान होता है. एक थान कपड़ा अौसतन दो दिन में तैयार होता है. इस तरह सूती कपड़ा बुनने वाले बोर्ड के बुनकर अधिकतम सौ रु तथा रेशमी कपड़ा बुननेवाले अधिकतम दो सौ रु तक ही रोजाना कमा सकते हैं. इस तरह खादी से जुड़े बुनकर, कत्तीन व कर्मचारी (बोर्ड मुख्यालय को छोड़) प्रतिमाह एक हजार से लेकर छह-सात हजार रु में गुजारा कर रहे हैं. बोर्ड का दावा है कि राज्य भर के करीब पांच सौ क्लस्टर में लगभग 15 हजार लोग खादी से जुड़े हैं. पर एक अधिकारी ने खुद ही कहा कि वास्तविक रूप से सक्रिय लोगों की संख्या कम होगी.
मजदूरी व अन्य लाभ आयोग करता है तय
अायोग से संबद्ध खादी संस्थाअों के बुनकरों व सूत कातने वालों की मजदूरी आयोग ही तय करता है. जबकि राज्य खादी बोर्ड को भी अपनी दर की अनुशंसा अायोग से करानी होती है. पर राज्य खादी बोर्ड खुद भी मजदूरी बढ़ा सकता है. इसलिए अलग-अलग राज्यों में खादी बोर्ड की दर भी अलग-अलग है. आयोग संस्थाअों तथा खादी बोर्ड दोनों को उनके द्वारा उत्पादित वस्त्र की कुल लागत का 20 फीसदी सालाना भुगतान करता है. इसे मार्केटिंग डेवलपमेंट असिसटेंस (एमडीए) बोलते हैं, जो खादी कपड़ों पर दी जाने वाली छूट के एवज में होता है. बुनकर व कत्तीन को एमडीए की रकम में से उनकी कुल सालाना कमाई का 10 फीसदी बोनस भी मिलता है. पर यह रकम एक कत्तीन या बुनकर के लिए एक से छह हजार रु सालाना ही होता है.
क्या है खादी का ताना-बाना
खादी क्या है? खादी चरखा व करघा की सहायता से हाथ से काता व बुना गया वस्त्र है, जिसमें कच्चे माल के रूप में कपास, रेशम या ऊन का प्रयोग होता है. महात्मा गांधी का सपना यानी खादी का प्रचार-प्रसार सरकार दो तरह से करती है. केंद्र सरकार ने इसके लिए खादी व ग्रामोद्योग अायोग बनाया है. आयोग आवश्यक शर्तें पूरी करने वाली खादी संस्थाअों का निबंधन कर उन्हें वित्तीय सहायता देता है. झारखंड में अायोग के तहत कुल 18 संस्थाएं निबंधित हैं. इधर राज्य सरकार भी खादी बोर्ड के माध्यम से खादी का प्रचार-प्रसार करती है. झारखंड खादी बोर्ड क्लस्टर बना कर तथा बुनकरों व सूत कातने वालों का तकनीकी प्रशिक्षण देकर खादी वस्त्रों का उत्पादन करता है.
सूत कातने व कपड़ा बुनने की दर
मद खादी ग्रामोद्योग आयोग राज्य खादी बोर्ड
सूती सूत कताई 175 रु/किलो 200 रु/किलो
रेशमी सूत कताई 350 रु/किलो 350 रु/किलो
सूती कपड़ा बुनाई 200 रु/थान 176 रु/थान
रेशमी कपड़ा बुनाई 500 रु/थान 423 रु/थान
(बोर्ड ने अभी-अभी सूती सूत कताई की दर 225 रु प्रति किलो, सूती कपड़ा बुनाई की दर 287 रु प्रति थान तथा रेशमी कपड़ा बुनाई की दर 607 रु प्रति थान निर्धारित की है. रेशमी धागा कातने की दर अभी नहीं बढ़ी है)

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