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नेता से संघर्ष पैदा नहीं होगा, संघर्ष से निकलेंगे नेता
केंद्र में जिस तरह की सरकार चल रही है, उसके लिए और इंतजार करने का समय नहीं है. आगे का रास्ता बंद हो गया है. लड़ाई के सिवा कोई विकल्प नहीं है. लड़ाई शुरू करने के लिए नेता नहीं चाहिए. संघर्ष से नेता निकलेंगे, नेता से संघर्ष नहीं होगा. इस कारण सभी विपक्षी दलों को […]
केंद्र में जिस तरह की सरकार चल रही है, उसके लिए और इंतजार करने का समय नहीं है. आगे का रास्ता बंद हो गया है. लड़ाई के सिवा कोई विकल्प नहीं है. लड़ाई शुरू करने के लिए नेता नहीं चाहिए. संघर्ष से नेता निकलेंगे, नेता से संघर्ष नहीं होगा. इस कारण सभी विपक्षी दलों को अपने-अपने स्तर से संघर्ष शुरू करना चाहिए. ऐसा मानना है त्रिपुरा के मुख्यमंत्री मानिक सरकार का. माकपा नेता श्री सरकार शनिवार को राजधानी रांची में पार्टी के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आये थे. प्रभात खबर के वरीय संवाददाता मनोज सिंह ने वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था पर उनसे बात की. प्रस्तुत है बातचीत के अंश.
आपकी नजर में केंद्र सरकार कैसे चल रही है?
केंद्र में जनता की नहीं, कॉरपोरेट की सरकार चल रही है. जमींदारों की सरकार है. टैक्स चोरी करने वालों की सरकार है. मुनाफा कमाने वालों की सरकार है. गरीबों ने जिस उम्मीद से इस सरकार को वोट दिया, उनका सपना टूट रहा है. आम आदमी सरकार को समझने लगे हैं. इसका परिणाम पिछले दिनों हुए चुनावों में भी दिखा. पंजाब और गोवा में इनको कम सीटें आयीं. यूपी में भी लोकसभा चुनाव की तुलना में कम मत मिले. ईमानदारी की बात करनेवाली इस सरकार में इमान नहीं है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं. बहुत दिनों तक ऐसा नहीं चलने वाला है.
क्या इससे देश की अखंडता और संप्रभुता को भी खतरा है ?
2014 में चुनाव के दौरान जो वादा किया गया था, वह अब तक पूरा नहीं किया गया. सरकार अर्थनीति में फेल रही. चुने जाने के बाद सरकार अच्छे दिनों का वादा भूल गयी. महंगाई रुक नहीं रही. रुपये का मूल्य घट रहा है. मुद्रा स्फीति बढ़ रही है. किसान आत्महत्या कर रहे हैं. दो करोड़ लोगों को रोजगार का वादा किया था, यह कहां गया. तीन करोड़ से अधिक युवाओं के पास कोई काम नहीं है. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बेचे जा रहे हैं. कर्मियों की संख्या घट रही है. लोगों की नाराजगी बढ़ रही है. इससे ध्यान भटकाने के लिए केंद्र सरकार ने डिवाइड एंड रूल (बांटों और शासन करो) की नीति अपनायी. लोगों को हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई के नाम पर लड़ाया जा रहा है. किसान, मजदूर, नौजवानों, छात्रों के बीच सांप्रदायिकता की बीज बोई जा रही है. इसके पीछे केंद्र की सरकार में सीधा हस्तक्षेप रखने वाली राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद जैसी ताकतें हैं. यहीं लोग मजहब और जाति के नाम पर लोगों को बांटना चाह रहे हैं. लोगों को समझना चाहिए कि रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद जैसे लोगों ने तो कभी किसी दूसरे धर्म के बारे में नहीं कहा. जो अपने धर्म के सच्चे साधक होते हैं, वे दूसरों के धर्म के बारे में नहीं बोलते हैं. धर्म कभी किसी को लड़ाना नहीं सिखाता है.
इन चीजों को रोकने के लिए क्या योजना हो सकती है?
इसको रोकने के लिए बड़ी लड़ाई की जरूरत है. इससे बचने के रास्ते बंद हो चुके हैं. अब संघर्ष से ही रास्ता निकल सकता है. सेक्युलर ताकतों को एक होना होगा. केवल स्लोगन और बोलने से कुछ नहीं होगा. हमारी पार्टी संघर्ष करना शुरू कर दी है. केरल, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में इसके कई उदाहरण मिलेंगे. इस संघर्ष के लिए कोई नेता की जरूरत नहीं है. संघर्ष गांव से शुरू होगा. नेता इसी संघर्ष से उपजेंगे. इसमें समय लगेगा, लेकिन निराशा नहीं. यह ध्यान रखना होगा कि गांधी जी, सुभाष जी व जवाहर लाल नेहरू कोई नेता नहीं थे. सभी संघर्ष की उपज थे, जिन्होंने देश को रास्ता दिखाया. इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को भी एक मंच पर आना होगा.
क्या इसमें कांग्रेस भी होगी ?
इसके लिए कांग्रेस को बदलना होगा. कांग्रेस को संघर्ष करने वाली ताकतों के बीच विश्वास पैदा करना होगा. बताना होगा कि कांग्रेस जनता के साथ और जनता के हित के लिए संघर्ष करेगी.
जन संघर्ष वोट में क्यों नहीं बदलता है?
सच्चे मन से किया हुआ संघर्ष वोट में जरूर बदलेगा. लोगों को यह विश्वास होना चाहिए कि लड़ाई आपके लिए ईमानदारी से लड़ी जा रही है. केवल चुनाव की सोच कर संघर्ष करेंगे, तो परिणाम अपेक्षाजनक नहीं आयेंगे.
मुख्यमंत्री होते हुए भी आप सामान्य लोगों की तरह जीते हैं. ऐसा दूसरे क्यों नहीं कर पाते हैं?
यह पार्टी सिखाती है. एक सिस्टम है, जिसे आपको मानना है. सामान्य लाइफ स्टाइल पार्टी की प्रारंभिक शर्तों में एक है. यह पार्टी का संस्कार भी है. यह पार्टी से तय मापदंडों पर भी निर्भर करता है. इसमें मुझे कोई तकलीफ नहीं होती है. जनता को ज्यादा करीब से समझने का मौका लगता है.
कौन हैं मानिक सरकार
मानिक सरकार 1998 से त्रिपुरा के मुख्यमंत्री हैं. श्री सरकार पांच हजार रुपये मासिक आय में अपना काम करते हैं. इनका न कोई अपना घर और न ही कोई गाड़ी है. इनके बैंक खाते में मात्र नौ हजार 720 रुपये हैं. देश के सबसे गरीब मुख्यमंत्री हैं. त्रिपुरा मनरेगा के अंतर्गत रोजगार का कार्य दिवस लागू करने में पूरे देश में अव्वल है. वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन में भी यह राज्य देश में प्रथम स्थान पर है. इतना ही नहीं, समेकित बाल विकास कार्यक्रम को बहुत ही बेहतर तरीके से लागू करने से आज बाल मृत्यु दर में भारी गिरावट दर्ज करने वाला यह देश का पहला राज्य बन गया है. इसके लिए भारत सरकार ने त्रिपुरा को पुरस्कृत भी किया है.
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