अब जबकि एक सप्ताह बाद स्कूलों में नया शैक्षणिक सत्र शुरू होगा. स्कूलों ने शिक्षण शुल्क से लेकर बस किराया तक में बढ़ोतरी कर दी है. अभिभावकों से विकास फंड के नाम तीन हजार से लेकर दस हजार रुपये तक वसूल लिये गये. सरकार के स्तर पर प्रति वर्ष नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने के साथ निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने की बात कही जाती है, पर कभी काेई कार्रवाई नहीं होती. निजी स्कूलों के अभिभावकों को सरकार की कार्रवाई से आज तक एक पैसे की राहत नहीं मिली है.
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मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने का मामला: तीन साल से विभाग में ही पड़ा है निजी स्कूलों के फीस नियंत्रण एक्ट का ड्राफ्ट
रांची: निजी स्कूलों द्वारा मनमाने तरीके से फीस बढ़ोतरी पर रोक के लिए सरकार ने एक बार फिर से एक्ट बनाने की बात कही है. स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की मंत्री डॉ नीरा यादव ने झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण के अध्यक्ष को 25 मार्च तक झारखंड रेगुलेशन फॉर कंट्रोल ऑफ फीस एक्ट का ड्राफ्ट तैयार […]
रांची: निजी स्कूलों द्वारा मनमाने तरीके से फीस बढ़ोतरी पर रोक के लिए सरकार ने एक बार फिर से एक्ट बनाने की बात कही है. स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की मंत्री डॉ नीरा यादव ने झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण के अध्यक्ष को 25 मार्च तक झारखंड रेगुलेशन फॉर कंट्रोल ऑफ फीस एक्ट का ड्राफ्ट तैयार करने को कहा है. एक्ट को लेकर तीन वर्ष पूर्व भी एक ड्राफ्ट तैयार किया गया था. इसके लिए जैक के पूर्व अध्यक्ष डॉ आनंद भूषण की अध्यक्षता में कमेटी बनी थी.
यह कमेटी झारखंड हाइकोर्ट के आदेश पर गठित की गयी थी. कमेटी ने दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु समेत अन्य राज्यों के एक्ट का अध्ययन का ड्राफ्ट तैयार किया था, पर ड्राफ्ट में खामी होने की बात कह इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. इस दौरान विभाग की ओर से ड्राफ्ट में सुधार के लिए कोई ठोस पहल नहीं की गयी. कमेटी वर्ष 2015 में ही अपनी रिपोर्ट स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग को सौंप दी थी. तीन वर्ष से ड्राफ्ट पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. अब एक बार फिर से सरकार एक्ट के लिए ड्राफ्ट बनाने की बात कह रही है.
बनता एक्ट, तो प्रति वर्ष नहीं बढ़ती फीस
झारखंड रेगुलेशन फॉर कंट्रोल ऑफ फीस एक्ट लागू हाेने से निजी स्कूलों द्वारा की जानेवाली मनमानी शुल्क बढ़ोतरी पर रोक लगती. कमेटी द्वारा सौंपे गये प्रारूप में कहा गया था कि स्कूलों में विद्यालय प्रबंध समिति व अभिभावक संघ के प्रतिनिधि की आम सहमति से फीस तय की जायेगी. विद्यालय व अभिभावक की सहमति से तय शुल्क के प्रारूप को जिलों में गठित जिला स्तरीय शुल्क निर्धारण कमेटी को भेजी जायेगी. जिला स्तरीय कमेटी की सहमति के बाद स्कूल शुल्क में बढ़ोतरी कर सकेंगे. निजी स्कूल दो वर्ष में एक बार शुल्क बढ़ोतरी कर सकेंगे. एक शुल्क बढ़ोतरी दो शैक्षणिक सत्र के लिए मान्य होगी. विद्यालयों में अभिभावक संघ बनाने को कहा गया था.
सभी जिलों में बनती है कमेटी
निजी स्कूलों में शुल्क निर्धारण के लिए जिला स्तर पर कमेटी बनाने का प्रस्ताव ड्राफ्ट के लिए बनी कमेटी ने दी थी. विद्यालय स्तर पर तय किये गये शुल्क के जिला स्तरीय कमेटी के समक्ष रखा जाता. स्कूल स्तर पर तय शुल्क में जिला स्तरीय कमेटी बदलाव भी कर सकती थी. जिला स्तरीय कमेटी के अध्यक्ष संबंधित जिले के जिला शिक्षा पदाधिकारी होंगे. इसके अलावा जिला शिक्षा अधीक्षक, जिले के सीबीएसइ स्कूल, आइसीएसइ स्कूल, प्लस टू उच्च विद्यालय के दो-दो प्राचार्य, सभी प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी व अभिभावक शिक्षक संघ के अध्यक्ष को कमेटी का सदस्य बनाने का प्रावधान था.
हाइकोर्ट के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में कमेटी
ड्राफ्ट में कहा गया था कि अगर जिला स्तर स्कूल के तय शुल्क से अगर विद्यालय व अभिभावक सहमत नहीं होंगे, तो वे इसकी शिकायत राज्य स्तरीय कमेटी के समक्ष कर सकेंगे. राज्य स्तर पर हाइकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में कमेटी गठित की जायेगी. कमेटी में प्राथमिक शिक्षा निदेशक व राज्य स्तर गठित अभिभावक संघ के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे.
संसाधन के आधार पर स्कूल तय करते फीस
एक्ट बनने से स्कूल मनमाने तरीके से शुल्क में बढ़ोतरी नहीं कर पाते. शुल्क निर्धारण में अलग-अलग मापदंड अपनाया जाता . विद्यालय शहरी क्षेत्र में स्थित हैं या ग्रामीण क्षेत्र में. विद्यालय में छात्र-छात्राओं की संख्या, पुस्तकालय, प्रयोगशाला का स्तर, पेयजल, शौचालय व भवन की स्थिति, कंप्यूटर शिक्षा, शिक्षक एनसीटीइ के मापदंड के अनुरूप योग्यता रखते है कि नहीं, शिक्षकों व कर्मचारियों के मिलने वाला वेतन, पठन-पाठन पर किया जाने वाला खर्च, स्कूलों द्वारा लिये जाने वाले शुल्क व दी जाने वाली सुविधा को ध्यान में रख फीस का निर्धारण किया जाता. स्कूलों को शुल्क निर्धारण के प्रस्ताव के साथ उक्त जानकारी भी जिला स्तरीय कमेटी को देना होता.
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